इनकी जिंदगी बचाइए क्योंकि ये हमारे लिए जीते हैं... Jamshedpur News

सभी अपनी जान को जोखिम में डालकर हमारी सेवा करते हैं। और इन्हें बदले में मौत मिली। दिन-रात हमारी गंदगी को साफ करते रहे और इसी दौरान गंभीर बीमारियों के शिकार होते चले गए।

By Edited By: Publish:Fri, 21 Feb 2020 12:40 AM (IST) Updated:Fri, 21 Feb 2020 03:56 PM (IST)
इनकी जिंदगी बचाइए क्योंकि ये हमारे लिए जीते हैं... Jamshedpur News
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जमशेदपुर, अमित तिवारी।  24 साल की उम्र में सरोज मुखी की टीबी से मौत हो गई। वह लंबे समय से महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) मेडिकल कॉलेज अस्पताल में आउटसोर्स पर तैनात थे। वहां साफ-सफाई का काम करते थे। इसी दौरान वह टीबी की चपेट में आ गए। तीन साल में ही मौत हो गई।

उनके साथी अफसोस जताते हुए कहते हैं, यदि सरोज का सही इलाज हुआ होता, उसे पौष्टिक खान-पान मिला गया होता तो उसकी जान नहीं जाती। वह भी परिवार के साथ खुशी-खुशी जीवन यापन कर रहा होता। इसी तरह, वर्ष 2018 में सविंदर कौर की भी मौत टीबी से हो गई। वह भी साफ-सफाई का काम करती थीं। वर्ष 2009 में शंकर राम, वर्ष 2011 में सुशीला मुखी, वर्ष 2012 में सरोज मुखी, वर्ष 2016 में मनजीत कौर, वर्ष 2014 में विमल मुखी, वर्ष 2018 में सविंदर कौर, वर्ष 2018 में सरेंश्वर सागर, वर्ष 2018 में अजय कारंवा की भी मौत टीबी व संक्रमित बीमारी से हो गई।

जान जोखिम में डालकर करते सेवा

ये सभी अपनी जान को जोखिम में डालकर हमारी सेवा करते हैं। और इन्हें बदले में मौत मिली। दिन-रात हमारी गंदगी को साफ करते रहे और इसी दौरान टीबी सहित अन्य गंभीर बीमारियों के शिकार होते चले गए। मृतकों का उम्र 24 से 38 के बीच थी। अधिकतर की शादी व बच्चे भी हो गए थे। अब उनके जीवन में अंधेरा है। इधर, अस्पताल के करीब एक दर्जन कर्मचारियों को टीबी सहित अन्य बीमारी है। वह भी जान को जोखिम में डालकर पेट पालने के लिए मजबूर हैं। उनकी जान बचाने के लिए हम सभी को गंभीर होने की जरूरत है। अस्पताल को स्वच्छ रखने में उनकी अहम भूमिका है।

19 साल से आउटसोर्स पर काम कर रहे कर्मचारी

वर्ष 2011 में एमजीएम अस्पताल में नई व्यवस्था के तहत आउटसोर्स पर काम शुरू हुआ। आज ऐसे कर्मचारियों की संख्या 40 हो गई है। वैसे, अस्पताल में लगभग 150 सफाई कर्मियों की जरूरत है। इसका एक प्रस्ताव तैयार कर विभाग को सौंपा गया है। कर्मचारियों का कहना है कि पहले पीएफ व ईएसआइ का लाभ नहीं मिलता था। चंद सालों से आंदोलन की बदौलत मिलना शुरू हुआ है।

बिना दस्ताने व मास्क का काम करते कर्मचारी

सफाई कर्मियों को सुरक्षा एजेंसी की ओर से पूरा ड्रेस कोड उपलब्ध कराना अनिवार्य है, ताकि संक्रमित बीमारी से बचाव कर सकें। लेकिन, यहां नियम ताक पर रखकर उनसे कार्य कराया जा रहा है। कर्मचारियों को ड्रेस के अलावा न तो जूता उपलब्ध कराया गया है, न ही मास्क व दस्ताने। जिससे वह गंभीर बीमारियों के शिकार हो रहे हैं।

इनकी सुनें

हमलोग अपनी जान जोखिम में डालकर मरीजों की सेवा व सफाई का काम करते हैं। लेकिन, हमारी जान की परवाह किसी को नहीं है। बीते सालों में कई कर्मचारियों की मौत टीबी सहित अन्य गंभीर बीमारियों से हो गई। उनके पास पैसा नहीं होता कि वह बेहतर उपचार करवा सकें।

- रवि नामता, सफाई कर्मी, एमजीएम।

हमलोग बीते कई वर्षो से सफाई का काम कर रहे हैं। सरकार हमलोगों को स्थायी कर दे तो जीवन यापन बेहतर हो सकेगा। अभी हमलोगों को कोई पूछने वाला नहीं। दिन-रात खटते हैं। भरपेट भोजन नसीब नहीं होता। ऐसे में शरीर कमजोर हो जाता है। तरह-तरह की संक्रमित बीमारियां घेर लेती हैं।

- गिरीश कारंवा, सफाई कर्मी, एमजीएम। 

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