दलमा में है दुर्लभ जड़ी-बूटियों का भंडार, होंगे संरक्षित Jamshedpur News

हाथियों व नाना प्रकार के पशु-पक्षियों के लिए विश्वविख्यात दलमा वन्य प्राणी आश्रयणी के जंगलों में सैकड़ों प्रकार की दुर्लभ जड़ी-बूटियों का भंडार हैे। इसकी जानकारी मिलने के बाद दलमा के डीएफओ ने जड़ी-बूटियों को संरक्षित करने का प्लान बनाया है।

By Vikas SrivastavaEdited By: Publish:Sat, 28 Nov 2020 12:14 PM (IST) Updated:Sat, 28 Nov 2020 12:14 PM (IST)
दलमा में है दुर्लभ जड़ी-बूटियों का भंडार, होंगे संरक्षित Jamshedpur News
जमशेदपुर के समीप दलमा वन्‍य प्राणी आश्रयणी का गेट।

जमशेदपुर (मनोज सिंह)। हाथियों व नाना प्रकार के पशु-पक्षियों के लिए विश्वविख्यात दलमा वन्य प्राणी आश्रयणी के जंगलों में सैकड़ों प्रकार की दुर्लभ जड़ी-बूटियों का भंडार हैे। इसकी जानकारी मिलने के बाद दलमा के डीएफओ डा. अभिषेक कुमार ने जड़ी-बूटियों को संरक्षित करने का प्लान बनाया है। डीएफओ ने बताया कि औषधीय पौधों में अर्जुन, काला शीशम, कालमेघ, अमलताश, बीजासाल,इमली, गुलर, पीपल, बरगद, चिरायता, आंवला, हर्रे, बहेरा जैसे लुप्त प्राय पौधे पाए गए हैं। काला शीशम को तो इंडियन फारेस्ट एक्ट-1972 के तहत संरक्षित घोषित किया गया है, जिसमें इसका व्यापार करना गैरकानूनी है। दलमा में पाए जाने वाले प्रमुख औषधीय पौधों व उसके उपयोग पर अब तक वन विभाग ने कोई निर्णय नहीं लिया है।

दलमा में पाए जाने वाले जड़ी-बूटी के पेड़-पौधे व उनके फायदे

काला शीशम - काला शीशम का हर भाग का उपयोग किसी न किसी बीमारी के लिए लाभदायक है। इससे पेट दर्द, मोटापा, अपच की दवा बनती है। पेशाब करते समय परेशानी होने पर शीशम के पत्ते का काढ़ा बनाकर पीने से लाभ होता है। हैजा में शीशम की गोलियां खाने से फायदा होता है। आंख दर्द में शीशम के पत्ते का रस और शहद मिलाकर डालने से दर्द गायब हो जाता है। हर तरह के बुखार, जोड़ों का दर्द, गठिया, रक्त विकार, कफ, पेचिश, घाव के अलावा कुष्ठ जैसी बीमारी में काला शीशम रामबाण है। 

कालमेघ - मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए कालमेघ का जैसा नाम है वैसा काम है। इसका प्रयोग सामान्य बुखार व रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने, पेट की गैस, कीड़े, कब्ज, लीवर की समस्याओं का इलाज में किया जाता है। इसका उपयोग जलन, सूजन को कम करने, लीवर की सुरक्षा देने में किया जाता है।

अर्जुन - दलमा में बहुतायत पाया जाता है। यह एक औषधीय पेड़ है। इसका छाल का प्रयोग औषधीय रुप में किया जाता है। इसका उपयोग हृदय रोग, पेट की गैस, पेचिस, डायबिटीज कंट्रोल, हड्डी को जोड़ने में अर्जुन छाल का उपयोग किया जाता है।

गुलर - गुलर में विटामिन बी होता है जो रेड ब्लड सेल्स बनाने में मदद मिलता है, इसके अलावा यह एंटीबॉडीज बनाने में उपयोगी है, गुलर में नींद नहीं आने की समस्या से निबटने में काफी कारगर साबित होता है, पित्त की बीमारी में गुलर की पत्तियों को शहद के साथ पीसकर खाने से राहत मिलती है।

ईमली - इमली के बीज में ट्रिपसिन इनहिबिटर गुण होते हैं। जो प्रोटिन को बढाने के साथ नियंत्रण करने में कारगर साबित होता है। इससे हृदय रोग, हाई ब्लड शुगर, हाई कालस्ट्राल और मोटापा संबंधी बीमारियों में कारगर साबित होता है।

पीपल - पीपल के पत्तों का प्रयोग कब्ज या गैस की समस्या को दूर करने में किया जाता है। सांस संबंधी किसी भी समस्या में इसके छाल के सूखे हुए अंदरुनी हिस्सा को चूर्ण बनाकर खाने से सांस संबंधी समस्या दूर होती है। इसके अलावा इसके पत्ते को दूध में उबालकर पीने से दमा जैसे बीमारी भी दूर होती है। 

दलमा की पहाड़ियों में दर्जनों प्रकार के औषधीय पेड़-पौधे पाए जाते हैं। जरुरत है तो इसका संरक्षण का। मैने निश्चय किया है कि दलमा में पाए जाने वाले औषधीय पौधों को पहले सर्वे कराया जाए। सर्वे कराने के बाद यह पता चल सकेगा कि कौन सा पेड़-पौधे कितने बचे हैं। इसके बाद इसके संरक्षण व संवर्धन के लिए क्या किया जा सकता है, उच्चधिकारी से बातचीत कर आगे की कार्रवाई की जाएगी। -- डा. अभिषेक कुमार, डीएफओ दलमा वन्यप्राणी आश्रयणी, जमशेदपुर।

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