Deepawali 2021: आदित्यपुर व मानगो की करीब 50 महिलाएं बना रहीं गोबर से दीया, लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा व धूपबत्ती

यह विशेषता मिट्टी के दीया-मूर्ति में संभव नहीं है क्योंकि उन्हें आग में पकाया जाता है। गत वर्ष इसकी शुरुआत करीब 60 दीयों से हुई थी। इस बार उन्हें कोलकाता से 300 दीया का आर्डर मिल चुका है जिससे महिलाओं में खासा उत्साह है।

By Rakesh RanjanEdited By: Publish:Tue, 26 Oct 2021 05:58 PM (IST) Updated:Tue, 26 Oct 2021 05:58 PM (IST)
Deepawali 2021: आदित्यपुर व मानगो की करीब 50 महिलाएं बना रहीं गोबर से दीया, लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा व धूपबत्ती
गोबर के दीपक, लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा, गोबर की धूप बत्ती आदि बनाई जा रही है।

वीरेंद्र ओझा, जमशेदपुर : दीपावली की तैयारी जोर-शोर से चल रही है। बिजली की दुकानों में रंगबिरंगी लाइट की लड़ियां सजी हैं, तो कुम्हारों की दुकान में मिट्टी के दीये सज रहे हैं। करीब पांच वर्ष से मिट्टी के दीये का चलन बढ़ा है। ऐसे में शहर की एक महिला गोबर से दीया बना रही हैं, जो एक साथ कई खूबियों को समेटे हुए है। यह दीया दीपावली के बाद उपहार में पौधे भी देगा।

आयुर्वेद व प्राकृतिक चिकित्सा विशेषज्ञ सीमा पांडेय के निर्देशन में गोबर के दीपक, लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा, गोबर की धूप बत्ती आदि बनाई जा रही है। पूजा के बाद इन दीयों-मूर्ति को नदी या तालाब में विसर्जित करने की आवश्यकता नहीं है। इसे आप अपने घर की बालकनी या छत पर रखे गमले में रख दें। स्थान हो तो घर के आंगन या बगीचे में गड्ढा करके उसी में विसर्जित कर दें। जब इसमें हर दिन थोड़ा-थोड़ा पानी डालेंगे, तो कुछ दिन बाद इसमें तुलसी, अपराजिता, गेंदा आदि के पौधे उगते हुए दिखेंगे। चूंकि यह गोबर से ही बने हैं, इसलिए आपको अलग से खाद देने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

साठ दीपों से हुयी थी शुरुआत

सीमा बताती हैं कि यह विशेषता मिट्टी के दीया-मूर्ति में संभव नहीं है, क्योंकि उन्हें आग में पकाया जाता है। गत वर्ष इसकी शुरुआत करीब 60 दीयों से हुई थी। इस बार उन्हें कोलकाता से 300 दीया का आर्डर मिल चुका है, जिससे महिलाओं में खासा उत्साह है। इसके अलावा शहर में भी करीब 400 दीये बिकेंगे। करीब 150 लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा भी बन रही है। इसके अलावा पूजा के दौरान जलाने के लिए गोबर से निर्मित धूप बत्ती, धूपदानी, सजावट के लिए ऊं, श्री, स्वास्तिक आदि बनाए गए हैं। दीया पांच रुपये और लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा की कीमत 90 रुपये से शुरू है। इसमें आदित्यपुर व मानगो की करीब 50 महिलाएं जुड़कर रोजगार पा रही हैं।

गोबर का यह दीया नहीं सोखता तेल

आमतौर पर कच्ची मिट्टी, गोबर या गोइठा तेल-घी सोख लेता है, लेकिन यह दीया तेल नहीं सोखता है। सीमा पांडेय बताती हैं कि इसे गोबर को पहले सुखाकर पाउडर बना लिया जाता है। इसके बाद इसे एक गोंदनुमा लेप में अच्छी तरह साना जाता है। यह लेप ईमली के बीज, नीम की पत्ती और गवार फली के बीज से तैयार किया जाता है। गवार फली के बीज से गोंद भी बनता है। इस मिश्रण में मिलने के बाद गोबर का मिश्रण सख्त होता है और इसकी सतह चिकनी हो जाती है। इसके बावजूद ज्यादा दिन तक पानी के संपर्क में आने पर ये सभी पदार्थ घुल जाते हैं। इस प्रकार से यह दीया पर्यावरण संरक्षण के लिए हर दृष्टिकोण से बेहतर है।

गोमाता को बचाना मुख्य उद्देश्य

सीमा पांडेय बताती हैं कि हमारा मुख्य उद्देश्य गोसेवा है। यह विचार इसलिए आया जब देखी कि लोग दूध नहीं देने वाली गाय को सड़क पर छोड़ देते हैं। इसकी वजह से सड़क दुर्घटना भी होती है, तो अधिकांश कसाई के हाथ बेच दी जाती हैं। हमारे उपक्रम से अब सूखी गायों काे भी लोग पाल रहे हैं। इससे बहुत ज्यादा मुनाफा नहीं होता है, लेकिन हमें इस बात का सुख मिलता है कि हम गाेमाता को बचा पा रहे हैं। इनके गोबर व गोमूत्र से करीब 40 महिला गोपालकों को प्रतिमाह पांच-छह हजार रुपये मिल रहा है, जबकि कसाई सूखी गायों को चार-पांच हजार रुपये में खरीद लेता है। हम सभी आत्मनिर्भर हो रहे हैं, लेकिन हमारा उद्देश्य सिर्फ धन कमाना नहीं, पर्यावरण व गोमाता की रक्षा करना है। प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी मूर्तियों को विसर्जित करने से नदी प्रदूषित होती है, गोबर से नहीं। भविष्य में हम गोबर से धूप बत्ती, दीवार घड़ी, फ्लावर पॉट, पेन स्टैंड आदि बनाने जा रहे हैं।

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