ऐसे आसान हुई स्‍वावलंबन की राह, मशरूम उत्पादन के साथ जैविक खाद बना रहीं महिलाएं

रासायनिक खाद से पड़ रहे दुष्प्रभाव से लोग अब सचेत होने लगे हैं। किसान जैविक खाद का उपयोग करने लगे हैं। इसके साथ ही जैविक खाद बनाने की कवायद भी जगह-जगह नजर आ रही है।

By Edited By: Publish:Sat, 29 Feb 2020 08:27 AM (IST) Updated:Sat, 29 Feb 2020 01:43 PM (IST)
ऐसे आसान हुई स्‍वावलंबन की राह, मशरूम उत्पादन के साथ जैविक खाद बना रहीं महिलाएं
ऐसे आसान हुई स्‍वावलंबन की राह, मशरूम उत्पादन के साथ जैविक खाद बना रहीं महिलाएं

जमशेदपुर, जासं। Women making organic fertilizer with mushroom production रासायनिक खाद से पड़ रहे दुष्प्रभाव से लोग अब सचेत होने लगे हैं। किसान जैविक खाद का उपयोग करने लगे हैं। इसके साथ ही जैविक खाद बनाने की कवायद भी जगह-जगह नजर आ रही है। इस काम में पुरुषों के साथ महिलाएं भी बढ़-चढ़कर शामिल होने लगी हैं। इससे महिला स्‍वावलंन की राह भी आसान हो रही है। 

मुसाबनी खड़िया कॉलोनी में 'पराली सदुपयोग संस्थान' की महिलाओं ने पर्यावरण संरक्षण और समाज को नई दिशा देने में मिसाल पेश कर रही हैं। खेतों में बेकार छोड़े गए पराली यानी पुआल को एकत्र कर संस्थान की महिलाएं मशरूम की खेती करती हैं। मशरूम उत्पादन के बाद बेकार हुए पुआल को सड़ाकर उसमें खल्ली व गोबर समेत अन्य सामग्री मिलाकर जैविक खाद तैयार कर रही हैं। इस प्रकार सोमा महतो के नेतृत्व में संस्थान की महिलाएं बेरोजगारी से निपटने के लिए बेकार पड़े पुआल का उपयोग कर रही हैं।

वरदान साबित हो रहा बेकार पुआल

धान कटनी के बाद खेतों में बेकार पड़े पुआल को पहले किसान जला देते थे। खेतों में पुआल जलाने से खेतों की उर्वरा शक्ति घटती है। आग से मिट्टी के सूक्ष्म जीव जल जाते हैं, जो कृषि के लिए आवश्यक हैं। लेकिन अब किसानों के खेत का बेकार पुआल इन दिनों महिलाओं के लिए वरदान साबित हो रहा है।

जागरूकता लाना मुख्य उद्देश्य

सोमा महतो।

सोमा पराली सदुपयोग संस्थान की प्रमुख सोमा महतो रसायन के बेतहाशा उपयोग से बंजर होती भूमि को बचाने के लिए, लोगों को जैविक कृषि के प्रति जागरूक करने के लिए और पौष्टिक मशरूम से समाज को स्वस्थ्य बनाने के लिए लोगों को जागरूक कर रही हैं। उनका मानना है कि महिला साथियों के साथ मिलकर वे समाज को सही दिशा देने की कोशिश कर रही हैं।

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