जमशेदपुर ने विकसित की पर्यावरण हितैषी तकनीक, ई-कचरे के निस्तारण की कारगर युक्ति पर जोर
भारत में 120 लाख टन प्रति वर्ष के हिसाब से ई-कचरे का ढेर लग रहा है। यह कचरा घर-घर और गली-गली में फैला है लेकिन ज्यादातर लोग इसके खतरों से अनजान हैं।
विकास श्रीवास्तव, जमशेदपुर। केंद्र सरकार की पहल पर राष्ट्रीय धातुकर्म प्रयोगशाला, जमशेदपुर (झारखंड) ने ई-कचरा निस्तारण की पर्यावरण हितैषी तकनीक विकसित की है, जिसे हाथोंहाथ लिया जा रहा है। अनेक उद्यमियों ने इसमें रुचि दिखाई है। दरअसल, इस तरह की कारगर व्यवस्था के अभाव में पर्यावरण को बड़ा नुकसान पहुंच रहा है। ई-कचरे को जलाकर इसमें से बहुमूल्य धातु निकालने की लालच भी बड़ी वजह है, जिस पर रोक लगना आवश्यक है।
इस दिशा में एनएमएल के वैज्ञानिकों की यह कोशिश सार्थक साबित हो सकती है। पुराने कंप्यूटर, टीवी सेट, मोबाइल फोन, की-बोर्ड, माउस, टेलीफोन सेट, माइक्रोचिप, इलेक्ट्रॉनिक खिलौने और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का कबाड़ चुनौती बन रहा है। राष्ट्रीय धातुकर्म प्रयोगशाला ने इसके निस्तारण का जो तरीका
खोजा है, वह पर्यावरण हितैषी तो है ही, उद्यमियों के लिए किफायती भी है। इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में सोना, कॉपर, आयरन, एल्युमिनियम, कोबाल्ट, नियोडाइमियम, लेंथेहम, टेरबियम, यीट्रियम, इंडियम, लीथियम, निकेल जैसी महंगी धातुओं लगी होती हैं, जिन्हें निस्तारण के बाद सहेजा जा सकता है।
आम के आम और गुठलियों के दाम वाली कहावत को चरितार्थ करने वाले इस प्रोजेक्ट की सफलता के चर्चे फैले तो उद्योगपतियों और कारोबारियों का ध्यान भी इस ओर गया। अब यहां कई कारोबारियों ने इस तकनीक के आधार पर ई-कचरा निष्पादन उद्योग लगाने में रुचि दिखाई है। एनएमएल परिसर में बने अर्बन ओर रीसाइकिलिंग सेंटर में इसके बारे में सभी आवश्यक व प्रायोगिक जानकारी दी जा रही है।
मकसद है कि लोग छोटी-छोटी औद्योगिक इकाइयां लगाकर न केवल धनोपार्जन करें, बल्कि पर्यावरण संरक्षण में योगदान भी करें। ई-कचरा निष्पादन पर काम करने वाले एनएमएल के वैज्ञानिक मनीष कुमार झा के अनुसार एनएमएल का अर्बन ओर रीसाइकिलिंग सेंटर पूर्वी भारत में इस तरह का पहला प्रयास है। इससे पहले दक्षिण भारत में ई-कचरे के निस्तारण की पहल की जा चुकी है। उन्होंने बताया कि ई-कबाड़ को सबसे पहले निम्न तापमान पर जलाया जाता है, लेकिन इस युक्ति में सभी कार्बनिक सामग्री गैस में परिवर्तित हो जाती है और बाहर निकलने की जगह अंदर ही एक पाइपनुमा उपकरण में जमा हो जाती है। इससे प्रदूषण नहीं होता, बल्कि इसे ठंडा कर फ्यूल ऑयल (ईंधन तेल) बनाया जाता है। बची हुई धातु को प्रसंस्करण की विविध तकनीकों की सहायता से अलग किया जाता है।
1000 किलो मोबाइल सेट से निकलता है 350 ग्राम सोना
एनएमएल के प्रिंसिपल साइंटिस्ट मनीष कुमार झा के अनुसार इन उपकरणों में सोना अलग-अलग धातुओं जैसे कॉपर, आयरन, एल्युमिनियम के ऊपर लेपित रहता है, जिसे खास प्रक्रिया से अलग कर निकाल लिया जाता है। 1000 किलोग्राम वजन के मोबाइल फोन के कबाड़ से लगभग 350 ग्राम सोना का उत्पादन संभव
है। राष्ट्रीय धातुकर्म प्रयोगशाला द्वारा विकसित तकनीक से शुद्ध सोना प्राप्त होता है। इसी तरह, मोबाइल फोन की बैटरी से कोबाल्ट कोबाल्ट, लीथियम, निकेल जैसी धातुओं का पर्यावरण हितैषी निष्कर्षण संभव हो सका है।
बड़ी मुसीबत बन चुका है ई-कचरा
भारत में 120 लाख टन प्रति वर्ष के हिसाब से ई-कचरे का ढेर लग रहा है। यह कचरा घर-घर और गली-गली में फैला है, लेकिन ज्यादातर लोग इसके खतरों से अनजान हैं। जलाने से यह ई कचरा 38 प्रकार की खतरनाक रासायनिक गैस उत्सर्जित करता है और कई बार बड़ी मुसीबत की भी वजह बनता है। देश में कैंसर सहित कई अज्ञात बीमारियों की यह एक वजह ई-कचरा भी है। जागरूकता की कमी से लोग ई-कचरा कबाड़ी वाले को बेच देते हैं। ऐसा करना भी पर्यावरण के लिए खतरनाक है। नई तकनीक इन सबका समाधान लेकर आई है।
पायलट प्रोजेक्ट के लिए केंद्र सरकार की ओर से एनएमएल जमशेदपुर को पांच करोड़ रुपये दिए गए थे। पायलट प्रोजेक्ट की कामयाबी के बाद अब सरकार इसके विस्तार के लिए एनएमएल को 15 करोड़ रुपये और देने जा रही है।
- मनीष कुमार झा, प्रिंसिपल साइंटिस्ट,
एनएमएल, जमशेदपुर
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