विदेश के किस देश में कैसे होती है स्कूल-कालेज की पढ़ाई, बता रही हैं उन देशों की शिक्षिकाएं

अंतरराष्ट्रीय ई-पत्रिका गृहस्वामिनी के तत्वाधान में देश- विदेश के लेखकों ने अपने यहां की शिक्षा नीति पर प्रकाश डाला। एक-दूसरे के शैक्षणिक गतिविधियों के बारे में जानकारी दी। इस तरह का कायर्क्रम हर साल शिक्षक दिवस के आवसर पर आयोजित किया जाता है।

By Jitendra SinghEdited By: Publish:Tue, 07 Sep 2021 12:52 PM (IST) Updated:Tue, 07 Sep 2021 12:52 PM (IST)
विदेश के किस देश में कैसे होती है स्कूल-कालेज की पढ़ाई, बता रही हैं उन देशों की शिक्षिकाएं
गृहस्वामिनी अंतरराष्ट्रीय ई-पत्रिका के सौजन्य से आयोजित वेबिनार में शामिल लेखिकाएं

जमशेदपुर, जासं। गृहस्वामिनी अंतरराष्ट्रीय ई-पत्रिका के तत्वाधान में सर्वपल्ली डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती पर प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले 'शिक्षक दिवस' के अवसर पर देश-विदेश से शिक्षा प्रणाली से जुड़े विभिन्न आमंत्रित अतिथियों ने अपने विचार मंच से साझा किया, जिसमें कैलिफोर्निया (अमेरिका) से रचना श्रीवास्तव, कनाडा से अनुपम मिठास, ग्रेट ब्रिटेन से अरुणा सभरवाल और जमशेदपुर भारत से जूही समर्पिता ने अपने-अपने देश की शिक्षा व्यवस्था पर प्रकाश डाला। पिछले 17 सालों से कैलिफ़ोर्निया में शिक्षा क्षेत्र में अपना योगदान दे रही रचना श्रीवास्तव ने बताया कि नर्सरी और उससे नीचे की कक्षाओं में बच्चों को खेल-खेल में शिक्षा दी जाती है और उन्हें मोटर स्किल्स के माध्यम से धीरे-धीरे लिखने की ओर बढ़ाया जाता है, ताकि वे स्कूल के वातावरण में आहिस्ता-आहिस्ता ढलते चले जाएं और धीरे-धीरे उनकी पढ़ाई के क्षेत्र का विस्तार होता चला जाता है। मिडिल स्कूल में भी शिक्षा पर इंटरएक्टिव लर्निंग द्वारा बल दिया जाता है, जहां बच्चे खुद पढ़ते हैं, अपने अंदर विचार मंथन करते हैं और फिर शिक्षक से चर्चा करते हैं‌। वहां इतिहास, अंग्रेजी, गणित और विज्ञान के साथ-साथ शारीरिक शिक्षा का भी अध्ययन करना पड़ता है और शारीरिक शिक्षा में मिलने वाला ग्रेड का रिजल्ट पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा बच्चों को दो पाठ्येत्तर क्रियाकलाप में भी भाग लेना पड़ता है, जिनके विकल्पों की सूची बहुत ही लंबी होती है। जैसे अगर संगीत की कक्षा हो तो उसमें सारे वाद्य यंत्रों को सीखने का अवसर बच्चों के पास उपलब्ध रहता है। नौवीं से 12वीं कक्षा में गणित पढ़ना सबके लिए अनिवार्य है कम से कम तीन साल तो अवश्य।

एक विदेशी भाषा होती अनिवार्य

कैलिफोर्निया में एक विदेशी भाषा सबको सीखनी ही पड़ती है। स्कूली शिक्षा व्यवस्था पूर्णत: निश्शुल्क है। सरकारी विद्यालयों में, जहां अधिकतर बच्चे अध्ययन करते हैं। यहां तक कि अच्छी ग्रेडिंग वाले सरकारी विद्यालयों में बच्चों का नामांकन कराने के लिए लोग उसी क्षेत्र में भाड़े में भी घर लेकर रहना पसंद करते हैं, लेकिन महाविद्यालयों की शिक्षा बहुत महंगी है। 12वीं की परीक्षा में उन्हें तैराकी टेस्ट में पास करना बहुत जरूरी होता है।

