Jamshedpur Health Line: ना तुलसी, ना गंगाजल, पढे चिकित्सा जगत की अंदरूनी खबर

Jamshedpur Health Line ऐसा भयावह दृश्य कभी नहीं देखा। रूह कांप रही है। नजर के सामने तड़प-तड़प कर मरीज मर रहे हैं और लोग चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं। किसी को बेड नहीं मिल पा रह है तो किसी को ऑक्सीजन।

By Rakesh RanjanEdited By: Publish:Sat, 17 Apr 2021 05:26 PM (IST) Updated:Sat, 17 Apr 2021 06:08 PM (IST)
Jamshedpur Health Line: ना तुलसी, ना गंगाजल, पढे चिकित्सा जगत की अंदरूनी खबर
चार कंधा तो छोड़ दीजिए, तुलसी, गंगाजल और कफन भी नहीं मिल रही।

जमशेदपुर, अमित तिवारी। ऐसा भयावह दृश्य कभी नहीं देखा। रूह कांप रही है। नजर के सामने तड़प-तड़प कर मरीज मर रहे हैं और लोग चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं। किसी को बेड नहीं मिल पा रहा है तो किसी को ऑक्सीजन। कोई अस्पताल पहुंचने से पूर्व एंबुलेंस तो कोई घर में ही दम तोड़ रहा है। इलाज के अभाव में रोज न जाने कितनी जानें जा रही है।

जिला के मुखिया कहे जाने वाले एक पूर्व सिविल सर्जन को भी बेड नसीब नहीं हो सका और उनकी जान चली गई। व्यवस्था तो बदहाल है ही, कोरोना उससे भी अधिक खतरनाक है। पूरा परिवार भरा-पड़ा है लेकिन कोई हाथ नहीं लगा रहा है। मरने के बाद चार कंधा तो छोड़ दीजिए, तुलसी, गंगाजल और कफन भी नहीं मिल रहा। सीधा पैकिंग और श्मशान घाट। यहां भी लंबी लाइनें लगी हुई है। शव जलाने के लिए मारपीट हो रही है।

डॉक्टर साहब भी छुपा रहें रिपोर्ट

आम जनता की बात तो छोड़िए डॉक्टर साहब भी अपना कोरोना रिपोर्ट छुपा रहे हैं। उनको डर है कि सबको पता चल जाएगा तो उनका क्लीनिक व घर सील हो जाएगा। जबकि उन्हें पहल करते हुए अपनी रिपोर्ट सार्वजनिक करनी चाहिए, ताकि उनके संपर्क में आए लोगों की जांच हो सके और समय पर उनके शरीर में फैले वायरस का पता चल सके। लेकिन, ऐसा नहीं हो रहा है। यही नहीं और भी शहर के कई बड़े डॉक्टर हैं जो रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं करना चाहते हैं। यहां तक कि जिला सर्विलांस विभाग में फोन कर पैरवी भी करवा रहे हैं कि मेरा घर सील नहीं होना चाहिए। आगे क्या करना है, आप देख लीजिए। इधर, टाटा मुख्य अस्पताल (टीएमएच) के दो दर्जन से अधिक डॉक्टर पॉजिटिव हो गए हैं। इसमें कई चिकित्सकों की स्थिति गंभीर है। इन चिकित्सकों के लिए आप दुआ कीजिए, ताकि जल्द से जल्द स्वस्थ हो जाएं।

इलाज कौन करेगा

कोरोना की पहली लहर जैसे ही थोड़ी कम हुइ पूर्वी सिंहभूम जिले से लगभग 300 स्वास्थ्य कर्मियों को हटा दिया गया। कोरोना काल के दौरान इन्हें फ्रंट लाइन वर्कर कहा जा रहा था। जान जोखिम में डालकर इन्होंने दिन-रात मरीजों की सेवा की। उम्मीद थी कि कोरोना खत्म होते ही कुछ अच्छा होगा लेकिन उससे पूर्व ही इन्हें हटा दिया गया। ये सभी आउटसोर्स पर तैनात थे। इसमें टेक्नीशियन, नर्स, कंप्यूटर ऑपरेटर, फार्मासिस्ट, स्वीपर सहित अन्य कर्मचारी शामिल थे। अब कोरोना की दूसरी लहर आ गई है। पहले से भी खतरनाक है। गांव की चिकित्सा ठप पड़ गई है। पहले जैसा न तो संदिग्धों का नमूना लिया जा रहा है और न ही चिकित्सा हो पा रही है। मरीजों की परेशानी बढ़ गई है। डॉक्टर पहले से ही कम है। अब तो आधे से अधिक संक्रमित भी हो रहे हैं। कर्मचारी उम्मीद में बैठे हुए हैं कि फिर से उन्हें बुलाया जाएगा।

फंसा सकता खतरनाक ग्रुप

तीन-चार लोगों का एक बाहरी ग्रुप बना हुआ है, जो सिविल सर्जन कार्यालय को अपने कब्जे में लेना चाहता है। ग्रुप के सदस्य अपनी पैठ जमाने के लिए आय दिनों सिविल सर्जनकार्यालय का चक्कर लगाते हैं। वह टकटकी लगाए रहते हैं कि कहां क्या फायदा होने वाला है। क्या टेंडर निकलते वाला है। उसके बाद उसमें भिड़ जाते और सफलता के लिए कर्मचारी से लेकर पदाधिकारी पर दबाव बनाते। इतना ही नहीं, काम पूरा नहीं होने से ब्लैकमेलिंग व बदनाम करने की भी साजिश रचते हैं। पूर्व सिविल सर्जन इसके भुक्तभोगी रह चुके हैं। ऐसे में फिर से यह ग्रुप सक्रिय हो गया है। ग्रुप के सदस्य मीडिया में खबर छपवाने की भी धमकी देते हैं। हालांकि, नए सिविल सर्जन काफी तेज-तरार्र हैं। लोगों के चेहरा देख उसका मकसद समझ लेते हैं। फिर भी उन्हें सतर्क होने की जरूरत है। क्योंकि ग्रुप के सदस्य उनकी एक गलती को पकड़कर भुनाना चाहेगा।

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