जीना है तो गेहूं छोड़ो....., अमेरिका में चल रहा गेहूं त्यागने का अभियान, इसी से बढ़ रहा डायबिटीज

अभी तक तो यही पता था कि गेंहूं स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है। लेकिन एक अमेरिकी शोध में यह पता चला है कि गेंहूं खाने से मोटापा बढ़ता है। ऐस में भारतीयों की तरह मक्का बाजरा की रोटी खानी चाहिए।

By Jitendra SinghEdited By: Publish:Wed, 04 Aug 2021 05:54 PM (IST) Updated:Wed, 04 Aug 2021 05:54 PM (IST)
जीना है तो गेहूं छोड़ो....., अमेरिका में चल रहा गेहूं त्यागने का अभियान, इसी से बढ़ रहा डायबिटीज
अमेरिका में चल रहा गेहूं त्यागने का अभियान, इसी से बढ़ रहा डायबिटीज

जमशेदपुर, जासं। अमेरिका के एक हृदय रोग विशेषज्ञ हैं डॉ विलियम डेविस। उन्होंने 2011 में एक पुस्तक लिखी थी, जिसका नाम था "Wheat belly गेंहू की तोंद"। यह पुस्तक अब फूड हैबिट पर लिखी सर्वाधिक चर्चित पुस्तक बन गई है। पूरे अमेरिका में इन दिनों गेंहू को त्यागने का अभियान चल रहा है। बहुत जल्द यह अभियान यूरोप होते हुए भारत भी आएगा। यह पुस्तक ऑनलाइन भी उपलब्ध है और कोई फ़्री में पढ़ना चाहे तो भी मिल सकती है।

जमशेदपुर की आयुर्वेद व प्राकृतिक चिकित्सा विशेषज्ञ सीमा पांडेय बताती हैं कि इसमें चौंकाने वाली बात यह है कि डा. डेविस का कहना है कि अमेरिका सहित पूरी दुनिया को अगर मोटापे, डायबिटीज और हृदय रोगों से स्थायी मुक्ति चाहिए तो उन्हें पुराने भारतीयों की तरह मक्का या मकई, बाजरा, जौ, चना, ज्वार या इन सबका मिक्सचर (समेल) अनाज ही खाना चाहिए, गेंहू नहीं। भारत का हाल यह है कि 1980 के बाद से लगातार सुबह शाम गेहूं खा खाकर हम महज 40 वर्षों में मोटापे और डायबिटिज के मामले में दुनिया की राजधानी बन चुके हैं।

भारत की फसल नहीं थी गेहूं

आज इस संदर्भ में मेरे मित्र अक्षय सिंह नींदड़ (जयपुर) ने चर्चा छेड़ी, तो यह पोस्ट लिख रही हूं। गेहूं मूलतः भारत की फसल नहीं है। यह मध्य एशिया और अमेरिका की फसल मानी जाती है और आक्रांता बाबर के भारत आने के साथ यह अनाज भारत आया था। उससे पहले भारत में जौ की रोटी बहुत लोकप्रिय थी और मौसम अनुसार मक्का, बाजरा, ज्वार आदि। भारतीयों के मांगलिक कार्यों में भी यज्ञवेदी या मंदिरों में जौ अथवा चावल (अक्षत) ही चढ़ाए जाते रहे हैं। प्राचीन ग्रंथों में भी इन्हीं दोनों अनाजों का अधिकतम जगहों पर उल्लेख है।

दामाद आने पर ही बनती थी गेहूं की रोटी

ब्रह्मपुरी (जयपुर) निवासी प्रशासनिक अधिकारी नृसिंह की बहन विजयकांता भट्ट (81 वर्षीय) अम्मा कहती हैं कि 1975-80 तक भी आम भारतीय घरों में बेजड़ (मिक्स अनाज) की रोटी या जौ की रोटी का प्रचलन था, जो धीरे-धीरे खतम हो गया। 1980 के पहले आम तौर पर घरों में मेहमान आने या दामाद के आने पर ही गेहूं की रोटी बनती थी और उस पर घी लगाया जाता था।अन्यथा जौ ही मुख्य अनाज था। आज घरवाले उसी बेजड़ की रोटी को चोखी ढाणी में खाकर हजारों रुपए खर्च कर देते हैं। हम अक्सर अपने ही परिवारों में बुजुर्गों के लंबी दूरी पैदल चल सकने, तैरने, दौड़ने, सुदीर्घ जीने, स्वस्थ रहने के किस्से सुनते हैं। वे सब मोटा अनाज ही खाते थे, गेहूं नहीं। एक पीढ़ी पहले किसी का मोटा होना आश्चर्य की बात होती थी। आज 77 प्रतिशत भारतीय ओवरवेट हैं और यह तब है जब इतने ही प्रतिशत भारतीय कुपोषित भी हैं। फ़िर भी 30 पार का हर दूसरा भारतीय अपनी तोंद घटाना चाहता है।

कम समय में आसानी से बनने की वजह से हुई लोकप्रिय

गेहूं की लोच ही उसे आधुनिक भारत में लोकप्रिय बनाए हुए है, क्योंकि इसकी रोटी कम समय और कम आग में आसानी से बन जाती है। पर यह अनाज उतनी आसानी से पचता नहीं है। समय आ गया है कि भारतीयों को अपनी रसोई में 80-90 प्रतिशत अनाज जौ, ज्वार, बाजरे आदि रखना चाहिए और 10-20 प्रतिशत गेहूं।

हाल ही कोरोना ने जिन एक लाख लोगों को भारत में लीला है। उनमें से डायबिटिज वाले लोगों का प्रतिशत 70 के करीब है। वाकई गेहूं त्यागना ही पड़ेगा। अंत में एक बात और भारत के फिटनेस आइकन 54 वर्षीय टॉल डार्क हैंडसम (टीडीएच) मिलिंद सोमन गेहूं नहीं खाते हैं। मात्र बीते 40 बरसों में यह हाल हो गया है तो अब भी नहीं चेतोगे। अगली पीढ़ी के बच्चे डायबिटीज लेकर ही पैदा होंगे।

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