भूमिज राजा ने 1832 ई. में की थी देवी की पूजा

सन 1832 में ईस्ट जंगल महल क्षेत्र में ब्रिटिश हुकूमत का अत्याचार आम जनमानस पर बढ़ गया था। ईस्ट जंगल महल के तत्कालीन ब्रिटिश शासक लार्ड फारगुसेन का अत्याचार ईस्ट जंगल महल के लोगों पर बढ़ने लगा था।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 14 Oct 2021 07:30 AM (IST) Updated:Thu, 14 Oct 2021 07:30 AM (IST)
भूमिज राजा ने 1832 ई. में की थी देवी की पूजा
भूमिज राजा ने 1832 ई. में की थी देवी की पूजा

संस, घाटशिला : सन 1832 में ईस्ट जंगल महल क्षेत्र में ब्रिटिश हुकूमत का अत्याचार आम जनमानस पर बढ़ गया था। ईस्ट जंगल महल के तत्कालीन ब्रिटिश शासक लार्ड फारगुसेन का अत्याचार ईस्ट जंगल महल के लोगों पर बढ़ने लगा था। तब ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ तत्कालीन भूमिज समाज के राजा क्षेत्रमोहन सिंह ने आवाज बुलंद की। भूमिज राजा क्षेत्रमोहन सिंह के पास कोई बड़ी रियासत नहीं थी। न ही उनके पास अंग्रेजों से मुकाबले को कोई सैनिकों की टुकड़ी थी। लेकिन भूमिज राजा क्षेत्रमोहन सिंह ने ऐलान किया था कि वे स्वतंत्र है। अंग्रेजों से लड़ने के लिए भूमिज राजा क्षेत्र मोहन सिंह ने देवी दुर्गा की आराधना करने का निश्चय किया। ब्रिटिश हुकूमत से लड़ाई जीतने के लिए उन्होंने शक्ति के लिए देवी की आराधना की। युद्व में शक्ति के लिए देवी की पूजा कर युद्ध लड़ा और अंग्रेजों को उक्त क्षेत्र में परास्त किया। आज लगभग 188 वर्ष बीत जाने के बाद भी पूजा की परंपरा बरकरार है। भूमिज राजा के वंशज आज भी युद्ध में राजा के द्वारा प्रयुक्त किए गए तलवार की दशमी के दिन पूजा अर्चना करते है। माँ की प्रतिमा स्थापित कर पूजा अर्चना की जाती है। वर्तमान में उनके वंशज पायरागुड़ी निवासी वासंती प्रसाद सिंह बताते है कि अंग्रेजों से स्वतंत्रता पाने के लिए भूमिज राजा क्षेत्रमोहन सिंह ने देवी की आराधना कर शक्ति की प्रार्थना की थी। तब ईस्ट जंगल महल में ब्रिटिश शासक लार्ड फारगुसेन का अत्याचार बढ़ गया था। भूमिज राजा ने देवी दुर्गा की आराधना कर अंग्रेजों से मुकाबला किया था। इसके फलस्वरूप लार्ड फारगुसेन को झुकना पड़ा था। उक्त युद्ध में भूमिज राजा के द्वारा प्रयुक्त तलवार को जय विजय कहा जाता है। जिसकी पूजा दशमी के दिन होती है। परंपरा के अनुसार अब देवी दुर्गा की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जाती थी। दोनों तलवार जय विजय को दशमी के पारम्परिक तरीके से पूजा की जाती हैं।

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