Cable Company Jamshedpur : नीलामी के कगार पर खड़ी केबुल कंपनी को बचाने के लिए सरयू ने लगाया जोर, झारखंड सरकार को प्रस्ताव बनाकर दिया, जानिए कैसे बच सकती कंपनी

cable company Jamshedpur इंकैब यद्यपि निजी क्षेत्र की कंपनी है और 1990-95 तक मुनाफा में चलती रही है। उस समय इसकी रेटिंग ‘टाटा स्टील’ से बेहतर थी। परंतु एक सुनियोजित षडयंत्र के तहत इसे बीमार बना दिया गया।

By Rakesh RanjanEdited By: Publish:Thu, 16 Sep 2021 02:20 PM (IST) Updated:Thu, 16 Sep 2021 02:20 PM (IST)
Cable Company Jamshedpur : नीलामी के कगार पर खड़ी केबुल कंपनी को बचाने के लिए सरयू ने लगाया जोर, झारखंड सरकार को प्रस्ताव बनाकर दिया, जानिए कैसे बच सकती कंपनी
झारखंड के जमशेदपुर में बंद पडी केबुल कंपनी। फाइल फोटो

जासं, जमशेदपुर : गोलमुरी स्थित इंडियन केबुल इंडस्ट्रीज या इंकैब के नाम से मशहूर कंपनी कभी देश की सबसे अग्रणी कंपनी थी। यह दूरसंचार से लेकर रक्षा विभाग तक महीन से महीन तांबे के तार की आपूर्ति करती थी। खुशहाल कंपनी में ऐसा ग्रहण लगा कि वर्ष 2020 में यह बंद हो गई। अब इसके अधिग्रहण का मामला नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल एनसीएलटी कोलकाता में चल रहा है।

विधायक सरयू राय ने इसे और इसके कर्मचारियों को बचाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। इसी क्रम में उन्होंने झारखंड सरकार को प्रस्ताव बनाकर दिया है, जिसके आधार पर राज्य सरकार एनसीएलटी में हस्तक्षेप कर सकती है। यदि ऐसा हो गया तो कंपनी नीलामी से बच सकती है।  सरयू राय बुधवार को झारखंड सरकार के मुख्य सचिव सुखदेव सिंह से मिले, उन्हें विस्तृत ब्योरा सौंपा जिसमें कहा कि आपको स्मरण होगा कि इंकैब वर्कर्स वेलफेयर सोसाइटी के अध्यक्ष के अभ्यावेदन पर आपके पृष्ठांकित निर्देश के आलोक में राजस्व, निबंधन एवं भूमि सुधार विभाग के पत्र संख्या- 4/स.भू., पूर्वी सिंह.-33/2020-1961/रा., दिनांक 05.06.2021 द्वारा उपायुक्त, पूर्वी सिंहभूम को एक प्रतिवेदन देने का निर्देश दिया गया। सुलभ संदर्भ हेतु आपके पृष्ठांकित निर्देश की छायाप्रति संलग्न है (अनु.-1)। तदुपरांत उपायुक्त, पूर्वी सिंहभूम ने पत्रांक 226/टी.एल., दिनांक 05.06.2021 द्वारा उपर्युक्त प्रतिवेदन सरकार के अपर मुख्य सचिव, राजस्व, निबंधन एवं भूमि सुधार विभाग को समर्पित किया (अनु.-2)।

उपायुक्त का प्रतिवेदन

उपायुक्त, पूर्वी सिंहभूम के प्रासंगिक प्रतिवेदन में BIFR द्वारा चार अप्रैल 2000 को इंकैब को बीमार घोषित करने से लेकर अब तक के घटनाक्रम का विस्तृत वर्णन दिया गया है, जिससे स्पष्ट है कि कतिपय निहित स्वार्थी समूहों ने जान-बूझकर मुनाफा में चल रहे इंकैब को बीमार बना दिया और इसके पुनरूद्धार के प्रयत्नों को मुकदमेबाजी की भेंट चढ़ा दिया। प्रतिवेदन के निष्कर्ष संख्या-4 में उपायुक्त, पूर्वी सिंहभूम ने कहा है कि ‘‘उक्त बीमार कंपनी के पुनरूद्धार एवं उसके श्रमिकों के हितों की रक्षा एवं कल्याण नीतिगत मामला प्रतीत होता है, जो सरकार के स्तर से ही संभव होगा।’’

