जलवायु परिवर्तन मानव जीवन के लिए खतरा, पर्यावरण अनुकूल औद्योगिकीकरण है जरूरत

CII 5th Jharkhand Green Conclave पांचवां झारखंड ग्रीन कान्क्लेव का आयोजन हो रहा है। बेहतर व हरित भविष्य के लिए आयोजित इस कान्क्लेव में कार्बन उत्सर्जन कम करने पर चर्चा हो रही है। यहां रही पूरी जानकारी। यह जानना आपको जरूरी है।

By Rakesh RanjanEdited By: Publish:Thu, 29 Jul 2021 05:30 PM (IST) Updated:Thu, 29 Jul 2021 05:30 PM (IST)
जलवायु परिवर्तन मानव जीवन के लिए खतरा, पर्यावरण अनुकूल औद्योगिकीकरण है जरूरत
सीआइआइ झारखंड ग्रीन कान्क्लेव में बोलते डा. प्रवीण झा

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : वैश्विक स्तर पर जिस तेजी से जलवायु परिवर्तन हो रहा है वह मानव जीवन के लिए काफी खतरनाक है। अमेरिका, रूस, अफ्रीका, ब्राजील, कैर्लिफोनिया सहित सभी देश में इसका असर देखा जा सकता है जहां तेजी से गर्मी बढ़ रही है। जंगलों में आग लग रही है और बाढ़ आ रहे हैं।

कनफडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (सीआइआइ) द्वारा गुरुवार को ऑनलाइन पांचवां झारखंड ग्रीन कान्क्लेव का आयोजन हो रहा है। बेहतर व हरित भविष्य के लिए आयोजित इस कान्क्लेव में कार्बन उत्सर्जन कम करने पर चर्चा हो रही है। प्रारंभिक सत्र में कान्क्लेव को संबोधित करते हुए झारखंड सरकार के पर्यावरण संरक्षण विभाग के अतिरिक्त प्रिंसिपल चीफ डा. प्रवीण झा ने ये बातें कहीं। उन्होंने बताया कि कंपनी और वाहनों से निकलने वाले धुंए से पृथ्वी तेजी से गर्म हो रही है जिसके कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं। भारत में उत्तराखंड में इसका असर देखा जा सकता है। हरिद्वार व ऋषिकेश में बाढ़ की स्थिति है। उन्होंने चेतावनी दी है कि ग्लेशियर पिघलने से समुद्र का जलस्तर बढ़ेगा। जिसके कारण समुद्र के 50 किलोमीटर की परिधि में रहने वाले लोगों का घर व जनजीवन प्रभावित होगा। उन्होंने बताया कि पिछले 20 वर्षो में प्राकृतिक आपदाओं की संख्या बढ़ी है जिससे लगभग पांच लाख लोगों की मौतें हुई है। केवल अमेरिका जैसे विकसित देश में तीन ट्रिलियन डॉलर का नुकसान हुआ है। औद्योगिककरण के कारण वन क्षेत्र कम हो रहे हैं जिसके कारण आक्सीजन की कमी हो रही है। इसका असर हमारे प्राकृतिक जल स्त्रोत पर भी पड़ रहा है। ऐसे में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने औद्योगिक विकास व मानव जीवन के बीच संतुलन बनाने के लिए मिशन 2030 की शुरूआत की है जिसके तहत हमें जलवायु परिवर्तन में हो रहे बदलाव पर रोक लगाने के लिए पहल करना होगा। उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए कई तरह से पहल कर रही है। साथ ही हम कंपनियों और देश में हो रहे प्रदूषण के स्तर को आंकने के लिए लगातार मॉनिटरिंग कर रहे हैं।

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बोकारो स्टील प्लांट 100 प्रतिशत कर रहा है औद्योगिक कचरे का इस्तेमाल

