Jamshedpur News: 80 वर्ष बाद 11 परिवार के सिर से हट गई छत, बिष्टुपुर नार्दर्न टाउन में आबाद था आशियाना

कोई परिवार जहां पीढ़ियों से रह रहा हो वह जमीन या घर भले ही उसकी ना हो उस स्थान से एक भावनात्मक रिश्ता बन जाता है। आसपास के लोग हैसियत में चाहे जो हों सुख-दुख के पड़ोसी बन जाते हैं। एकाएक जब उन्हें विस्थापित कर दिया जाता है तो...

By Rakesh RanjanEdited By: Publish:Fri, 11 Jun 2021 05:46 PM (IST) Updated:Fri, 11 Jun 2021 06:38 PM (IST)
Jamshedpur News: 80 वर्ष बाद 11 परिवार के सिर से हट गई छत, बिष्टुपुर नार्दर्न टाउन में आबाद था आशियाना
बिष्टुपुर स्थित नार्दर्न टाउन इलाके में जमींदोज मकान।

जमशेदपुर, वीरेंद्र ओझा। कोई परिवार जहां पीढ़ियों से रह रहा हो, वह जमीन या घर भले ही उसकी ना हो, उस स्थान से एक भावनात्मक रिश्ता बन जाता है। आसपास के लोग हैसियत में चाहे जो हों, सुख-दुख के पड़ोसी बन जाते हैं। एकाएक जब उन्हें वहां से विस्थापित कर दिया जाता है, तो उन पर क्या गुजरती है, दूसरा महसूस नहीं कर सकता।

जी हां, ऐसा ही हुआ है कि बिष्टुपुर स्थित नार्दर्न टाउन इलाके में, जहां एक गोदाम परिसर में रह रहे 11 परिवार एकबारगी सड़क पर आ गए। जहां उनका व उनके बाप-दादा का जन्म हुआ था, वहां आज मलबा बचा है। दरअसल, इलाके के कोशी रोड पर टाटा स्टील के ठेकेदार नानजी गोविंदजी एंड संस का गोदाम था। टाटा स्टील ने वर्ष 1940 के आसपास गोदाम बनाने के लिए यह जगह दी थी। तब यहां कर्मचारी के रूप में ओडिशा के मयूरभंज, बारीपदा, क्योंझर, चक्रधरपुर, सीनी, चाईबासा इलाके से आए लोग रहते थे।

आठ परिवार अब भी सडक पर

इसी गोदाम से विस्थापित रूसी कच्छप ने बताया कि हमारा जन्म भी यहीं हुआ था। शादी भी हुई और बच्चे भी। करीब तीन वर्ष पहले टाटा स्टील ने ठेकेदार को गोदाम खाली करने के लिए नोटिस दिया था। उसी समय से हमें यहां से हटने के लिए कहा जा रहा था। आखिरकार करीब दो माह पूर्व पूरे परिसर को खाली करा दिया गया। आसपास के गोदाम भी ध्वस्त कर दिए गए। मजबूरी में हम उसी गोदाम परिसर के सामने सड़क किनारे खाली जगह पर प्लास्टिक और बोरे से झोपड़ी बनाकर रह रहे हैं। तीन परिवार के लोगों को पास के बंगले में आउटहाउस में रहने की जगह मिल गई है, जबकि आठ परिवार अब भी सड़क पर ही हैं। हम क्या करें।

पीएम आवास के लिए भी पैसा किया जमा

रूसी कच्छप बताती हैं कि तीन वर्ष पहले ही हमें आशंका हो गई थी कि यह जगह छोड़नी पड़ेगी। इसलिए उसी समय हम सभी ने प्रधानमंत्री आवास के लिए पांच-पांच हजार रुपये जमा करा दिया था। हमने सोचा था कि एक-डेढ़ वर्ष में पीएम आवास बन जाएगा, तो हम वहीं चले जाएंगे। बिष्टुपुर में ही यह आवास बनना था, लेकिन तीन वर्ष से ज्यादा हो गए, पीएम आवास का पता भी नहीं है। हमने सुना था कि सरकार सबको घर देगी, लेकिन हमें तो नहीं मिला। सरकार हमारी पीड़ा सुन लेती तो बहुत अच्छा होता। कई के छोटे-छोटे बच्चे हैं।

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