देशी गाय के दूध से बने उत्पाद प्रकृति के लिए हैं सुरक्षित और मनुष्यों के लिए स्वास्थ्यप्रद

प्राकृतिक चिकित्सा विशेषज्ञ सीमा पांडेय बता रही हैं कि देशी गाय के दूध से बना प्रत्येक उत्पाद प्रकृति के लिए सुरक्षित और मनुष्यों के लिए स्वास्थ्यप्रद है। कोरोना काल में यह बात भी सामने आ चुकी है कि गोशाला में काम करने वाले किसी को कोरोना संक्रमण छू नहीं पाया।

By Rakesh RanjanEdited By: Publish:Sun, 01 Aug 2021 12:00 AM (IST) Updated:Wed, 11 Jan 2023 11:34 AM (IST)
देशी गाय के दूध से बने उत्पाद प्रकृति के लिए हैं सुरक्षित और मनुष्यों के लिए स्वास्थ्यप्रद
आइए जानें, गाय के धार्मिक, आध्यात्मिक व चिकित्सीय गुण।

जमशेदपुर, जागरण संवाददाता। कोरोना काल में आक्सीजन के महत्व से हर कोई अवगत हो गया, इसमें अब कोई संदेह नहीं है। इसके बाद धरती पर आक्सीजन की उपलब्धता के लिए आक्सीजन प्लांट लगाने की होड़ मची। जमशेदपुर की प्राकृतिक चिकित्सा विशेषज्ञ सीमा पांडेय बता रही हैं कि देशी गाय के दूध से बना प्रत्येक उत्पाद प्रकृति के लिए सुरक्षित और मनुष्यों के लिए स्वास्थ्यप्रद है।

कोरोना काल में यह बात भी सामने आ चुकी है कि गोशाला में काम करने वाले किसी को कोरोना संक्रमण छू नहीं पाया। जमशेदपुर के टाटानगर गोशाला व पूर्वी सिंहभूम जिला स्थित चाकुलिया के गोशाला में इस बात का प्रमाण मिल चुका है। इसलिए अब इसके लिए अलग से यह सुबूत देने की आवश्यकता नहीं है कि गाय आक्सीजन प्लांट के समान है। आइए जानें, गाय के धार्मिक, आध्यात्मिक व चिकित्सीय गुण। माघी पूनम या पूर्णिमा के दिन शाम को गोघृत का दीपक चेतन करने वाला कुल दीपक बन जाता है। गोबर और गौघृत से बनी नवग्रह धूप चेतन करने से वातावरण शुद्ध, सात्विक और सकरात्मक बनता है। मनोकामना पूरी होती है। सब बाधाएं, समस्याएं दूर हो जाती है। गौ माता की पीठ या गले पर 10 मिनट हाथ फेरने से रक्तचाप संतुलित हो जाता है। गौ माता को भी सुख मिलता है। गौ माता की चरण रज से तिलक लगाने से सफलता निश्चित मिलती है। सभी देवी-देवताओं का गौ माता में वास होता है। अतः गोपूजन से सभी देवी-देवताओं की पूजा हो जाती है। गौ माता के कान में अपनी समस्या या मनोकामना कहें। शीघ्र पूरी होगी। भगवान श्रीकृष्ण ने गौ सेवा हेतु जन्म लिया। उनका बचपन गायों को चराने में, गौ माता के पीछे-पीछे चलने में बीता। विप्र धेनु सुर संत हित लिन्ह मनुज अवतार। श्रीराम ने भी गौरक्षा के लिए ही अवतार लिया था। रोज हजारों गायों का दान करते थे। स्वतंत्रता आंदोलन की शुरुआत गाय की चर्बी लगे कारतूसों को मंगल पांडे द्वारा छूने से मना करने के कारण हुई थी। प्राचीन भारत के हर घर में गौपालन होता था। इसी कारण भारतवासी समृद्ध थे और भारत सोने की चिड़िया कहलाता था। सभी एक गौ गोद ले 1000/2000 रुपये प्रतिमाह गौशाला या गौपालक को दे सकते हैं। नहीं तो गौमय उत्पाद भी खरीद कर गौ सेवा कर सकते हैं, इस प्रकार का परोक्ष गौपालन भी अत्यंत कल्याणकारी है। लॉर्ड मैकाले ने पूरे अखंड भारत का भ्रमण कर अनुभव किया था कि भारत की सुख-समृद्धि का राज गौ और गुरुकुल है। एक स्वस्थ गाय प्रतिदिन 10 किलो गोबर और 5 लीटर गौमूत्र देती है। 1 किलो गोबर से 33 किलो खाद बनती है। इस खाद में सभी 18 आवश्यक सूक्ष्म तत्व हैं, जैसे कि मैंगनीज, फास्फेट, पोटेशियम, कैल्शियम, लोहा, कोबाल्ट, सिलिकॉन आदि। जबकि कृत्रिम खाद में 3 मिनरल होते हैं। अतः गोबर की खाद, कृत्रिम खाद से अनेक गुना अच्छी होती है। खाद की कीमत 6 रुपये प्रति किलो हो तो 1 साल में 1 गौ माता 33 x 10 x 365 x 6 = 7,22,600 रुपये देती है। अर्थात गौ मांं साक्षात लक्ष्मी का स्वरूप है। उसका सम्यक दोहन हो तो उसमें अनन्त लक्ष्मी है।  गोमूत्र महौषधि है। गोमूत्र पीने से 108 बीमारियों ठीक होती हैं। गोमूत्र में नीम करंज आदि के पत्ते डाल कर कीटनाशक बनता है जो खेती व अन्न की रक्षा करता है। यह 50 से 200 रुपये प्रति लीटर तक बिक सकता है। अर्थात गोबर से ज्यादा लाभ गोमूत्र से मिल सकता है। जमशेदपुर समेत अनेक जगहों में गोबर से लकड़ी बन रही है, जिसे गो-काष्ठ कहा जाता है। यह शवदाह के काम आ रही है। इससे दोहरी रक्षा होती है, पेड़+गोवंश दोनों की रक्षा होती है।

Disclaimer: हमारी शुरुआती खबर एक प्राकृतिक चिकित्सा विशेषज्ञ से बातचीत के आधार पर बनाई गई थी। फैक्टचेक करने पर यह ज्ञात हुआ कि खबर में कुछ तथ्यात्मक गलतियां हैं, जिन्हें सुधार दिया गया है। पाठकों को हुई असुविधा के लिए हम खेद जताते हैं और jagran.com की पाठकों को तथ्यपरक और सही सूचना देने की प्रतिबद्धता के तहत इस खबर को अपडेट कर दिया गया है।

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