कभी डायन कह करार दी गई थी आफत, आज बनी पद्मश्री विजेता

झारखंड के लिए गर्व करने लायक खबर है। सरायकेला-खरसावां जिला के गम्हरिया प्रखंड के बीरबांसपुर स्थित भोलाडीह गांव की रहने वाली छुटनी महतो के संघर्ष को केंद्र सरकार ने सम्मान दिया है।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 26 Jan 2021 09:09 AM (IST) Updated:Tue, 26 Jan 2021 09:09 AM (IST)
कभी डायन कह करार दी गई थी आफत, आज बनी पद्मश्री विजेता
कभी डायन कह करार दी गई थी आफत, आज बनी पद्मश्री विजेता

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : झारखंड के लिए गर्व करने लायक खबर है। सरायकेला-खरसावां जिला के गम्हरिया प्रखंड के बीरबांसपुर स्थित भोलाडीह गांव की रहने वाली छुटनी महतो के संघर्ष को केंद्र सरकार ने सम्मान दिया है। गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर छुटनी को डायन-बिसाही के खिलाफ संघर्ष के लिए पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित करने की घोषणा की गई है।

छुटनी ने बताया कि पद्मश्री क्या होता है, मुझे नहीं मालूम, लेकिन कोई बड़ा चीज तो जरूर है, तभी मुझे लगातार फोन आ रहा है। छुटनी ने बताया कि उन्हें सुबह 11 बजे प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) से फोन आया। बोला कि आपको पद्मश्री मिलेगा। छुटनी ने कहा कि अभी टाइम नहीं है, एक घंटे बाद फोन करना। छुटनी ने बताया कि दोबारा दोपहर 12.15 बजे फोन आया। फोन करने वाले ने बताया कि आपका नाम और फोटो सभी अखबार और टीवी में आएगा। तभी से गांव के लोग काफी खुश हैं। बाहर से भी लगातार फोन आ रहा है, इसलिए लग रहा है कि यह जरूर कोई बड़ी चीज है।

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छुटनी का दर्द समाज का मर्ज बन गया

घटना जुलाई 1995 की घटना है। गम्हरिया के मतलाडीह के लोग छुटनी को अनायास ही डायन कहने लगे। गांव व उसके आसपास के इलाकों में घटने वाली हर घटना का दोष छुटनी पर मढ़ा जाने लगा। लोगों ने न सिर्फ छुटनी को मल-मूत्र पिलाया, बल्कि पेड़ से बांधकर पीटा और अधनंगी अवस्था में गलियों में घसीटा। लेकिन छुटनी महतो का यह दर्द आज समाज का मर्ज बन गया। डायन-बिसाही होने का आरोप किस कदर दर्द देता है, छुटनी से अधिक कौन जान सकता है। उसने इस दर्द को ही जीवन का संघर्ष बना लिया। आज किसी भी गांव में डायन बिसाही की कोई घटना घटती है तो छुटनी तुरंत पहुंच जाती है। वह लोगों को पहले समझाती है, अगर गांव वाले नहीं माने तो कानून की चौखट तक पहुंचती है।

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12 वर्ष की उम्र में धनंजय से हो गई शादी

छुटनी की शादी 12 वर्ष में ही धनंजय महतो से हो गई थी, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। पति के बड़े भाई भजोहरि छुटनी को देखना नहीं चाहते थे। वजह थी तो बस इतनी कि भजोहरि धनंजय की शादी अपनी साली से कराना चाहता था, परंतु छुटनी बीच में आ गई। गाली-गलौज, मारपीट से जब मन नहीं भरा तो भजोहरि ने उसके घर चोरी करा दी। छुटनी आंखों में आंसू लेकर कहती है, मैं अपने परिवार के साथ गांव के बाहर झोपड़ी बनाकर रहने लगी। इस बीच भजोहरि की बेटी बीमार पड़ी। भजोहरि ने उसका इलाज करने के बजाय ओझा के पास ले गया। ओझा ने तो छुटनी को डायन बता दिया। भजोहरि की बीमार बेटी ने अपनी चाची पर डायन होने का आरोप लगा दिया। कहने लगी, सपने में भी छुटनी उसे प्रताड़ित करती है। भरी सभा में उसने यह कह डाला कि छुटनी उसे खाए जा रही है। सपने में भी वह उसे प्रताड़ित करती है। मैं अब गांव की आफत नाम से पुकारी जाने लगी। कुछ दिन बाद छुटनी को मारने की नीयत से गांव वालों ने उनके घर पर ही हमला कर दिया। लेकिन वह बाल-बाल बच गई और अपने मायके गम्हरिया प्रखंड के बीरबांस के भोलाडीह गांव चली गई। फ्री लीगल एड कमेटी, जमशेदपुर के चेयरमैन प्रेमचंद बताते हैं कि कमेटी के सदस्यों को इसकी सूचना घटना के एक माह बाद मिली। उन्होंने भोलाडीह से रेस्क्यू

करके छुटनी को जमशेदपुर लाया और आरोपितों के खिलाफ केस दर्ज कराया। कमेटी के कहने पर भोलाडीह में छुटनी के भाइयों ने अपने गांव से बाहर घर बना दिया, जहां वह अपने दो बेटों, एक बहू के साथ रह रही है। वहां फ्री-लीगल एड कमेटी की एक्जीक्यूटिव मेंबर और सेंटर की इंचार्ज है। उसकी निगरानी में अभी 90 पीड़िता हैं। ये अलग-अलग गांव की इन महिलाओं को छुटनी ने संबंधित गांवों का पहरेदार बना रखा है। महिला प्रताड़ना की किसी भी तरह की घटना का पुरजोर विरोध करने वाली ये महिलाएं अपने मजबूत नेटवर्क के जरिए घंटा भर में न सिर्फ एकत्रित हो जाती हैं, बल्कि संबंधित महिला को न्याय दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ती हैं। छुटनी निरक्षर है, लेकिन हिदी, बांग्ला, व ओड़िया पर उसकी समान पकड़ है। छुटनी की सेवा को स्थानीय पुलिस-प्रशासन का भी भरपूर सहयोग मिल रहा है।

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छुटनी का कोट

डायन के नाम पर मैंने गहरा जख्म झेला है। चार बच्चों को लेकर घर छोड़ना पड़ा। यदि मैं डायन होती तो उन अत्याचारियों को खत्म कर देती, लेकिन ऐसा कुछ होता नहीं है। ओझा के कहने पर ग्रामीणों ने ऐसा जुल्म किया, जिसकी कल्पना सभ्य समाज नहीं कर सकता है। पुलिस-प्रशासन भी ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करती है। मैं उस असभ्य समाज से लोहा ले रही हूं, जहां नारी को सम्मान नहीं मिलता। मरते दम तक मेरा संघर्ष जारी रहेगा। -

छुटनी महतो

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अर्जुन मुंडा ने दी बधाई

छुटनी देवी को पद्मश्री पुरस्कार मिलने पर केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने बधाई दी है। उन्होंने अपने फेसबुक पेज पर लिखा है कि महिला उत्पीड़न, डायन प्रताड़ना और बाल विवाह जैसी सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ उनका संघर्ष इतिहास में दर्ज हो चुका है। छुटनी को बहुत बहुत बधाई।

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