भक्त की लीला भी अपरंपार, यहां मंदिर की दान पेटी में डाल देते हैं खोटे सिक्के, कटे-फटे और जाली नोट

भक्त की लीला भी अपरंपार होती है। जमशेदपुर के साकची स्थित शिव मंदिर में ऐसा ही देखने को मिल रहा है। यहां दान पेटी में भक्त न सिर्फ खोटे सिक्के डालकर चले जा रहे हैं बल्कि कटे फटे नोट भी दान में दे देते हैं।

By Jitendra SinghEdited By: Publish:Fri, 30 Jul 2021 06:04 AM (IST) Updated:Fri, 30 Jul 2021 10:31 AM (IST)
भक्त की लीला भी अपरंपार, यहां मंदिर की दान पेटी में डाल देते हैं खोटे सिक्के, कटे-फटे और जाली नोट
यहां मंदिर की दान पेटी में डाल देते हैं खोटे सिक्के, कटे-फटे और जाली नोट

जमशेदपुर, जासं : मंदिर के सामने खड़े होकर हाथ जोड़कर दान पेटी में कुछ डालने वाले भी ईमानदार नहीं होते। कुछ लोग भगवान को भी धोखा देने से बाज नहीं आते। यदि ऐसा नहीं होता हो दान पेटी में खोटे सिक्के नहीं डालते। बाजार में 50 पैसे का सिक्का भी नहीं चल रहा है, जबकि इसे सरकार ने प्रतिबंधित नहीं किया है। ऐसे में एक, दो, पांच, 10, 20 व 25 पैसे के सिक्के को कौन पूछेगा। इन सिक्कों को तो कई वर्ष पहले ही प्रतिबंधित कर दिया गया है। अब आपको ये सिक्के कहीं बाहर देखने को नहीं मिलेंगे, क्योंकि बाजार में नहीं चलते। इसके बावजूद लोग इसे मंदिर में चढ़ा रहे हैं। आरती में नहीं, दानपेटी में चुपके से लोग इन खोटे सिक्कों को डालकर निकल जा रहे हैं।

साकची बाजार स्थित शिव मंदिर की दानपेटी से रविवार को करीब एक हजार रुपये मूल्य के ये खोटे सिक्के निकले। मंदिर समिति के नरेश अग्रवाल ने बताया कि आश्चर्य तो इस बात का है कि लोगों के घर में अब भी ये सिक्के रखे हैं। उससे भी बड़ी बात कि लोग इसे मंदिर की दानपेटी में क्यों डालते हैं, समझ में नहीं आता। हम इनका क्या करेंगे। हर एक-दो माह पर दानपेटी खुलती है तो ऐसे सिक्के निकलते हैं, जो प्रतिबंधित हो चुके हैं। कई बार कटे-फटे और एक दो बार जाली नोट भी मिले हैं।

साकची स्थित शिव मंदिर की दान पेटी से मिले खोटे सिक्के। 

1980 तक बच्चों की जेब में रहता था सिक्का

एक, दो और पांच पैसे का सिक्का बच्चों की जेब में ही रहता था, क्योंकि इससे टॉफी, चाकलेट, चूरन आदि मिल जाते थे। धीरे-धीरे-धीरे ये सिक्के अपने आप चलन से बाहर हो गए। इन सिक्कों को सरकार ने कब प्रतिबंधित किया, इसका रिकार्ड नहीं मिलता। हां, वर्ष 2011 में रिजर्व बैंक ने 50 पैसे के नीचे के सभी सिक्के को प्रतिबंधित करने की घोषणा की थी। इसके बाद से ही 50 पैसे के सिक्के भी प्रचलन से बाहर हो गए। मंदिर समिति के सदस्यों ने बताया कि एक रुपये का छोटा सिक्का भी अब लोग नहीं लेते, जबकि इस पर कोई प्रतिबंध नहीं है।

चार तरह के सिक्के चल रहे

अभी बाजार में एक रुपये, दो रुपये व पांच रुपये के सिक्के धड़ल्ले से चल रहे हैं। ये तीनों सिक्के चार अलग-अलग तरह के हैं, फिर भी कोई इनके लेन-देन पर आपत्ति नहीं करता। इस तरह से देखा जाए तो सरकार से इतर लोग खुद ही सिक्कों को लेने या ना लेने का निर्णय लेते हैं। एक रुपये के छोटे सिक्के नहीं लेने पर एक-दो वर्ष पहले तक काफी झंझट होते थे, अब कोई नहीं करता, लेकिन यह बहस का विषय तो है कि जब सरकार ने प्रतिबंधित नहीं किया है तो फिर लोग इसे लेने से क्यों मना करते हैं।

गिनते नहीं वजन करते सिक्के

मंदिर की दानपेटी से हर माह करीब 10-15 हजार रुपये तक के सिक्के निकलते हैं, जिसे मंदिर समिति के सदस्य मिलकर अलग-अलग श्रेणी की ढेरी लगाते हैं। इन्हें गिनने की बजाय वजन करके मूल्य का आकलन किया जाता है। इसके बाद 100, 200, 500 व 1000 रुपये मूल्य के सिक्कों की पोटली बनाई जाती है, जिसे दवा, किराना दुकान या होटल वालों को करेंसी नोट के बदले दे दिया जाता है।

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