दोबारा कभी पकड़े नहीं गए अखौरी बालेश्वर सिन्हा

डाकघर जलाने और रेल की पटरियां उखाड़ने से लेकर टेलीफोन के खंभे व तार क्षतिग्रस्त करने में इनकी भूमिका रही।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 15 Aug 2020 08:00 AM (IST) Updated:Sat, 15 Aug 2020 08:00 AM (IST)
दोबारा कभी पकड़े नहीं गए अखौरी बालेश्वर सिन्हा
दोबारा कभी पकड़े नहीं गए अखौरी बालेश्वर सिन्हा

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : पूर्वी सिंहभूम जिले के एकमात्र जीवित स्वतंत्रता सेनानी अखौरी बालेश्वर सिन्हा जब नौवीं कक्षा में पढ़ते थे, तभी गांधीजी से प्रेरित होकर स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े थे। स्कूली छात्र होने के नाते गतिविधियां सीमित थीं, लेकिन जोश में कोई कमी नहीं थी। बिहार के बक्सर स्थित चुरामनपुर गांव में जन्मे अखौरी बालेश्वर घर-घर घूमकर अंग्रेजों के खिलाफ पर्चा बांटते और जन-जागरण करते थे। इसी दौरान 1945 में बक्सर बाजार में जन-जागरण करते समय अंग्रेज पुलिस ने इन्हें टोली के कुछ लड़कों सहित गिरफ्तार कर लिया। तब इनकी उम्र करीब 18 वर्ष थी। बक्सर जेल में छह माह 20 दिन की सजा काटकर निकले तो एक बार फिर टोली के साथ सक्रिय हो गए। हालांकि इसके बाद दोबारा कभी अंग्रेज पुलिस के हाथ नहीं लगे।

डाकघर जलाने और रेल की पटरियां उखाड़ने से लेकर टेलीफोन के खंभे व तार क्षतिग्रस्त करने में इनकी भूमिका रही। नाते-रिश्तेदारों के यहां छिपते-छिपाते किसी तरह जमशेदपुर पहुंच गए। टाटा स्टील में इन्हें नौकरी भी मिल गई। वहां से सेवानिवृत्त होने के बाद अब आदित्यपुर में अपने बेटे-बहू के साथ रहते हैं।

आजादी की बात पर कहते हैं कि उस वक्त पता नहीं था कि आजादी मिलेगी या नहीं। मिलेगी तो कब, इसका भी अंदाजा नहीं था। यदि हम आजाद नहीं होते तो आज खुली हवा में सांस नहीं ले रहे होते। बाल-बच्चों के साथ इस तरह नहीं रह पाते। हालांकि भ्रष्टाचार व अपराध देखकर मन दुखी हो जाता है। इस पर अंकुश अवश्य लगना चाहिए, क्योंकि यह हमारे समाज को नैतिक रूप से खोखला कर रहा है।

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सिंहभूम में थे 114 स्वतंत्रता सेनानी

जासं, जमशेदपुर : जब सिंहभूम का विभाजन नहीं हुआ था, तब यहां 114 स्वतंत्रता सेनानी थी। सिंहभूम जिला स्वतंत्रता सेनानी उत्तराधिकार संगठन के सचिव जगन्नाथ महंती बताते हैं कि जब सिंहभूम से अलग होकर पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम और सरायकेल-खरसावां जिल बना, तो पूर्वी सिंहभूम में 75 स्वतंत्रता सेनानी रह गए। धीरे-धीरे एक-एक करके इनका निधन होता गया और आज एकमात्र जीवित स्चतंत्रता सेनानी अखौरी बालेश्वर सिन्हा बचे हैं। इनमें से कई स्वतंत्रता सेनानी बिहार, प. बंगाल, उत्तर प्रदेश, ओडिशा आदि स्थान से आकर बस गए थे, जबकि कुछ ने यहां आंदोलन में भाग लिया था। दुख की बात है कि इनके लिए कुछ नहीं सोचा गया। अधिकतर स्वतंत्रता सेनानी के बेटे, पोते-पोती की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। सरकार को इस पर सोचना चाहिए।

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टाटा स्टील तब देती थी स्वतंत्रता सेनानियों को नौकरी

जासं, जमशेदपुर : आमतौर पर जेल की सजा काटने वाले को टाटा स्टील ही नहीं, कोई भी कंपनी नौकरी से निकाल देती है। सरकार में भी यही परंपरा है, लेकिन टाटा स्टील एकमात्र ऐसी कंपनी थी, जो स्वतंत्रता आंदोलन में जेल की सजा काटकर आए लोगों को तत्काल नौकरी देती थी। उन्हें क्वार्टर भी देती थी। यह टाटा संस के तत्कालीन चेयरमैन जेआरडी टाटा के निर्देश पर होता था। महंती बताते हैं कि जेआरडी आजादी के दीवानों के प्रति सहानुभूति ही नहीं, बल्कि उससे बढ़कर प्रेम करते थे। यहां तक उन्होंने जयप्रकाश नारायण के कहने पर जेपी आंदोलन की सजा काटने वालों को भी कंपनी में नौकरी दी थी। हालांकि कई स्वतंत्रता सेनानी ऐसे भी रहे, जिन्होंने नौकरी की बजाय व्यवसाय का रास्ता अपनाया।

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