बेबस आंखों से अपनी जमीन निहार रहे ग्रामीण
महुलडांगरी के ग्रामीण बेबस आंखों से स्वर्णरेखा नदी के उस पार स्थित टुकुर-टुकुर अपनी जमीन निहार रहे हैं। महुलडांगरी सहित आस-पास के पाथरी बामडोल सहित आधा दर्जन गांवों के लोगों की लगभग 200 एकड़ जमीन पर ओडिशा के लोगों का कब्जा है।
विश्वजीत भट्ट, जमशेदपुर : महुलडांगरी के ग्रामीण बेबस आंखों से स्वर्णरेखा नदी के उस पार स्थित टुकुर-टुकुर अपनी जमीन निहार रहे हैं। महुलडांगरी सहित आस-पास के पाथरी, बामडोल सहित आधा दर्जन गांवों के लोगों की लगभग 200 एकड़ जमीन पर ओडिशा के लोगों का कब्जा है। इन गांवों के लोग अपनी जमीन का लगान झारखंड सरकार को देते हैं और इनकी जमीन पर खेती ओडिशा के लोग करते हैं। यह सिलसिला लंबे समय से जारी है। यह गांव बहरागोड़ा प्रखंड मुख्यालय से सात किमी और पूर्वी सिंहभूम जिला मुख्यालय से 95 किमी दूर है। यदि झारखंड सरकार महुलडांगरी गांव के पास स्वर्णरेखा नदी पर पुल बना दे तो लगभग आधा दर्जन से अधिक गांवों के लोग नदी पार करके बड़ी आसानी से अपनी जमीन पर खेती कर पाएंगे। इस समय ग्रामीण डोंगी (छोटी नाव) से स्वर्णरेखा नदी पार करते हैं, लेकिन डोंगी से नदी उस पार जाकर खेती करने में असमर्थ हैं।
कटवा करती गई स्वर्णरेखा, हाथ से छूटती गई जमीन
इन गांवों के लोगों की जमीन एकाएक ओडिशा के लोगों के कब्जे में नहीं गई, धीरे-धीरे ऐसा हुआ। स्वर्णरेखा नदी झारखंड की ओर धीरे-धीरे कटाव करते हुए ग्रामीणों की जमीन अपने में समाती गई और अपने खेतों से ग्रामीणों की पहुंच से दूर करती गई। लगभग 30 वर्षो में स्वर्णरेखा नदी तीन किमी झारखंड में घुसी है।
30 साल पहले हुई थी खूंरेजी
ऐसा नहीं है कि ग्रामीण आसानी से अपनी जमीन भूलकर बैठे हैं। ओडिशा के लोगों से अपनी जमीन खाली करने के लिए 30 साल पहले जोरदार संघर्ष हुआ था। ओडिशा की ओर से लगभग 150 ग्रामीण और झारखंड की ओर से 200 ग्रामीणों में घंटों मारपीट हुई थी। इसके बाद झारखंड के ग्रामीणों ने ओडिशा के ग्रामीणों को खदेड़ दिया था और जमीन मुक्त करा ली थी, लेकिन नदी पर पुल न होने के कारण ओडिशा के लोगों ने फिर से जमीन पर कब्जा कर लिया।
जामशोला होते हुए 23 किमी नेदा जाकर खेती करना असंभव
जामशोला पुल होते हुए 23 किमी चलकर झारखंड के महुलडांगरी गांव के ठीक सामने स्थित ओडिशा मयूरभंज जिले के सारसकोना ब्लॉक के नेदा गांव जाकर खेती करना झारखंड के ग्रामीणों के लिए संभव नहीं है। यदि किसी तरह ग्रामीण पहुंच भी गए तो एक बार फिर खूरेंजी की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
हर तरह से ठगे महसूस कर रहे गांव वाले
महुलडांगरी सहित आस-पास के गांवों के ग्रामीण अपने आपको हर तरह से ठगे महसूस कर रहे हैं। जागरण की टीम के पहुंचने पर आंखों में बड़ी उम्मीद लिए उन्होंने अपनी परेशानी बताई। कहा कि सरकार यदि एक पुल बना दे तो हम अपने खेतों पर बड़ी आसानी से हल चला पाएंगे।
लड़ाकू विमान दुर्घटनाग्रस्त होने से चर्चा में आया था गांव
जून 2018 में वायुसेना के लड़ाकू विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद से चर्चा में आया था। विमान महुलडांगरी गांव के पास ही स्वर्णरेखा नदी के बालू में 20 फीट तक धंस गया था। दुर्घटना में वायुसेना का पायलट सुरक्षित बच गया था।