प्राकृतिक सौंदर्य की भूमि गुमला में है पर्यटन विकास की अपार संभावना
जागरण संवाददाता गुमला लहलहाते हरे भरे वन कलकल निनाद करती नदियों के जलप्रपात से निकलत
जागरण संवाददाता, गुमला : लहलहाते हरे भरे वन, कलकल निनाद करती नदियों के जलप्रपात से निकलते चांदी जैसी चमक, पहाड़ों की अनगिनत श्रृंखलाएं और कई देवस्थल गुमला जिला को सौंदर्य की भूमि बना चुके हैं। इस भूमि पर धर्म और संस्कृति की धाराएं सदियों-सदियों से बहते रही है जो लोगों के मन में ज्ञान और दर्शन के भाव जगाते रहे हैं। यही जागने वाले ज्ञान और दर्शन के भाव मन में घूमने-फिरने की जिज्ञासा भी उत्पन्न करते रहे हैं। दर्शनीय स्थल का दिग्दर्शन केन्द्र पर्यटन स्थल का रूप ले चुके हैं और दर्शन करने वाले पर्यटक कहलाने लगे हैं। यही पर्यटन स्थल जहां विकास की असीम संभावनाओं को जगा रहे हैं। वहीं रोजगार और आय का भी सपना दिखा रहे हैं। गुमला जिला में कई ऐसे ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल भी हैं जो न सिर्फ आस्था का भाव जगाते हैं बल्कि दर्शन का अभिलाषी भी बनाते हैं। गुमला जिला में बहुसंख्यक ऐतिहासिक स्थल हैं जिनमें पालकोट, बाबा टांगीनाथ धाम, आंजन धाम, देवाकी धाम, नागवंशी राजाओं का राजधानी रहे सिसई प्रखंड का नवरत्न गढ़ नगर, नागफेनी के भगवान जगन्नाथ के मंदिर धार्मिक और ऐतिहासिक पर्यटन के केन्द्र हैं जहां प्रकृति और मानव निर्मित कई ऐसी कृतियां हैं जिनकी रचनाएं बरबस मन को आकर्षित कर लेती हैं। सीरासीता नाला भी आदिवासियों की पूजनीय स्थल के साथ-साथ पर्यटन केन्द्र बन चुका है लेकिन आवश्यकता है इन केन्द्रों को आर्थिक विकास का केन्द्र बनाने की। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार सृजन का। आय संवर्धन का।
आकर्षण का केंद्र हैं जलप्रपात
गुमला जिला के नदियों में पहाड़ और पत्थरों की भरमार है। इनके बीच से जब कलकल निनाद करती हुई जलधाराएं गुजरती है तो संगीत के आवाज सुनाई पड़ती है। गुमला में नागफेनी के अंबाघाघ जलप्रपात, बसिया में बाघमुंडा, रायडीह में हीरादह जलप्रपात जहां जल धारा द्वारा सृजित गीत संगीत की आवाज गूंजती है वहीं इन जल धाराओं से चांदी जैसी चमक भी निकलती है। हीरादह के जल धाराओं ने पत्थरों को काट कर ऐसी कला कृतियों का निर्माण किया है जहां से नजर हटने का नाम ही नहीं लेती। बनी है विकास की योजनाएं
इन स्थलों के विकास की योजनाएं राज्य की कला संस्कृति एवं युवा मंत्रालय द्वारा बनायी गई हैं। बनायी गयी योजनाओं में सड़क, बिजली, पेयजल, रहने के यात्री शेड, तोरण द्वार आदि शामिल हैं। बाद ऐसी नहीं है कि इन स्थलों का विकास नहीं हुआ है। स्थानीय लोगों को अप्रत्यक्ष रोजगार मिलना आरंभ जरूर हुआ है लेकिन बृहद पैमाने पर नहीं। सिर्फ स्थानीय लोग त्योहारों के दिन पूजन सामाग्री और अन्य उपयोगी सामग्रियों को बेच कर आय करते हैं। यदि इन स्थलों को पर्यटन का दर्जन दिया जाए तो इसमें कोई शक नहीं कि पर्यटक बड़ी संख्या में आएंगे। लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार मिलेगा। आत्मनिर्भर गुमला बनाने की दिशा में कदम उठेगा। बात ऐसी भी नहीं है कि लोग पर्यटन केन्द्र के रूप में इन स्थलों को मान्यता देने के लिए प्रयास नहीं किए हैं। कई बार पालकोट को पर्यटन स्थल का दर्जा देने की बात उठ चुकी है। पर्यटन विकास की अपार संभावना के मद्देनजर आय और रोजगार की भी संभावना बनी हुई है।