कान्क्लेव में बोकारो स्टील प्लांट के सेल्स महाप्रबंधक नवीन प्रकाश श्रीवास्तव ने कहा कि कोविड 19 के कारण जब कुछ माह उत्पादन पूरी तरह से बंद रहा तो नदियां साफ हो गया। हवा की शुद्धता बेहतर हुई और पर्यावरण स्वच्छ होने से पक्षियां फिर से वापस आए। उन्होंने बताया कि बोकारो स्टील प्लांट ने यूनाइटेड नेशन इन्वायरमेंट प्रो्ग्राम और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा दिए गए लक्ष्य पर काम करते हुए अपने यहां से उत्सर्जित औद्योगिक कचरे का 100 प्रतिशत इस्तेमाल कर रहा है जो किसी भी स्टील निर्माता कंपनी के सबसे बड़ी चुनौती है क्योंकि एक टन स्टील के निर्माण में आधा टन औद्योगिक कचरा निकलता है। उन्होंने बताया कि हम कंपनी से निकलने वाले गैस को फिर से इस्तेमाल में ला रहे हैं। साथ ही जीरो वाटर डिस्चार्ज योजना के तहत औद्योगिक पानी को साफ कर स्टील मैन्युफैक्चरिंग में उपयोग कर रहे हैं। हम कंपनी से निकलने वाले बीएस स्लैग का इस्तेमाल सीमेंट निर्माण में जबकि एलडी स्लैग का इस्तेमाल रेलवे ट्रैक के निर्माण में कर रहे हैं। कंपनी ने अपने एलडी स्लैग से 350 किलोमीटर रेलवे ट्रैक का निर्माण किया है और इसमें एक टन भी गिट्टी का उपयोग नहीं हुआ है। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि यदि हम पर्यावरण अनुकूल औद्योगिक विकास की ओर बढ़ेंगे। सौर ऊर्जा से उत्पादन, जीरो वाटर डिस्चार्ज सहित एलडी स्लैग से ट्रैक निर्माण की पहल करेंगे तो इससे पर्यावरण संतुलन भी बेहतर होगा और हमारी उत्पादन लागत भी कम होगी।

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अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में झारखंड में बेहतर अवसर, कंपनी करेगी निवेश

कान्क्लेव में ओ 2 पावर के सीईओ पीयूष मोहित ने संबोधित करते हुए कहा कि भारत में पहले सौर व पवन ऊर्जा का निर्माण काफी महंगा था। प्रति यूनिट 12 रुपये का खर्च आता था। लेकिन अब यह थर्मल पावर से भी सस्ता हो चुका है और तेजी से इसका उत्पादन बढ़ा है। अक्षय ऊर्जा से उत्पादन करने से उत्पादन लागत में भी काफी कमी आती है। उन्होने कहा कि झारखंड में सौर व पवन ऊर्जा के क्षेत्र में बेहतर अवसर है और हमारी कंपनी झारखंड में निवेश करने पर विचार करेगी। हालांकि उन्होंने कहा कि अक्षय ऊर्जा में पावर स्टोर सबसे बड़ी चुनौती है क्योंकि कंपनियों में नियमित रूप से उत्पादन करने के लिए बिजली की आवश्यकता होती है। इसलिए हमें बैटरी बेस्ट स्टोरेज पर फोकस करना चाहिए। लिथियम बैटरी इसका बेहतर विकल्प हो सकता है। उन्होंने कहा कि सौर ऊर्जा के क्षेत्र में हम आत्मनिर्भर हो रहे हैं। इस पहल का ही नतीजा है कि आज सुदूर ग्रामीण क्षेत्र को भी निर्बाध बिजली मिल रही है।

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जलवायु परिवर्तन सबसे बड़ी चुनौती

कान्क्लेव में ग्रीन कान्क्लेव के उद्देश्यों पर अपने विचार रखते हुए सीआइअइ झारखंड काउंसिल के वाइस चेयरमैन तापस साहू ने कहा कि सभी कंपनियों के लिए जलवायु परिवर्तन सबसे बड़ी चुनौती है। इसके लिए सरकार कई तरह की पहल तो कर रही है साथ ही कई कंपनियां भी इनोवेशन की मदद से उत्पादन करते हुए न सिर्फ अपनी उत्पादन लागत को कम कर रहे हैं बल्कि हरित उत्पादों का भी निर्माण कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि देश भर में 150 से अधिक कंपनियां सौर ऊर्जा में निवेश कर अपनी उत्पादन लागत को कम कर रही है क्योंकि बिजली सभी कंपनियों के लिए सबसे महत्वपूर्ण संसाधन है। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि भविष्य में हमें औद्योगिक प्रदूषण को कम करते हुए सामाजिक जुड़ाव को बढ़ाना है।

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गरीब से ज्यादा अमीर करता है प्रदूषण

कान्क्लेव में सिटीजन फाउंडेशन के सीईओ सह सचिव गणेश रेड्डी ने कहा कि विकसित हो या विकासशील देश। गरीब से ज्यादा अमीर अपनी रोजमर्रा के कार्यो में प्रदूषण उत्सर्जन करता है। उन्होंने आंकड़ों के आधार पर बताया कि अमीर 0.56 टन का वार्षिक कार्बन उत्सर्जन करता है तो एक गरीब व्यक्ति 0.19 टन करता है।

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