सत्य से ही शुरू होता है मानव का जीवन

संवाद सहयोगी ठाकुरगंगटी प्रखंड क्षेत्र के परासी चौक मोड़ पर शनिवार रात श्रद्धालुओं द्वारा

By JagranEdited By: Publish:Mon, 01 Mar 2021 12:58 AM (IST) Updated:Mon, 01 Mar 2021 12:58 AM (IST)
सत्य से ही शुरू होता है मानव का जीवन
सत्य से ही शुरू होता है मानव का जीवन

संवाद सहयोगी, ठाकुरगंगटी : प्रखंड क्षेत्र के परासी चौक मोड़ पर शनिवार रात श्रद्धालुओं द्वारा संतमत सत्संग का आयोजन किया गया। स्वामी अभिनंदन जी महाराज और स्वामी दिनेशानंद जी महाराज ने संतमत व धार्मिक ज्ञान के बारे में बताया।

कहा कि मनुष्य का जीवन सत्य से ही शुरू होता है। सत्य के सहारे ही मनुष्य नाम कमाते हैं। कोई मनुष्य ख्याति प्राप्त करने के बाद अपने नाम को आगे बढ़ा पाते हैं। मनुष्य अपने नाम के आधार पर भी ख्याति प्राप्त करते हैं। सत्संग का अर्थ सत्यवान व सदाचारी लोगों का संग है। बिना सत्य का सहारा लिए मनुष्य का जीवन सफल नहीं हो सकता।

प्रत्येक मनुष्य को झूठ, चोरी, नशा, हिसा, व्यभिचार से दूर रहना चाहिए। एक-दूसरे के साथ आपस में सदभावनापूर्ण और समरसता बनाए रखना चाहिए। प्रतिदिन स्तुति, विनती, रामायण पाठ, ध्यान, सत्संग, भजन, कीर्तन व आरती करनी चाहिए । ध्यान करते करते मनुष्य आत्मा रूपी परमात्मा का दर्शन करते हैं। इस माध्यम से मनुष्य आगे की ओर बढ़ते हैं। सत्संग करने के लिए कहीं जाने की आवश्यकता नहीं है। प्रत्येक मनुष्य के शरीर में आत्मा रूपी परमात्मा अव्यक्त रूप में विराजमान है। सिर्फ उसे जानने और समझने की आवश्यकता है। ध्यान के माध्यम से व्यक्ति परमात्मा का दर्शन कर पराकाष्ठा की ओर पहुंचते हैं। इस माध्यम से व्यक्ति बैकुंठ प्राप्त कर जाते हैं। दयानंद कुमार, पंकज कापरी, जयदेव साह, शंकर कुमार महतो, डॉक्टर सचिन साह, गणपति साह, प्रेमानंद कापरी, विष्णु यादव, अनुपलाल यादव आदि ने आयोजन में सहयोग किया। कार्यक्रम में परासी, मोरडीहा, महुआरा, जंघेरा, सुजानकितता, चांदा, बिहारी आदि गांवों के दर्जनों श्रद्धालुओं ने भाग लिया।

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शरीर रूपी रथ पर यात्री आत्मा, विवेक सारथी

संवाद सहयोगी, पथरगामा : आनंद मार्ग प्रचारक संघ गोड्डा द्वारा आनंद मार्ग स्कूल सोनारचक में तीन दिवसीय सेमिनार का आयोजन किया गया। रविवार को आनंद मार्ग स्कूल के प्रांगण में सैकड़ों साधक साधिकाओं ने प्रभात फेरी निकाली। सेमिनार में मुख्य प्रशिक्षक आचार्य दिव्योन्मेषानंद अवधूत ने मानवीय अस्तित्व की तुलना रथ और रथी से की। कहा कि रथ की तरह ही शरीर एक जैविक यंत्र है। शरीर रूपी रथ का यात्री आत्मा है, विवेक सारथी है, मन लगाम है व इंद्रिय अश्व है। विवेकहीन सारथी इसे संसार में गर्त की ओर लेकर चला जाता है। देह रूपी रथ से नकारात्मक और सकारात्मक दोनों दिशाओं में यात्रा की जाती है। शरीर रूपी रथ को चलाने के लिए प्रकृत विज्ञान को ब्रह्म विज्ञान कहते हैं। जिस व्यक्ति की विवेक बुद्धि जग पड़ी है। जिसकी विचार शक्ति उदग्र हुई है उसका मन हमेशा बुद्धि के साथ युक्त रहता है। समाज के गति तत्व, मानव सभ्यता का विकास एवं रथ तथा रथी विषय पर विस्तृत चर्चा किया। इस सेमिनार में विभिन्न जगह से आए हुए प्रशिक्षण के अन्य सहयोगी आचार्य जय शिवानंद अवधूत एवं आचार्य मधुमयानंद अवधूत रहे। सेमिनार को सफल बनाने में भुक्ति प्रधान निशिकांत दादाजी, असीम आनंद, मैगजीन दादाजी, प्रोफेसर मनोज जी, कृष्ण देव, अरुण कुमार, संजीव दादाजी आदि मौजूद थे।

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