ताइक्वांडो गुरु के चक्कर में पुलिस अधिकारी का बेटा बन गया गैंगस्टर

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : 27 जुलाई 2001 को शहर के व्यवसायी ओमप्रकाश काबरा का रहस्यमयी

By JagranEdited By: Publish:Thu, 12 Oct 2017 03:01 AM (IST) Updated:Thu, 12 Oct 2017 03:01 AM (IST)
ताइक्वांडो गुरु के चक्कर में पुलिस अधिकारी का बेटा बन गया गैंगस्टर
ताइक्वांडो गुरु के चक्कर में पुलिस अधिकारी का बेटा बन गया गैंगस्टर

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : 27 जुलाई 2001 को शहर के व्यवसायी ओमप्रकाश काबरा का रहस्यमयी ढंग से अपहरण करने के साथ ही अखिलेश सिंह ने अपराध की दुनिया में पहला कदम रखा। अपने ताइक्वांडो गुरु विक्रम शर्मा के चक्कर में अपराध की दुनिया में उतरे पुलिस अधिकारी के बेटे अखिलेश को उस समय देख कर किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी कि वह एक दिन शहर का सबसे कुख्यात अपराधी बन जाएगा। उसकी दहशत पुलिस पदाधिकारियों तक में होगी और उसकी तलाश के लिए लाखों रुपये फूंके जाएंगे, और तो और उसकी गिरफ्तारी के लिए इनाम की घोषणा होगी। एक पुलिस अधिकारी का बेटा ही राज्य पुलिस के लिए चुनौती बन गया। ऐसा अपराधी बना जो पुलिस वालों के लिए तो खतरा बना ही, शहर में दिनदहाड़े किसी की भी लाश गिरा देने का आतंक कायम कर गया।

अखिलेश सिंह ने काफी कम समय में बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ समेत प.बंगाल के राजनीतिक गलियारों समेत आपराधिक गिरोह से अपने तार जोड़ लिए। उसके गिरोह ने अपहरण की वारदात को भी अंजाम देना शुरू कर दिया। अखिलेश ंिसंह को विक्रम शर्मा ताइक्वांडो का प्रशिक्षण तो देता ही था, उसका आपराधिक गुरु भी बन गया। खुद विक्रम शर्मा ने पुलिस को बताया कि जब अखिलेश सिंह ताइक्वांडो के प्रशिक्षण के लिए आया था, तब उसकी उम्र काफी कम थी। उसने अखिलेश को प्रशिक्षण देने से मना कर दिया था, लेकिन दूसरे दिन अखिलेश सिंह सिदगोड़ा थाने की जीप में बैठकर आया। पुलिस वालों ने उसे प्रशिक्षण देने को कहा। अखिलेश को पुलिस वाले का साथ मिलने पर विक्रम शर्मा उसका करीबी हो गया। उसका आपराधिक गुरु भी बन गया। अखिलेश सिंह गिरोह का मास्टरमाइंड विक्रम शर्मा को ही माना जाता है।

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जेल में डंडा-बेड़ी से बांधा तो जेलर की कर दी हत्या

पुलिस सूत्रों के अनुसार काबरा के अपहरण के बाद उसने न्यायालय में आत्मसमर्पण कर दिया। जेल में रहने के दौरान एक जाति विशेष के पुलिस अधिकारियों के इशारे पर उसे प्रताड़ित किया गया। उसका खाना फेंक दिया जाने लगा। विरोध करने पर डंडा-बेड़ी से बांधा गया। जेल की इस व्यवस्था से वह काफी परेशान हो गया। 28 जनवरी 2002 को वह न्यायिक हिरासत से भाग निकला। पुलिस उसके पीछे भागती रही। भागते-भागते वह वांटेड अपराधी बन गया। 12 फरवरी 2002 को अखिलेश सिंह ने जेलर उमाशंकर पांडेय की गोली मारकर हत्या कर दी। इसके बाद फरारी काटता रहा। ओमप्रकाश काबरा और उसके परिवार वाले अपहरण मामले में गवाही को तैयार नहीं हो रहे थे, लेकिन पुलिसिया दबाव में गवाही होने लगी। अखिलेश सिंह को लगा कि वह फंस जाएगा।

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उस दिन सीएम व डीजीपी भी थे शहर में

अखिलेश सिंह व उसके गिरोह ने जिस व्यक्ति का अपहरण कर अपराध की दुनिया में कदम रखा था। उसकी (ओमप्रकाश काबरा) हत्या 6 नवंबर वर्ष 2002 को कर दी। उस दिन शहर में अंतरराष्ट्रीय किक्रेट मैच चल रहा था। मुख्यमंत्री व डीजीपी समेत वरीय पुलिस पदाधिकारी व प्रशासनिक तंत्र शहर में मौजूद था। पूरे शहर में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था थी, लेकिन सारी सुरक्षा को भेदते हुए अखिलेश व उसके सहयोगियों ने काबरा की हत्या कर दी और फरार हो गए।

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अखिलेश बन गया ब्रांड

अखिलेश सिंह बड़े, छोटे व नौसीखिए आपराधियों के लिए एक ब्रांड बन गया। अखिलेश ने नए रंगरूटों का अपराध में उपयोग कर कई कांडों को अंजाम दिया। आतंक का माहौल कायम करने वाले अपराधी अखिलेश सिंह ने अपने आपराधिक इतिहास में ऐसी वारदातों को अंजाम दिया, जिसकी कल्पना शहर के बड़े अपराधियों ने भी कभी नहीं की होगी।

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अखिलेश के चार गुर्गे मारे गए थे 2004 में

एसपी अरूण उरांव के कार्यकाल में अखिलेश सिंह के चार सहयोगी मुन्ना सिंह, बबलू प्रसाद, रेंबो व राजीव दूबे सोनारी मेरिन ड्राइव में 2 जुलाई 2004 को पुलिस मुठभेड़ में मारे गए थे।

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संतोष पाठक को भीड़ ने मार डाला

अखिलेश के सहयोगी संतोष पाठक को जेलर उमाशंकर पांडेय की हत्या से आक्रोशित भीड़ ने पीट-पीटकर 2002 में मार डाला था। उस समय भी अखिलेश किसी तरह भीड़ से बचकर भागने में सफल रहा था। उसके सहयोगी रणजीत चौधरी, टिंकू बनर्जी, राजा स्वामी अब तक गायब हैं।

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