आजादी के 74 वर्ष बाद भी नहीं बदली कई आदिवासी गांवों की तस्वीर

हेडिंग दो लाइन बाटम एक दर्जन से अधिक गांवों की हालत बदहाल नही पहुंची विकास की किरण

By JagranEdited By: Publish:Sat, 14 Aug 2021 09:31 PM (IST) Updated:Sat, 14 Aug 2021 09:31 PM (IST)
आजादी के 74 वर्ष बाद भी नहीं बदली कई आदिवासी गांवों की तस्वीर
आजादी के 74 वर्ष बाद भी नहीं बदली कई आदिवासी गांवों की तस्वीर

हेडिंग दो लाइन

बाटम

एक दर्जन से अधिक गांवों की हालत बदहाल, नही पहुंची विकास की किरण

जाने का मार्ग तक नहीं

संवाद सूत्र चरही (हजारीबाग): जिले के अति सुदूरवर्ती क्षेत्र चुरचू प्रखंड के आदिवासी बहुल दर्जन भर से अधिक ऐसे गांव हैं, जहां आजादी के इतने वर्षों बाद भी गांव में विकास की किरण नहीं पहुंची। फुसरी ,दलदलिया ,चिरूबेडा, पीपराबेडा, कर्माबेड़ा, दहुदाग, बिराखाप ,लिखलाही गांव की तस्वीर आजादी के 74 वर्ष बाद भी नहीं बदली है। जिले के सुदूर व पहाड़ी क्षेत्र को देखते हुए चुरचू को प्रखंड इस लिए बनाया गया कि क्षेत्र का विकास संभव हो पाएंगे। आजादी के बाद कई बदलाव हुए हैं। बिहार से अलग होकर झारखंड राज्य की स्थापना हुई। जिले और प्रखंड को को भी बांटकर चुरचू को एक अलग छोटा प्रखंड बना दिया गया। इससे विकास की किरण उन क्षेत्रों में फूटेंगे जहां कोई राजनेता और अधिकारी नही पहुंचते। नेताओं का काफिला उन सुदूरवर्ती गांवों में कभी कभार चुनावों के मौसम में ही पहुंचते हैं। चुनाव जीतने के बाद उन क्षेत्र का विकास राम भरोसे ही रह जाता है। प्रखंड मुख्यालय से पांच से सात किलोमीटर की दूरी पर कई ऐसे गांव बसे हैं,जहां आज भी मूल भूत सुविधा नहीं पहुंच पाई है। चिरूबेडा ,जोजोबेडा और पिपराबेडा, पंदनाटांड़ गांव के लोग आज भी ढिबरी युग मे अपना जीवन जी रहे हैं।इन गावों में बिजली ,सड़क, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे मूलभूत सुविधा से वंचित है। गांव में चार पहिया से तो दूर दो पहिया से भी गांव जाना महंगा पड़ता है। बरसात में बीमार पड़ जाने पर मुश्किल से अस्पताल तक लाना पड़ता है। बिजली नहीं होने के कारण ग्रामीणों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। वर्तमान समय में केरोसिन की महंगाई के कारण रात्रि को बच्चे अपने घरों में पढ़ाई नहीं कर पाते हैं। ऐसा नही कि विकास नहीं किया जा सकता है। जन प्रतिनिधियों और सरकारी तंत्रों की इच्छा शक्ति नहीं होने के कारण खाका तैयार योजनाओं को जमीन पर उतारा नही जा पाता है। बात करें उस पथ की जो प्रखंड मुख्यालय से चरही की दूरी महज दस किलोमीटर की है। बहेरा - बोदरा मार्ग को इच्छाशक्ति की कमी होने के कारण नहीं बनाया जा सका है। इसी रास्ते के बीच में ही आदिवासी बहुल कई गांव बसे हुए हैं।

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