ऐसा गांव जिसे छू भी नहीं सका कोरोना
टाप बाक्स गांव की कहानी बरकट्ठा के शीलाडीह पंचायत का झंडवाटांड गांव आदिवासी बह
टाप बाक्स
गांव की कहानी
बरकट्ठा के शीलाडीह पंचायत का झंडवाटांड गांव, आदिवासी बहुल गांव में आजतक नहीं हुआ एक भी व्यक्ति कोरोना से संक्रमित
मासूम अहमद/सुरेश पांडेय, बरकट्ठा (हजारीबाग) : वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण यानी कोविड -19 की दूसरी लहर से एक ओर भारत सहित दुनिया भर के देश त्राहिमाम कर रहे हैं। कोरोना के कहर से क्या गांव क्या शहर कुछ भी अछूता नहीं रहा है। दूसरी लहर से संक्रमण अब गांव में भी पांव पसारने लगा है। यही कारण है कि कोविड-19 से गांव के लोग भी न सिर्फ संक्रमित हो रहे हैं बल्कि कई लोगों का जान भी गंवाना पड़ रहा है। इतना सब कुछ होने के बाद भी ऐसा देखा जा रहा है कि जो लोग प्राकृतिक वातावरण में अधिक रहते हैं उन पर संक्रमण का प्रभाव नहीं हो रहा है। ऐसे में परिवेश में अधिकांशत: जनजातीय लोग अधिक रहते हैं। इस समाज के लोग अपने सीमित दायरे में रहते हैं। बाहरी दुनिया से उनका मिलना जुलना बहुत कम होता है। ऐसे लोग उतरी छोटनानागपूर प्रमंडल की आदिम जनजाति बिरहोर शामिल है। यही कारण है कि कोरोना संक्रमण का इतना प्रभाव होने के बाद भी कुछ दुरस्थ और जनजातीय गांव ऐसे भी हैं जहां संक्रमण न के बराबर सामने आया है। मगर इतना सब कुछ होने के बाद जिले का एक ऐसा गांव भी है जिसे कोरोना का संक्रमण छू भी नहीं सका है। हम बात कर रहे हैं जीटी रोड के किनारे स्थित बरकटठा प्रखंड के शीलाडीह पंचायत अंतर्गत झंडवाटांड गांव की। आदिवासी बहुल इस गांव की आबादी 150-200 के बीच है। गांव जाने के लिए पीसीसी पथ के अलावा बिजली के पोल व तार गांव तक विकास की रौशनी पहुंचने की दास्तान बताते हैं। प्रखंड मुख्यालय से महज 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित संथाली आदिवासी बहुल गांव के लोग जनजातीय परंपरा के वाहक हैं। गांव के लोग शहरी कल्चर से काफी हद तक अपने को अलग थलग रखे हुए हैं। विशुद्ध रूप से प्राकृतिक वातावरण में रहने के वे अभ्यस्त हैं। आदिवासी परंपरा को कायम रखने के साथ साथ गांव के लोग साफ-सफाई का अनुपालन सर्वाधिक करते हैं। इसका अंदाजा गांव में दाखिल होते ही हो गया। गांव को जाने वाले कच्चे रास्ते और उसके दोनों ओर गंदगी का नामोनिशान भी नहीं दिखा। गांव के लोग शैक्षणिक रूप से जागरुक भी हैं। गांव में प्रवेश करते ही हम लोगों की मुलाकात गांव के युवा समाजसेवी रामजी बैसरा से मुलाकात हुई। कहने लगे गांव के लोग कोरोना के प्रति जागरूक है। जहां तक होता है लोगों को कोरोना के प्रति जागरूक करता हूं। सरकारी गाइडलाइन के तहत हम सब मास्क लगाते हैं। शारीरिक दूरी का पालन करते हैं। खेती बारी के अलावा बहुत जरूरी होने पर ही हम लोग घर से बाहर निकलते हैं। कोरोना के प्रति ग्रामीण इलाकों के लोग सहज ओर सजग हैं। वैसे सरकार के गाइडलाइन को भी हम लोग मानते हैं। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में कोरोना जांच शिविर में गांव के कई व्यस्क लोग जांच कराए। मगर कोई भी संक्रमित नहीं निकला। आगे ग्रामीण बबलू बेसरा मिले। कहने लगे ने कहा कोरोना को साफ-सफाई और समुचित खान-पान से कोरोना को मात दिया जा सकता है। हम सब खेती बारी के कार्य में कठिन शारीरिक परिश्रम भी करते हैं। इससे हम लोगों की प्रतिरोधक क्षमता भी अधिक रहती हैं। यह भी कहा कि बहुत जरूरी होने पर ही हमलोग शहर आते जाते हैं। यही कारण है कि गांव के लोग संक्रमण से अब तक बचे हुए हैं।