अद्यतन स्थिति

अद्यतन स्थिति यह है कि NCLT, कोलकाता बेंच ने सात फरवरी 2020 को इंकैब के परिशोधन यानी दिवालिया होने का आदेश दे दिया। इसके बाद NCLT के इस आदेश के विरूद्ध ‘इंकैब वर्कर्स यूनियन’ द्वारा NCLAT, नई दिल्ली में अपील दायर की गई। NCLAT ने NCLT द्वारा इंकैब को दिवालिया घोषित करने के आदेश को निरस्त कर दिया और 16 जून 2021 को एक नया रिजोल्युशन प्रोफेशनल बहाल कर दिया। इस संबंध में उपायुक्त, पूर्वी सिंहभूम द्वारा राजस्व, निबंधन एवं भूमि सुधार विभाग को प्रेषित पत्र 247/टी.एल., दिनांक 06 जुलाई 2021 संलग्न है (अनु.-3)। फिलहाल NCLT केबुल वर्कर्स एसोसिएशन के मुकदमे की नए सिरे से सुनवाई कर रहा है। इस बीच नये रिजोल्युशन प्रोफेशनल ने कंपनी को पुनर्जीवित करने के लिए एक Expression of Interest (EoI) प्रकाशित किया है, जिसके अनुरूप प्रस्ताव देने की अवधि 16 सितंबर 2021 तक विस्तारित कर दी गई है। तदनुसार इंकैब को चलाने के लिए नये सिरे से सक्षम प्रमोटर का चयन संभव है। यदि कोई सक्षम प्रमोटर आगे नहीं आता है तो कंपनी नीलामी पर चढ़ा दी जाएगी।

इंकैब श्रमिकों का हित संरक्षण

इंकैब यद्यपि निजी क्षेत्र की कंपनी है और 1990-95 तक मुनाफा में चलती रही है। उस समय इसकी रेटिंग ‘टाटा स्टील’ से बेहतर थी। परंतु एक सुनियोजित षडयंत्र के तहत इसे बीमार बना दिया गया। BIFR द्वारा बीमार घोषित होने के बाद भी इसकी संपति की लूट बदस्तूर जारी है। यहां के श्रमिक लंबे समय से चल रही मुकदमेबाजी का शिकार हुए हैं। उनका वेतन, पीएफ, ग्रेच्युटी आदि बाकी है। उल्लेखनीय है कि इंकैब की परिसंपत्ति में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों एवं वित्तीय संस्थानों की भी हिस्सेदारी है। कंपनी एक्ट के तहत विगत 21 वर्षों से जो कारगुजारियाँ चल रही है, उससे इंकैब श्रमिकों की हकमारी हो रही है।

विचारणीय तथ्यात्मक बिंदु

- इंकैब के बीमार घोषित होने के बाद इसके मूल प्रोमोटर मलेशिया की कंपनी ‘लीडर यूनिवर्सल’ ने अपने 51 प्रतिशत शेयर अघोषित तौर पर कमला मिल्स द्वारा संचालित आरआर केबुल को मुफ्त में हस्तांतरित कर दिया और इसके कहने पर बीमार कंपनी के प्रबंधन के लिए तीन व्यक्तियों कोरी, शाह और अमारिया को नियुक्त कर दिया। लीडर यूनिवर्सल द्वारा अघोषित रूप से आरआर केबुल को मुफ्त में अपने शेयर हस्तांतरित करने पर सार्वजनिक क्षेत्र के शेयर धारक वित्तीय संस्थानों ने कोई आपत्ति नहीं की, आखिर क्यों?

