Lok Sabha Election 2019 : जीवेत शरद: शतम् : कार्यकर्ताओं को भात खिला कर निकल पड़ते थे प्रचार में
Lok Sabha Election 2019. पहले चुनाव प्रचार के दौरान पार्टी कार्यकर्ताओं को अपने घर के चावल का भात बनाकर जरूर खिलाना पड़ता था। वे इसी में खुश हो जाते थे।
चाकुलिया, पंकज मिश्र। पहले चुनाव में धनबल का बोलबाला नहीं था। न कोई पैसा मांगता था, और न कोई देता था। हां, चुनाव प्रचार के दौरान पार्टी कार्यकर्ताओं को अपने घर के चावल का भात बनाकर जरूर खिलाना पड़ता था। वे इसी में खुश हो जाते थे। यह कहना है 20 साल तक मुखिया रहे और एकबार विधानसभा का चुनाव लड़ चुके चाकुलिया प्रखंड क्षेत्र के कालापाथर निवासी अंबर हांसदा उर्फ हंबाई हांसदा का।
जीवन के 101 बसंत देख चुके अंबर हांसदा अब भी पूरी तरह फिट हैं। ब्लड शुगर एवं हाइपरटेंशन जैसी उम्र जनित बीमारियां उन्हें अभी तक छू नहीं पाई हैं। दैनिक जागरण के साथ अपने पुराने दिनों की याद साझा करते हुए हांसदा ने बताया कि देश आजाद होने के बाद पहली बार 1952 में उन्होंने वोट डाला था। 1958 में पहली बार चुनाव लड़े। जोड़ा पत्ता चुनाव चिह्न् पर निर्वाचित होकर मुखिया बने।
बीस वर्ष रहे कालापाथर के मुखिया
इसके बाद 20 वर्षों तक कालापाथर पंचायत के मुखिया रहे। बीच में सिर्फ एक बार भोलानाथ मांडी मुखिया बने थे। 1972 में झारखंड पार्टी के टिकट पर नगाड़ा चुनाव चिह्न् पर विधानसभा का चुनाव भी लड़े। लेकिन कांग्रेस पार्टी के शिबू रंजन खां से पराजित हो गए। उस दौर में चुनाव प्रचार कैसे होता था, यह पूछने पर उन्होंने बताया कि अपने खेत में उपजे धान के चावल का भात बनाकर कार्यकर्ताओं को खिलाते थे और चुनाव प्रचार में निकल जाते थे। साइकिल से गांव गांव घूमते थे। गांवों में धमसा बजाकर प्रचार किया जाता था। पहले के जनप्रतिनिधि और अब के जनप्रतिनिधि में क्या फर्क है, पूछने पर कहते हैं कि पहले जनता की सेवा के लिए लोग राजनीति में आते थे। अब वह बात नहीं दिखती। अब तो राजनीति कमाई का धंधा बन गया है।
- दैनिक जागरण आपकी लंबी उम्र की कामना करता है।