नवडीहा में स्ट्रोबेरी की खेती है आकर्षण का केंद्र

..रायडीह के मरदा गांव से गुजरने वाली मरदा नदी पर आजादी के कई दशक बीत जाने के बाद भी नहीं बना है पुल पुल नहीं होने से एक दर्जन से अधिक गांवों के लोगों को होती है परेशानी बरसात के दिनों में गांव हो जाता है टापू पुल के अभाव में मुख्यालय जाने के लिए दस किमी. अतिरिक्त दूरी करना होता है तय ग्रामीणों से बातचीत।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 18 Feb 2020 09:19 PM (IST) Updated:Tue, 18 Feb 2020 09:19 PM (IST)
नवडीहा में स्ट्रोबेरी की खेती है आकर्षण का केंद्र
नवडीहा में स्ट्रोबेरी की खेती है आकर्षण का केंद्र

रमेश कुमार पाण्डेय, गुमला : किसानों को सैद्धांतिक जानकारी देने से आधुनिक और वैज्ञानिक पद्धति से की जानेवाली कृषि को सहज ही बढ़ावा नहीं दिया जा सकता और न ही उत्पादन का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है। किसानों को उनके खेतों पर जाकर खुद प्रयोग करके विकसित कृषि प्रणाली सिखाने की जरूरत है। जिससे किसान अधिक उत्पादन और अधिक आय के लिए खुद निपुण हो सकें। यह कहना है कर्नाटक के मैसूर से आए कृषि वैज्ञानिक से किसान बने लोकेश पुटूस्वामी का।

आठ वर्षों से किसानों को पढ़ा रहे हैं कृषि का पाठ : लोकेश स्वामी वर्ष 2012 में गुमला के घाघरा आए थे। कांग्रेस नेता शिवकुमार भगत के सहयोग से उन्होंने किसानों से जमीन लीज पर लिया था। सबसे पहले केला की खेती की थी। केला से अच्छी पैदावार भी हुई। उसके साथ ही उन्होंने ली गई जमीन को कृषि फार्म का रूप दिया। नगदी फसलों की खेती आरंभ कर दी। उनकी मेहनत और लहलहाते फसलों को देखने के लिए आस-पास से ही नहीं दूर दराज के किसान भी पहुंचने लगे।

स्ट्रोबेरी की खेती घाघरा के लिए है नूतन प्रयोग : गुमला जिला में ही नहीं झारखंड में कुपोषण की समस्या गंभीर है। कुपोषण मिटाने के लिए पौष्टिक और संतुलित आहार की जरूरत होती है। स्ट्रोबेरी फल में उच्च पोषक तत्व पाए जाते हैं। इसके खाने से कुपोषण दूर होता है। बाजार में इसकी अच्छी कीमत मिल जाती है। थोक भाव में स्ट्रोबेरी दो सौ रुपये किलो की दर से आसानी से बिक जाता है। बाजार तलाशने की भी जरूरत नहीं है। रांची, कोलकाता, गुमला में इसकी बिक्री होती है। स्ट्रोबेरी से जैम बनाया जाता है। फल का जूस व दवा भी बनायी जाती है।

नगदी फसल पर है ध्यान

लोकेश स्वामी ने कहा हमारे प्रधानमंत्री का संकल्प किसानों का आय दोगुना करने का है। इस संकल्प को पूरा करने के लिए उन्होंने नगदी फसलों को लगाने और उपजाने का काम किया है। स्ट्रोबेरी की फसल ढाई से तीन एकड़ जमीन पर लगायी गई है। प्रतिदिन 20 किलोग्राम फल का उत्पादन हो जाता है। चार हजार रुपये प्रतिदिन आय हो जाती है। सबसे बड़ी बात यह है कि 20 से 25 लोगों को रोजना रोजगार भी मिल जाता है। उनके फार्म में स्ट्रोबेरी के अलावे ओल, मशरूम, मुनगा के फसल लगे हैं। केला के बगान तो हैं ही। गर्मी के दिनों में खरबूज और तरबूज, प्याज और पपीता भी लगाया जाता है। बत्तख पालन भी किया जाता है। यह सब नकदी फसल में आते हैं। मटर की खेती भी की जाती है। आलू भी उगाए जाते हैं।

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