कनाडा में भी स्कूली शिक्षा निश्शुल्क

कनाडा से जुड़ी अनुपम मिठास ने अमेरिका और कनाडा की शिक्षा व्यवस्था को समतुल्य बताते हुए कहा कि वहां भी सरकारी विद्यालयों में केजी से 12वीं तक की पढ़ाई निश्शुल्क और उच्च गुणवत्ता युक्त है। शिक्षा पूर्णतः विद्यार्थी केंद्रित होती है और रट्टा मारने की प्रथा नहीं होती। बच्चों को 70 प्रतिशत अंक उनके टर्म वर्क अर्थात कक्षा में उनके कार्य, उनके असाइनमेंट, उनके प्रेजेंटेशन, क्विज में सहभागिता आदि के आधार पर मिलते हैं, जबकि 30 प्रतिशत अंक वार्षिक परीक्षा के आधार पर। इस तरह छात्रों के सालों भर के कार्यों को वहां बहुत मूल्य मिलता है।

ब्रिटेन में केजी से पीजी तक के शिक्षक का वेतन समान

लंदन से जुड़ी अरुण सभरवाल ने ब्रिटेन के छोटे बच्चों की शिक्षा पर मुख्यत: महत्वपूर्ण बिंदुओं पर प्रकाश डाला। बताया कि वहां केजी से लेकर कॉलेजों में पढ़ाने वाले शिक्षक तक सबका वेतनमान एक ही होता है, सबको एक सी ही प्रतिष्ठा प्राप्त होती है। नर्सरी में बच्चों को नामांकित करने से पहले उनके घर में भ्रमण कर शिक्षक उनके घर का वातावरण देख आते हैं, ताकि समझ सकें कि उनसे क्या अपेक्षाएं पाल सकते हैं। उन्हें शिक्षा से जोड़ने के लिए किस तरह की तकनीक अपनानी होगी। कक्षा में मौजूद सहायिका भी पढ़ी-लिखी और ट्रेंड होती हैं। बच्चों का मूल्यांकन किताबों के आधार पर नहीं, बल्कि उनके दिन-प्रतिदिन के क्रियाकलाप और वर्कशीट के आधार पर होता है।

मॉरीशस में मेधावी छात्रों का होता अलग सेक्शन

मॉरीशस से जुड़ी शिक्षा गुजुधर ने बताया कि वहां नर्सरी की शिक्षा के लिए तो शुल्क देना पड़ता है, परंतु ग्रेड वन से लेकर ग्रेड 13 तक की सरकारी शिक्षा पूर्णतः निशुल्क है। मेधावी छात्रों की को एक अलग सेक्शन में रखा जाता है। उन्हें सरकारी खर्चे पर दुनिया की किसी भी विश्वविद्यालय में पढ़ाया जाता है, लेकिन उन्हें विदेश भेजने से पहले समझौता कर लिया जाता है कि वे अपने देश को भी अपनी सेवा देंगे। सेकेंडरी और हायर सेकेंडरी में परीक्षा के बाद बच्चों की कॉपियां इंग्लैंड के कैंब्रिज भेजी जाती है, इसलिए उनकी परीक्षाओं को कैंब्रिज एग्जाम कहा जाता है। भारत से जुड़ी समर्पिता ने भारत की शिक्षा व्यवस्था की विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए बताया कि शिक्षकों को तैयार करने वाला पाठ्यक्रम बीएड, बाल मनोविज्ञान जैसे विषयों से शिक्षक प्रशिक्षण लेने वालों को अवगत कराता है। उन्होंने कहा कि आज की अवस्था में शिक्षा जगत भी एक वैश्विक गांव बन गया है। वर्तमान कोरोनाकाल में शिक्षकों ने आगे बढ़कर कोरोना वारियर्स की महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। कार्यक्रम का संचालन व धन्यवाद ज्ञापन पत्रिका की संपादक अर्पणा संत सिंह ने किया।

chat bot
आपका साथी