पुरातात्विक धरोहर, देशभक्ति व प्रतिभाएं गुमला को दिलाई है अंतरराष्ट्रीय पहचान

निर्मल सिंहगुमला वनों और पहाड़ों से आच्छादित प्राकृतिक खूबसूरती के बीच बसा जनजातीय बहुल

By JagranEdited By: Publish:Mon, 17 May 2021 11:19 PM (IST) Updated:Mon, 17 May 2021 11:19 PM (IST)
पुरातात्विक धरोहर, देशभक्ति व प्रतिभाएं गुमला को दिलाई है अंतरराष्ट्रीय पहचान
पुरातात्विक धरोहर, देशभक्ति व प्रतिभाएं गुमला को दिलाई है अंतरराष्ट्रीय पहचान

निर्मल सिंह,गुमला : वनों और पहाड़ों से आच्छादित, प्राकृतिक खूबसूरती के बीच बसा जनजातीय बहुल जिला गुमला की अपनी अंतरराष्ट्रीय पहचान है। जिले का अंतरराष्ट्रीय पहचान के कारण यहां का पुरातात्विक धरोहर, देश भक्ति और प्रतिभाएं है। प्राचीन संस्कृति और परंपरा के कारण सामाजिक सद्भाव यहां का इतिहास रहा है। जिले में कई ऐसी खास पहचान है जिसका नाम विश्व के मानचित्र पर अंकित है। गुमला के टांगीनाथ धाम यूं तो शिव स्थली के रूप में प्रसिद्ध है लेकिन जंगल के बीच और पहाड़ की चोटी पर बिखरे मध्यकालीन शिवलिग एवं अन्य कलाकृति के पुरातरत्विक धरोहर अनुसंधान का बाट जो रहा है। विश्व धरोहर में शामिल सिसई नगर का नवरत्न गढ़ धर्म कला और वास्तु शिल्प की अनूठी कृति के लिए प्रसिद्ध है। नागवंशी राजाओं का कभी राजधानी रहा इस किला के भूगर्भ में हासिल प्रतिमा और वास्तु को पुरातात्विक विभाग ने राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया है। आंजन धाम और पालकोट का ऋषिमुख पर्वत त्रेतायुग का पुरातात्विक धरोहर है। कहा जाता है कि भगवान श्री राम का अनन्य भक्त हनुमान का जन्म आंजन ग्राम में हुआ था। अंजनी माता की गोद में बाल हनुमान का प्राचीन शिलाखंड इसका प्रमाण है। माता अंजनी के निवास के कारण ही इस गांव का नाम आंजन पड़ा। आंजन से ही जुड़ा है पालकोट का ऋषिमुख पर्वत। जहां हनुमान ने भगवान श्री राम और सुग्रीव का मिलन कराया था। पंपा सरोवर के नाम से ही इस स्थान का नाम पालकोट पड़ा। गोबरसीली पहाड़ की बनावट यहां का आकर्षण है। प्राकृतिक सौंदर्य और अध्यात्मिक दृष्टिकोण से यह स्थान पर्यटन स्थल के मानक को पूरा करता है।

जिले को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने में यहां के देश भक्तों की बलिदान का भी इतिहास रहा है। अंग्रेजी हुकूमत से देश को स्वतंत्र कराने में बख्तर साय और मुंडल सिंह इतिहास के पन्नों में गुम हो गया वहीं जतरा टाना भगत ने सत्य और अहिसा के मार्ग पर चल कर इतिहास रचने का काम किया है। परमवीर अल्बर्ट एक्का की शहादत को आज भी देश नमन करता है।

जिला की पहचान खेल प्रतिभा के लिए भी प्रसिद्ध है। स्थानीय जनप्रनिधि कार्तिक उरांव का राजनीतिक कार्य कुशलता आज भी प्रासंगिक है। अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद का गठन जनजातीय समुदाय को शिक्षित और संगठित करने के लिए अब भी मिल का पत्थर साबित हो रहा है।

सुब्रतो मुखर्जी फुटबाल और नेहरु कप हाकी प्रतियोगिता में नेशनल चैंपियन तथा गुमला सिमडेगा संयुक्त जिला में हाकी के खिलाड़ियों ने गुमला को राष्ट्रीय पहचान दी। विमल लकड़ा, बीरेन्द्र लकड़ा, राजेश पांडेय, अनमोल आइंद, अजय कुमार सिंह, महावीर लोहरा, वीणा केरकेट्टा, कार्तिक उरांव,असुंता लकड़ा द्वारा दिए गए अंतरराष्ट्रीय पहचान की गरिमा को अब भी यहां के प्रतिभावन खिलाड़ियों ने बरकरार रखने का काम किया है।

वहीं डा.अनाबेल बेंजामिन की प्रतिमा के कारण ही संयुक्त राष्ट्र के शैक्षिक वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन यूनेस्को द्वारा वर्ष 2022-32 तक अंतरराष्ट्रीय आदिवासी भाषा की दशक वैश्विक कार्यकाल के लिए एशिया महाद्धीप का प्रतिनिधित्व करेंगे। गुमला के डा.पंकज कुमार एम्स भुवनेश्वर में सर्जन विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर हैं और स्वीटजरलैंड में हुए यूरोपियन कॉलारेक्टिकल कांग्रेस में भारत का प्रतिनिधत्व कर प्रथम स्थान हासिल कर गुमला जिला का गौरव बढ़ाया है।

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