नर्स दिवस पर विशेष : बाहरी जख्मों से लेकर उनकी संवेदनाओं पर भी मरहम लगाती है नर्स

जागरण टीम गुमला नर्सों को इस पेशे से जुड़ी खुशियों के साथ-साथ कई चुनौतियों का भी सामना

By JagranEdited By: Publish:Tue, 11 May 2021 10:15 PM (IST) Updated:Tue, 11 May 2021 10:15 PM (IST)
नर्स दिवस पर विशेष : बाहरी जख्मों से लेकर उनकी संवेदनाओं पर भी मरहम लगाती है नर्स
नर्स दिवस पर विशेष : बाहरी जख्मों से लेकर उनकी संवेदनाओं पर भी मरहम लगाती है नर्स

जागरण टीम, गुमला : नर्सों को इस पेशे से जुड़ी खुशियों के साथ-साथ कई चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है। मरीज को ठीक करने में नर्सों का योगदान साठ फीसद होता है जबकि डाक्टरों का योगदान 40 फीसद होता है। नर्स एक मां, एक बहन के रूप में मरीजों की सेवा करती हैं। इस रिश्ते को बखूबी निभाने के कारण इन्हें सिस्टर का उपनाम दिया गया है। नर्स मरीजों के बाहरी जख्म से लेकर उनकी संवेदनाओं पर भी मरहम लगाती हैं। आधुनिक नर्सिंग की जननी कही जाने वाली फ्लोरेंस नाइटिगेल भी मरीजों की सेवा परिवार से बढ़कर करती थीं। इसलिए उनके जन्म दिन में प्रत्येक वर्ष 12 मई को अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस मनाया जाता है। प्रतिदिन आठ किलोमीटर की दूरी तक कर ड्यूटी पहुंचती है

गुमला : कोरोना काल में नर्स अपनी जान को जोखिम में डालकर सेवा दे रही है। नर्स शीतल कुमारी पिछले चौदह वर्षों से प्राथमिक स्वास्थ्य उपकेंद्र जोराग में अपनी सेवा दे रही है। प्रतिदिन आठ किलोमीटर की दूरी तय कर जोराग उपकेंद्र पहुंचना और वहां के लोगों को ओपीडी सेवा प्रदान करना उनका नियमित कार्य है। इसके अलावे नियमित टीकाकरण, राष्ट्रीय कार्यक्रम पल्स पोलियो, फाइलेरिया नियंत्रण, गर्भवती महिला की नियमित जांच और सुरक्षित प्रसव आदि में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। कोरोना संक्रमण से ग्रामीणों को बचाव के लिए हाथ धोने, मास्क लगाने, अनावश्यक घर से नहीं निकलने के लिए प्रेरित कर रही हैं।

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कोरोना संक्रमित पति व ड्यूटी का फर्ज निभाती रही।

रायडीह : मरीजों की सेवा ही मानव सेवा है। जब कोई मरीज स्वस्थ होकर अपने घर को जाता है। तब परम आत्मसंतुष्टि होती है। यह उदगार सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र रायडीह में पदस्थापित एएनएम आभा किशोरी एक्का ने व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि उनके पति पूर्व फौजी हैं। हाल में ही वे कोरोना संक्रमित हो गए थे। इस कठिन दौर में मुझे अपने पति को घातक और गंभीर बीमारी से निजात के लिए उनकी सेवा, अपने बच्चों को देखभाल और अपना डयूटी। तीनों कार्य मेरे लिए चुनौती भरा रहा। फिर भी मैं विचलित नहीं हुई और बच्चों को अपनी मां के पास भेज दिया। फिर डयूटी भी जाती थी। घर आकर बीमार पति को सेवा भी करती। दस से बारह दिन में वे स्वस्थ हो गए। मुझे अस्पताल में बीमार लोगों को सेवा करना बहुत ही पुण्य, पवित्र और गरिमामयी कार्य लगता है।

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