Jharkhand Eduacation: बोगी में बैठे बच्चे तो बिना पटरी के चल पड़ा स्कूल

झारखंड के पूर्वी सिंहभूम के पोटका प्रखंड के टांगराइन में पांच किलोमीटर दूर से भी बच्चे पढ़ने आते हैं। हर किसी को रेलगाड़ी का लुक भा रहा है। यह संभव हुआ है प्रधानाध्यापक अरविंद तिवारी की परिकल्पना से। इस स्कूल की पूरे सूबे में सराहना हो रही है।

By Rakesh RanjanEdited By: Publish:Wed, 20 Oct 2021 05:00 PM (IST) Updated:Wed, 20 Oct 2021 05:00 PM (IST)
Jharkhand Eduacation: बोगी में बैठे बच्चे तो बिना पटरी के चल पड़ा स्कूल
पोटका प्रखंड के टांगराइन में स्थित उत्क्रमित मध्य विद्यालय।

वीरेंद्र ओझा, जमशेदपुर । कोरोना के बाद आज बड़े-बड़े स्कूल बच्चों की कमी का रोना रो रहे हैं, जबकि पूर्वी सिंहभूम जिला के सुदूर ग्रामीण इलाके का एक स्कूल अपनी उपलब्धि से चहक रहा है। हर साल यहां 35-40 बच्चे ही दाखिला लेते थे, इस बार 75 बच्चों ने दाखिला लिया है। यह सब संभव हुआ है एक शिक्षक की बदौलत, जिन्होंने शत प्रतिशत बच्चों को मैट्रिक पास कराने का जुनून पाल रखा है।

जिला मुख्यालय से करीब 45 किलोमीटर दूर पोटका प्रखंड के टांगराइन स्थित उत्क्रमित मध्य विद्यालय में कोरोना के दौरान जब बच्चे स्कूल नहीं आ रहे थे, तब भी प्रभारी प्रधानाध्यापक अरविंद तिवारी उन बच्चों की चिंता कर रहे थे। गांव-गांव घूमकर बच्चों को उनके घर तक जाकर पढ़ा रहे थे। गणित व अंग्रेजी का ज्ञान दे रहे थे। कोरोना के बाद जब स्कूल खुला तो बच्चों ने अपने स्कूल को अलग रूप में देखा। ऐसा लगा कि रेलवे प्लेटफार्म पर बिना पटरी के एक ट्रेन खड़ी है। बोगी की शक्ल में बनी कक्षा में बच्चे प्रवेश करते ही चहकने लगते हैं। अपने स्कूल के अनूठे रूप को देखकर इतराते बच्चे सेल्फी भी लेते हैं, जिसे दिखाकर अपने सगे-संबंधियों, परिचितों-दोस्तों से स्कूल की खूबियां सुनाते नहीं अघाते हैं।

अभी पढ रहे 269 बच्चे

तिवारी बताते हैं कि यह स्कूल तो 1952 में स्थापित हुआ था, लेकिन मैंने यहां जनवरी 2017 से कला शिक्षक के पद पर योगदान दिया। उस वक्त यहां करीब 136 बच्चे पढ़ते थे। आज यहां 269 बच्चे हैं। झारखंड-ओडिशा की सीमा पर स्थित इस स्कूल में कोरोना के बाद कई ऐसे बच्चे भी आए, जो निजी स्कूल में पढ़ते थे। दो बच्चे ऐसे भी आए हैं, जो ओडिशा के एक स्कूल में छात्रावास में रहकर पढ़ते थे। कुछ बच्चे पांच किलोमीटर दूर सिंगली गांव से भी आ रहे हैं, जबकि उनके गांव से डेढ़ किलोमीटर दूरी पर भी एक स्कूल है। यहां इतनी गरीबी है कि पूछिए मत। आइएएस-आइपीएस तो दूर, मैं यदि सभी बच्चों को मैट्रिक तक पढ़ने के लिए भी प्रेरित कर पाया, तो यही बड़ी उपलब्धि होगी।

तीरंदाजी प्रशिक्षण देने वाला इकलौता सरकारी स्कूूल

टांगराइन का यह सरकारी स्कूल शायद पूरे राज्य का इकलौता सरकारी स्कूल है, जहां नियमित रूप से तीरंदाजी का प्रशिक्षण दिया जाता है। इसके अलावा मिशन आर्मी, दो पन्ना रोज, किचन गार्डन, कहानी मेला, जन्मदिन पर पौधारोपण, मशरूम उत्पादन केंद्र, हैंडीक्राफ्ट, दुग्ध उत्पादन, आभूषण बनाने आदि का प्रशिक्षण भी दिया जाता है। विद्यालय में बच्चों द्वारा प्रत्येक महीने मासिक पत्रिका दीया का प्रकाशन भी किया जाता है। जिसमें विद्यालय में आयोजित गतिविधियों व बच्चों की रचनाओं को जगह मिलती है। बच्चों में लेखन क्षमता व संवाद कौशल के विकास के लिए समय-समय पर लेखन कार्यशाला व नाट्य कार्यशाला का आयोजन भी किया जाता है।

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