पिता का शव लेकर घूमती रही बेटियां

कोरोना से मौत की अफवाह ने ग्रामीणों ने बेटियों को अपने पिता का अंतिम संस्कार गांव में नहीं करने दिया। बेटियां अपने पिता के शव को लेकर धालभूमगढ़ चाकुलिया के बंगाल सीमा और जमशेदपुर घूमती रही और अंतत बिष्टुपुर के पार्वती घाट में अपने चिकित्सक पिता का अंतिम संस्कार करना पड़ा..

By JagranEdited By: Publish:Tue, 18 May 2021 06:00 AM (IST) Updated:Tue, 18 May 2021 06:00 AM (IST)
पिता का शव लेकर घूमती रही बेटियां
पिता का शव लेकर घूमती रही बेटियां

संवाद सूत्र, धालभूमगढ़ : कोरोना से मौत की अफवाह ने ग्रामीणों ने बेटियों को अपने पिता का अंतिम संस्कार गांव में नहीं करने दिया। बेटियां अपने पिता के शव को लेकर धालभूमगढ़, चाकुलिया के बंगाल सीमा और जमशेदपुर घूमती रही और अंतत: बिष्टुपुर के पार्वती घाट में अपने चिकित्सक पिता का अंतिम संस्कार करना पड़ा। दरअसल धालभूमगढ़ के नरसिंहगढ़ में भाड़े में रहकर आरएमपी चिकित्सक प्रवीर कुमार महतो अपने परिवार के साथ रहते हैं। उनका मूल गांव चाकुलिया प्रखंड के पश्चिम बंगाल सीमा से सटे कानीमोहुली में हैं। कई दिनों से इस चिकित्सक की तबीयत खराब चल रही थी। टीएमएच में उनका इलाज 15 मई को राया गया था। उन्हें सांस लेने में दिक्कत हो रही था तथा छाती में दर्द था। प्रेशर भी हाई था। कोरोना जांच करने के बाद उनकी रिपोर्ट नेगेटिव आई। टीएमएच प्रबंधन ने चिकित्सक को 15 मई को छुट्टी दे दी। इसके बाद उन्हें नरसिंहगढ़ स्थित अपने आवास में लाया गया। फिर अचानक उसी दिन देर रात घर में फिर से चिकित्सक का स्वास्थ्य बिगड़ने लगा। इसके बाद बेटियों ने अपने पिता को सदर अस्पताल में भर्ती कराया। वहां कोरोना जांच कराया तथा जांच रिपोर्ट नेगेटिव आई। ब्लड प्रेशर 260 था। सदर अस्पताल के चिकित्सकों की सलाह पर उसे उमा अस्पताल में भर्ती कराया गया। सोमवार की सुबह असप्ताल में इस आरएमपी चिकित्सक का निधन हो गया। पिता की मौत के बाद बेटियों ने शव को एंबुलेंस को लेकर नरसिंहगढ़ स्थित अपने घर में पहुंची। घर पहुंचने के बाद बेटियों ने कानीमोहुली स्थित पैतृक निवास स्थान पर अपने चाचाओं से बात की। चाचाओं ने शव को गांव लाने की सलाह दी। परिजनों की सलाह पर बेटियां शव को लेकर कानीमोहुली गांव पहुंची, लेकिन ग्रामीणों ने शव का अंतिम संस्कार करने से मना कर दिया। ग्रामीणों का कहना था कि चिकित्सक की मौत कोरोना से हुई है, इस कारण नरसिंहगढ़ में भी उसे जलाया नहीं गया। इस कारण शव को कानीमोहुली में नहीं जलाने दिया गया। इसके बाद बेटियों ने शव को नरसिंहगढ़ ले जाने से भी इंकार कर दिया। अंतत: शव का अंतिम संस्कार पार्वती घाट में किया।

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