Lok Sabha Election 2019 : खंभा है, तार है, मीटर है, पर गायब है बिजली
Lok Sabha Election 2019. घाटशिला प्रखंड की बाघुडिय़ा पंचायत में पहाड़ों व जंगलों से घिरा बंगाल सीमा से सटा बीहड़ गांव मिर्गीटांड़। इस गांव में कोई वोट मांगने नहीं जाता।
गालूडीह(पूर्वी सिंहभूम), सुजीत सरकार। Lok Sabha Election 2019 जमशेदपुर संसदीय क्षेत्र के घाटशिला प्रखंड की बाघुडिय़ा पंचायत में पहाड़ों व जंगलों से घिरा बंगाल सीमा से सटा बीहड़ गांव मिर्गीटांड़। दोपहर करीब 12 बज रहे थे। जब पहुंचे तो गांव में इमली पेड़ के नीचे बच्चे इमली खा रहे थे। कई महिलाएं इमली सुखा रही थीं। कुछ पानी भर रही थीं। कुछ लोग जंगल में केंदू पत्ता तोडऩे गए थे। ग्राम प्रधान सुरेंद्र किस्कू से भेंट हुई। उनसे अनुरोध किया कि ग्रामीणों को बुलाएं। ग्राम प्रधान ने कई ग्रामीणों को बुलाया। कटहल के पेड़ के नीचे खटिया पर चुनावी चौपाल सज गई।
चुनाव चर्चा छेड़ते ही ग्राम प्रधान सुरेंद्र किस्कू बोल पड़े- गांव का बूथ नौ किमी दूर है। चार साल से गांव में बिजली नहीं है। मगर वोट देने जरूर जाएंगे। नेता वोट मांगते हैं। चुनाव जीत कर जाते हैं। भूल जाते हैं। तभी रामचंद्र किस्कू बोल पड़े- अभी तक गांव में कोई नेता वोट मांगने नहीं आया है। सिर्फ थाना वाले आए थे। कह गए कि 12 मई को वोट जरूर देना। रामचंद्र कहते हैं कि आसपास के पहाड़ों में मैंगनीज है। आयरन है। पर ग्रामीणों की जिंदगी बदहाल है। सरकार खदान खोलती तो रोजगार मिलता। युवक पलायन नहीं करते। तभी लंबू मांडी बोल पड़े- कोई नेता कुछ नहीं करता है। गांव में बिजली नहीं है। किसी भी कंपनी के मोबाइल का टॉवर नहीं लगता है। पिछली बार विधायक जी आए थे, बोले कि यह करेंगे, वह करेंगे लेकिन किया कुछ नहीं...। गांव में बिजली का खंभा है, तार भी है, मीटर भी लगा है। मगर चार साल से बिजली नहीं है।
इसी बीच सत्तर साल के गुरभा मांडी बोल पड़े कि वोट दिते की करि जाबो। चलते पारी ना (वोट देने कैसे जाएंगे, चल नहीं सकते हैं)। तभी 80 साल के ठाकुर दास मांडी लाठी टेकते आ पहुंचे। बोले- गाड़ी पाठाबी, तबे वोट दिते जाबो। चलते पारी नाय (गाड़ी भेजोगे तभी वोट देने जाऊंगा, चल नहीं सकता हूं।) बूथ बहुत दूर है। इसी बीच शंभू मांडी टपक पड़े- वोट तो हर बार देते हैं, मगर कोई भी नेता पूछता नहीं है। हम तो अपने हाल पर जी रहे हैं। रंजीत मुर्मू कहने लगे कि इस गांव में सभी बेरोजगार हैं। यहां कोई काम-धंधा नहीं है। लोग जंगल के भरोसे जी रहे हैं। गांव की सड़क ढाई साल से अधूरी है। कोई देखने वाला नहीं है।