जेपी को याद कर रहा जमशेदपुर, इस शहर से था गहरा रिश्ता, जेआरडी टाटा थे गहरे मित्र

संपूर्ण क्रांति के जनक लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जयंती सोमवार 11 अक्टूबर को धूमधाम से मनाई जा रही है। जमशेदपुर शहर उन्हें बड़ी आत्मीयता से याद करता है। इसकी वजह है कि वे अक्सर यहां आते थे। जेपी टाटा संस के पूर्व चेयरमैन जेआरडी टाटा के गहरे मित्र थे।

By Rakesh RanjanEdited By: Publish:Mon, 11 Oct 2021 01:14 PM (IST) Updated:Mon, 11 Oct 2021 01:14 PM (IST)
जेपी को याद कर रहा जमशेदपुर, इस शहर से था गहरा रिश्ता, जेआरडी टाटा थे गहरे मित्र
मानगो पुल के पास जयप्रकाश नारायण की प्रतिमा पर माल्यार्पण करने आए अखिल भारतीय कायस्थ महासभा के पदाधिकारी।

जमशेदपुर, जासं। संपूर्ण क्रांति के जनक लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जयंती सोमवार 11 अक्टूबर को धूमधाम से मनाई जा रही है। जमशेदपुर  शहर उन्हें बड़ी आत्मीयता से याद करता है। इसकी वजह है कि वे अक्सर यहां आते थे। जेपी टाटा संस के पूर्व चेयरमैन जेआरडी टाटा के गहरे मित्र थे। आमतौर पर यही माना जाता है कि बड़े उद्योगपति सत्ता के साथ रहते हैं, लेकिन जेआरडी टाटा के साथ यह बात लागू नहीं होती थी।

टाटा संस के तत्कालीन चेयरमैन जेआरडी टाटा सत्ता के विरोध में आंदोलन चलाने वाले जयप्रकाश नारायण के साथ भी उतनी ही मजबूती से खड़े रहे, जितना तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ रहे।  जयप्रकाश नारायण के साथ करीब एक साल तक दिन-रात साथ रहने वाले चंद्रमोहन सिंह बताते हैं कि जेपी को जेआरडी बहुत मानते थे। जेआरडी ने अपने अधिकारियों को निर्देश दे रखा था कि जेपी जब भी जमशेदपुर आएं, उन्हें टाटा स्टील के डायरेक्टर्स बंगलो में ही ठहराया जाए। ऐसा होता भी था। जेपी आपातकाल या इमरजेंसी लागू होने के पहले 1973 में आए थे, तो आंदोलन शुरू होने के बाद 1974 में भी तीन-चार बार आए। उस दौरान उन्होंने रीगल (अब गोपाल) मैदान में बड़ी जनसभा की थी। जेपी को सुनने के लिए लाखों की तादाद में लोग आए थे।

रूसी मोदी ने की थी खूब आवभगत

जेपी जब भी जमशेदपुर आते थे। टाटा स्टील के डायरेक्टर्स बंगलो में ही ठहरते थे। 1974 के आंदोलन में भी जेपी यहां आए तो डायरेक्टर्स बंगलो में ही रहे। तत्कालीन सीएमडी रूसी मोदी ने जेआरडी के आदेश का पालन करते हुए जेपी को उसी कमरे में ठहराया, जहां जेआरडी रूकते थे। चंद्रमोहन सिंह बताते हैं कि जेआरडी ने कहा था कि जेपी को यह सुविधा आजीवन मिलनी चाहिए। हालांकि इसे संयोग ही कहेंगे कि इमरजेंसी की घोषणा होने के बाद सबसे पहले जेपी की ही गिरफ्तारी हुई। इसके बाद उनकी तबीयत ऐसी बिगड़ी कि वे कहीं नहीं जा सके। जमशेदपुर भी नहीं आए।

डायरेक्टर्स बंगलो में ही करते थे आंदोलनकारियों के साथ बैठक

जमशेदपुर प्रवास के दौरान जेपी डायरेक्टर्स बंगलो में ठहरते थे, लिहाजा उनसे मिलने-जुलने वालों का वहां तांता भी लगा रहता था। डायरेक्टर्स बंगलो में ही जेपी आंदोलनकारियों के साथ बैठक भी करते थे। उनके यहां आने पर पटना व रांची के आंदोलनकारी भी जमशेदपुर आ जाते थे। मिलने-जुलने के बहाने जेपी उन्हें दिशा-निर्देश देते थे। उस वक्त बहरागोड़ा के पूर्व विधायक व झारखंड सरकार के स्वास्थ्य मंत्री रहे डॉ. दिनेश षाड़ंगी भी जेपी आंदोलन की अगुवाई कर रहे थे। इनके अलावा जमशेदपुर पूर्वी के विधायक रहे स्व. दीनानाथ पांडेय ने भी उस आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया था। उनके साथ कई अधिवक्ता भी आंदोलन से जुड़ गए थे, छात्र नेता तो थे ही। जमशेदपुर प्रवास के दौरान सभी जेपी से खुलकर मिलते थे।

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