- आरआर केबुल ने AAIFR के 12 अप्रैल 2006 के आदेश का उल्लंघन कर इंकैब के सुरक्षित किए गए ऋणों का 85 प्रतिशत जून-जुलाई 2006 में अपने पक्ष में कर लिया।

- वर्ष 2000 से अबतक चल रही मुकदमेबाजी में कंपनी एक्ट के हिसाब से निर्णय होते रहे, परंतु श्रमिकों के हितों का ध्यान नहीं रखा गया। तब से अब तक बड़ी संख्या में श्रमिक सेवानिवृत हो गए, कई की मृत्यु हो गई और कई की सेवा अभी भी बरकरार है। ये सभी श्रमिक बकाया वेतन, भविष्य निधि, ग्रेच्युटी आदि के लाभ से वंचित है। श्रमिकों की कुल संख्या 1800 के आसपास है। ये और इनके निर्दोष परिवार कैसी त्रासदी के शिकार हुए हैं, इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।

- दिल्ली हाईकोर्ट ने 29 अप्रैल 2013 के अपने निर्णय में आरआर केबुल के रमेश घमंडीराम गोवानी को इंकैब के निदेशक पद से हटा दिया, परंतु उनका हित साधन करने वाले तीन व्यक्ति प्रबंधन में अभी भी बरकरार हैं। दिल्ली हाईकोर्ट ने 24 अप्रैल 2014 के फैसले के पैराग्राफ-4 में कहा है कि कमला मिल्स, आरआर केबुल आदि की रुचि इंकैब को चलाने में नहीं, बल्कि इसकी संपत्ति हड़पने में है। दिल्ली हाईकोर्ट ने नौ अप्रैल 2009 के अपने फैसला के पैराग्राफ-22 में और छह जनवरी 2016 के फैसला के पैराग्राफ-7 में पुनः इस निष्कर्ष को दोहराया है।

- छह जनवरी 2016 के फैसला में दिल्ली हाईकोर्ट ने इंकैब पर वित्तीय एवं अन्य दायित्वों को 21.63 करोड़ रुपये में समेट दिया है। जबकि मुकदमाबाजों ने और वित्तीय संस्थानों ने इसे दो हजार करोड़ रुपये बताया है। इस पर NCLT, BIFR, रिजोल्युशन प्रोफेशनल आदि किसी ने ध्यान नहीं दिया है। यह जांच का विषय है।

- उपायुक्त, पूर्वी सिंहभूम द्वारा समर्पित विस्तृत प्रतिवेदन में मुकदमेबाजी का जिक्र तो विस्तार से है, परंतु दिल्ली हाईकोर्ट के फैसलों के उपर्युक्त निष्कर्षों तथा मेसर्स लीडर यूनिवर्सल द्वारा 51 प्रतिशत शेयर अघोषित तौर पर मुफ्त में आरआर केबुल को हस्तांतरित किए जाने के बारे में तथा इस पर सार्वजनिक क्षेत्र के वित्तीय संसाधनों की चुप्पी के बारे में कोई उल्लेख नहीं है। यहां तक कि विगत 11 वर्षों से इंकैब का वार्षिक लेखा और अंकेक्षण तक नहीं कराया गया है, जो कि इसके पुनरूद्धार के लिए आवश्यक है।

- इतना ही नहीं लीडर यूनिवर्सल अथवा आरआर केबुल ने कभी भी इंकैब की वार्षिक आमसभा नहीं बुलाई। यदि इनके द्वारा आमसभा बुलाई गई होती तो स्थिति अलग होती और श्रमिकों के हितों पर कुठाराघात नहीं हुआ होता।

- BIFR ने एक अगस्त 2016 को इंकैब प्रबंधन को दो सप्ताह के भीतर आय-व्यय का लेखा-जोखा जमा करने का निर्देश दिया और सात सितंबर 2016 को सुनवाई की तिथि निश्चित किया। इस बीच BIFR के अध्यक्ष सेवानिवृत हो गए और निर्णय अधर में लटक गया। ऐसी स्थिति में बिना लेखा-जोखा सार्वजनिक किये रिजोल्युशन प्रोफेशनल द्वारा EoI प्रकाशित करने का क्या तुक है? क्या ऐसा इसलिए किया गया है कि कोई प्रस्ताव नहीं आए और इंकैब को नीलाम कर दिया जाए?

