जमापूंजी से खरीदी साइकिल और चल दिए घर की ओर
संसू पटमदा लॉकडाउन में जब काम बंद हुआ तो आमदनी होनी बंद हो गयी। लॉकडाउन के दो
संसू, पटमदा : लॉकडाउन में जब काम बंद हुआ तो आमदनी होनी बंद हो गयी। लॉकडाउन के दो माह बीतने के साथ पास रखे पैसे भी धीरे-धीरे खत्म हो रहे थे। पेट की आग बुझाने के लिए दो वक्त का भोजन चाहिए था लेकिन बड़ी मुश्किल से एक वक्त का भोजन मिल पाता था। दुकानदारों से उधार में सामान मिलने कि जब आस नहीं रही और लगा कि अब भूखे मर जाएंगे तो घर वापसी का निर्णय लिया। फिर 21 माई को पास बची जमा पूंजी से तीन-तीन हजार रुपये में सबने साइकिल खरीदी और घर की ओर चल दिए। यह कहना है धनबाद जिले के टुंडी गांव के दस प्रवासी मजदूरों का। सोमवार को ये लोग पटमदा प्रखंड के बेलटांड़ चौक पर पेड़ के नीचे आराम करने के लिए रुके थे। उन्होंने बताया कि अब यहां से बोड़ाम प्रखंड के रसिकनगर-बड़ाबाजार होते हुए पुरुलिया के रास्ते धनबाद जाएंगे।
दिलीप नामक मजदूर ने बताया कि हम सभी लोग टुंडी के रहने वाले हैं। जिनमें कई राज मिस्त्री तो कई उनके साथ करने वाले मजदूर हैं। हम सभी लोग कई सालों से ओडिशा के मयूरभंज में एक साथ रहकर काम करते थे। लेकिन लॉकडाउन के कारण रोजी-रोटी के लाले पड़े गए। शुरू के दिनों में लॉकडाउन खत्म होने का इंतजार करते रहे लेकिन यह ऐसा नहीं हुआ। मजदूरी करने के बाद जो पैसे रखे थे वह भी खत्म होने वाले थे। महीना खत्म होने के बाद डेरा मालिक को किराया देने के साथ राशन भी खरीदना होता। इसके लिए सभी को तीन-तीन हजार रुपये देना पड़ता जबकि हम सभी के पास करीब-करीब इतने ही पैसे बचे थे। सो, हमने साइकिल खरीदकर घर जाना ज्यादा मुफीद समझा। फिर सबने साइकिल खरीदी और 22 मई की सुबह मयूरभंज से अपने घर के लिए चल पड़े। फोटो कैप्शन : बोड़ाम के रास्ते धनबाद जाते प्रवासी मजदूर