कोविड से प्रतिरक्षा में भारतीय परंपरागत चिकित्सा विज्ञान की भूमिका पर बोली डा. सरस्वती - भारतीय परंपरागत चिकित्सा पद्धतियाँ ही मुख्य चिकित्सा पद्धतियाँ थीं

जमशेदपुर वीमेंस कॉलेज में गुरूवार को योग विभाग द्वारा राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया गया। कोविड 19 से प्ररतिक्षा में भारतीय परंपरागत चिकित्सा विज्ञान की भूमिका पर केन्द्रित इस वेबिनार में कई नई जानकारियां निकल कर सामने आईं।

By Jitendra SinghEdited By: Publish:Thu, 24 Jun 2021 05:55 PM (IST) Updated:Thu, 24 Jun 2021 05:55 PM (IST)
कोविड से प्रतिरक्षा में भारतीय परंपरागत चिकित्सा विज्ञान की भूमिका पर बोली डा. सरस्वती - भारतीय परंपरागत चिकित्सा पद्धतियाँ ही मुख्य चिकित्सा पद्धतियाँ थीं
जमशेदपुर वीमेंस कॉलेज के वेबिनार में शामिल अतिथि

जमशेदपुर, जासं। जमशेदपुर वीमेंस कॉलेज में गुरूवार को योग विभाग द्वारा राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया गया। कोविड 19 से प्ररतिक्षा में भारतीय परंपरागत चिकित्सा विज्ञान की भूमिका पर केन्द्रित इस वेबिनार में कई नई जानकारियां निकल कर सामने आईं। श्री गुरु राम राय विश्वविद्यालय, देहरादून में योग विज्ञान विभागाध्यक्ष डाॅ सरस्वती काला ने कहा कि भारतीय परंपरागत चिकित्सा पद्धतियाँ ही मुख्य चिकित्सा पद्धतियाँ थीं, लेकिन बाहरी प्रभाव और हमारी उपेक्षा ने इसे वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति बना दिया। पिछले दो सालों से यह भारतीय पद्धति भारत सहित दुनिया भर में फिर से लोकप्रिय और भरोसेमंद हो उठी है। नैचुरोपैथी में ऐसे बहुत से तरीके हैं जिन्हें आजमाकर हम किसी भी तरह की बीमारी से ठीक हो सकते हैं। ठीक होना या क्योर होना का तात्पर्य है कि हमें लक्षण ही ठीक नहीं करना बल्कि बीमारी को जड़ से खत्म करना है। खानपान के तरीकों में सुधार और योगिक क्रियाओं से कोविड जैसी बीमारियां भी ठीक होती हैं। बुखार होने पर सबसे पहले अन्न का सेवन बंद करना चाहिए। सिट्रस जूस और नारियल पानी को दो दिनों तक इस्तेमाल करने से कई गुणात्मक प्रभाव देखे गए हैं। बीमारी का प्रमुख कारण बाहरी तत्व नहीं बल्कि हमारे शरीर के द्रव्यों का असंतुलन है।

पैरासिटामोल से बेहतर विकल्प हमारे घरों और आसपास के औषधीय पौधों में : डा. निधीश

पतंजलि विश्वविद्यालय, हरिद्वार के योग विज्ञान विभाग में सहायक प्राध्यापक और उत्तर प्रदेश योगासन स्पोर्ट्स एसोसिएशन के संयुक्त सचिव डाॅ. निधीश कुमार यादव ने भारतीय आयुर्वेद और औषधीय वनस्पतियों के आधार पर स्वस्थ रहने के उपायों की चर्चा की। उन्होंने कहा कि पैरासिटामोल से बेहतर विकल्प हमारे घरों और आसपास के औषधीय पौधों में है। इनका साइड इफेक्ट भी नहीं है। शरीर में ऐसे कई स्थान हैं जिन्हें उचित तरीके से सक्रिय किया जाय तो हमारे बिमार होने के अवसर आयेंगे ही नहीं। योग और आयुर्वेद का गहरा संबंध है। शरीर, मन और चरित्र का समेकित स्वास्थ्य ही वास्तविक स्वास्थ्य है। देव संस्कृति विश्वविद्यालय, शांतिकुंज, हरिद्वार के योग विभागाध्यक्ष प्रोफेसर सुरेश लाल वर्णवाल ने कहा कि वर्तमान समय में एक बड़ी सेवा पीड़ा निवारण की है। योग मूल रूप से व्यक्ति, परिवार एवं समाज निर्माण की धुरी है। उन्होंने पतंजलि योग सूत्र एवं भगवद्गीता के माध्यम से योग के सारभूत तत्वों की जानकारी दी। अष्टांग योग यम, नियम आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान एवं समाधि की आज के दौर में अहमियत पर रौशनी डाली।

कोविड के समय लोगों के स्वास्थ्य को लेकर जागरुकता आइ

इसके पहले वेबिनार की मुख्य आयोजक केयू की पूर्व कुलपति सह वीमेंस कॉलेज की प्राचार्या प्रोफेसर शुक्ला महांती ने वक्तागण का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि एक आम आदमी की तरह हम सब बहुत पहले से तुलसी का काढ़ा को एक बेहतर स्वास्थ्य सप्लिमेंट के रूप में जानते रहे हैं। कोविड के समय लोगों में स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता आई है। वे आयुर्वेद और भारतीय परंपरागत पद्धतियों की ओर अधिक आकर्षित हुए हैं। यह चुनौती भारत में स्वास्थ्य क्रांति की जमीन भी तैयार कर रही है। यह वेबिनार अकादमिक से अधिक सामाजिक और मानवीय दायित्वों को लेकर आयोजित किया गया है। वेबिनार में काॅलेज परिवार सहित देशभर से करीब 2000 प्रतिभागियों ने शिरकत की। संचालन योग विभाग के समन्वयक डॉ. सुधीर कुमार साहू व धन्यवाद ज्ञापन योग विभाग के शिक्षक डाॅ. रविशंकर नेवार ने किया।

chat bot
आपका साथी