केवीके प्रक्षेत्र में पहली बार रसभरी मकोय फल की बागवानी
संस गोड्डा ग्रामीण विकास ट्रस्ट के तहत संचालित कृषि विज्ञान केंद्र के प्रक्षेत्र में पहली बा
संस, गोड्डा : ग्रामीण विकास ट्रस्ट के तहत संचालित कृषि विज्ञान केंद्र के प्रक्षेत्र में पहली बार रसभरी मकोय फल की बागवानी का अंत: प्रक्षेत्र परीक्षण के लिए की जा रही है। रसभरी एक छोटा सा पौधा है। इसके फलों के ऊपर एक पतला सा आवरण होता है। कहीं-कहीं इसे मकोय भी कहा जाता है। इसके फलों को खाया जाता है। रसभरी औषधीय गुणों से परिपूर्ण है। कृषि प्रसार वैज्ञानिक डॉ.रितेश दुबे एवं सहायक बुद्धदेव सिंह ने प्रक्षेत्र भ्रमण के दौरान रसभरी के पौधों का निरीक्षण किया। उन्होंने बताया कि रसभरी को पौधों में फल लगना शुरू हो गया है। फरवरी माह तक रसभरी का फल पकने लगेगा और खाने योग्य होगा। रसभरी का फल, फूल, पत्ती, तना, मूल उदर रोगों (और मुख्यत: यकृत) के लिए लाभकारी है। इसकी पत्तियों का काढ़ा पीने से पाचन तंत्र अच्छा होता है साथ ही भूख भी बढ़ती है। यह लीवर को उत्तेजित कर पित्त निकालता है। इसकी पत्तियों का काढ़ा शरीर के भीतर की सूजन को दूर करता है। सूजन के ऊपर इसका पेस्ट लगाने से सूजन दूर होती है। रसभरी की पत्तियों में कैल्सियम, फास्फोरस, लोहा, विटामिन-ए, विटामिन-सी पाये जाते हैं। इसके अलावा कैटोरिन नामक तत्त्व भी पाया जाता है जो ऐण्टी-आक्सीडैंट का काम करता है। बवासीर रोग में इसकी पत्तियों का काढ़ा पीने से लाभ होता है। खांसी, हिचकी, श्वांस रोग में इसके फल का चूर्ण लाभकारी है। सफेद दाग में रसभरी की पत्तियों का लेप लाभकारी है। यह डायबिटीज मे कारगर है। लीवर की सूजन कम करने में अत्यंत उपयोगी है। गोड्डा के किसानों को किसान दिवस के अवसर पर रसभरी के 500 बिचड़े वितरित किया गया था। उम्मीद है कि किसानों को रसभरी की अच्छी उपज मिलेगी और बाजार में रसभरी नये फल के रूप अधिक आमदनी का स्त्रोत तथा ग्राहकों के बीच अत्यधिक लोकप्रिय फल साबित होगा।