- धीरे-धीरे आरआर केबुल के रमेश घमंडीराम गोवानी ने इंकैब का पूरा नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया और इसकी परिसंपत्तियों और मशीनरियों की लूट करते रहे, इंकैब के व्यापार से प्राप्त होने वाले बकाया, ब्याज आदि का दुरूपयोग करते रहे और इंकैब की परिसंपत्तियों की बिक्री भी करते रहे। यह जांच का विषय है कि दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा 29 अप्रैल 2013 को इन्हें निदेशक पद से हटा दिया गया, फिर भी इनका नियंत्रण इंकैब पर कैसे बरकरार रहा? अनुमान है कि इन्होंने इंकैब की करीब 200 करोड़ की परिसंपत्तियों एवं बिक्री से प्राप्त राशि आदि का गबन किया है।

उपर्युक्त विवरण के आलोक में श्रमिकों के हितों की रक्षा एवं उनके कल्याण के लिए, इंकैब की परिसंपत्तियों की हेराफेरी पर कार्रवाई के लिए और सार्वजनिक क्षेत्र के वित्तीय संस्थानों की चुप्पी का रहस्योद्घाटन करने के लिए राज्य सरकार का हस्तक्षेप इस प्रकरण में आवश्यक हो गया है।

टाटा स्टील लिमिटेड की भूमिका

उपायुक्त, पूर्वी सिंहभूम के प्रतिवेदन से स्पष्ट है कि दिल्ली हाईकोर्ट ने टाटा स्टील लिमिटेड को इस मामले में सर्वोतम बोली लगाने वाला अभ्यर्थी माना था। टाटा स्टील ने भी बीच के दिनों में इंकैब के पुनरूद्धार में पर्याप्त अभिरुचि प्रदर्शित किया था। परन्तु जब रिजोल्युशन प्रोफेशनल ने हाल में Expression of Interest (EoI) निकाला तो टाटा स्टील ने चुप्पी साध ली, बोली नहीं लगाई। अवधि विस्तार होने पर भी इन्होंने EoI में अपना प्रस्ताव अभी तक नहीं दिया है। ध्यान देने योग्य बात है कि टिस्को (टाटा स्टील लि.) ने 99 साल की लीज पर 177 एकड़ जमीन इंकैब को लीज पर दी थी, जिसकी अवधि 14 जुलाई 2019 को समाप्त हो गई। इंकैब और टिस्को के बीच हुए लीज समझौता में उल्लेख है कि इंकैब के बंद होने की स्थिति में यह जमीन राज्य सरकार की अनुमति से टाटा स्टील के पास जा सकेगी। ऐसी स्थिति में आज की तारीख में इंकैब की 177 एकड़ जमीन का असली मालिक राज्य की सरकार है। यदि रिजोल्युशन प्रोफेशनल द्वारा प्रकाशित EoI के आधार पर इंकैब के पुनरूद्धार के लिए कोई सक्षम प्रोमोटर नहीं आता है, तब इस भूखंड पर या तो टाटा स्टील लि. औद्योगिक गतिविधि आरंभ कर केबुल कर्मियों का बकाया भुगतान करे अथवा राज्य सरकार इस भूमि पर औद्योगिक निवेश आमंत्रित कर केबुल कर्मियों के हितों का संरक्षण करे। उपर्युक्त विवरण के आलोक में पर्याप्त आधार है कि इस 177 एकड़ जमीन पर आर्थिक गतिविधि आरंभ करने, इंकैब में निहित स्वार्थी तत्वों की मिलीभगत उजागर करने के लिए और इंकैब के श्रमिकों का बकाया भुगतान सुनिश्चित करने के लिए राज्य सरकार इस मामले में हस्तक्षेप करे। अनुरोध है कि NCLT में राज्य सरकार की ओर से एक हस्तक्षेप याचिका दायर की जाए और इंकैब के श्रमिकों के बकाया भुगतान एवं उनके हितों का संरक्षण के लिए शीघ्र कदम उठाया जाए।

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