खनन क्षेत्र का विस्तार नहीं होने से बंदी के कगार पर राजमहल परियोजना
संवाद सहयोगी ललमटिया ललमटिया के तालझारी मौजा की जमीन पर खनन कार्य शुरू नहीं होने के
संवाद सहयोगी, ललमटिया : ललमटिया के तालझारी मौजा की जमीन पर खनन कार्य शुरू नहीं होने के कारण राजमहल परियोजना का क्षेत्र का विस्तारीकरण नहीं हो पा रहा है। परियोजना का विस्तारीकरण ना हो पाना कर्मचारियों व अधिकारियों सहित स्थानीय लोगों के लिए चिता का विषय बनता जा रहा है । जानकारी के अनुसार राजमहल परियोजना द्वारा तालझारी मौजा में 90 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया गया है। परियोजना द्वारा 9.16 करोड़ रुपये का भुगतान संबंधित रैयतों को पूर्व में ही कर दिया गया है। तालझरी मौजा के 17 रैयतों को परियोजना में नौकरी भी दी गई है, लेकिन ग्रामीणों के एक गुट के विरोध से तालझारी मौजा में खनन कार्य शुरू नहीं हो पाया है। इससे ईसीएल का कोयला उत्पादन बुरी तरह प्रभावित हो गया है। एनटीपीसी फरक्का व कहलगांव को कोयला की आपूर्ति नहीं हो पा रही है । समय रहते परियोजना का विस्तार नहीं हो पाया तो यह बंद हो सकती है । इससे उत्तर पूर्व भारत में बिजली के लिए हाहाकार मच सकता है। राजमहल कोल परियोजना से झारखंड सरकार को प्रतिवर्ष मिलने वाले 400 से 500 करोड़ का राजस्व भी बंद हो सकता है। साथ ही क्षेत्र का विकास प्रभावित हो सकता है। हजारों लोगों के रोजगार पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
---
परियोजना प्रबंधन खनन कार्य के बाद जमीन वापसी को गंभीर नहीं :
राजमहल परियोजना को जमीन की समस्या से उबारने के लिए सोमवार को छोटा सिमरा मैदान में ट्रेड यूनियन के नेताओं व ग्रामीणों की बैठक हुई। इसमें परियोजना को बचाने पर विस्तृत चर्चा की गई। प्रदीप पंडित ने बताया कि राजमहल परियोजना को खतरे से बचाना क्षेत्र के सभी लोगों का दायित्व है। राजमहल परियोजना से ही क्षेत्र का विकास जुड़ा है। ग्रामीणों ने बताया कि सबसे पहला मामला जमीन की वापसी का है। राजमहल परियोजना द्वारा खनन कार्य करने के बाद जमीन वापसी का भी प्रावधान था ,लेकिन जमीन वापसी नहीं होने पर रैयतों में नाराजगी है। दूसरा कारण आला अधिकारियों द्वारा नियम कानून को ताक पर रखकर हकमारी है। तीसरा कारण रैयतों के साथ लिखित वार्ता के अनुरूप वादाखिलाफी से जुड़ा है। तालझारी गांव के आदिवासी रैयतों का कहना है कि वर्ष 2014 में लोहंडिया बस्ती व वर्ष 2018 में बसडीहा गांव के ग्रामीणों ने जमीन अधिग्रहण कराया। अब तक लोहंडिया बस्ती और बसडीहा का पूर्ण विस्थापन नहीं हो सका। तो फिर तालझारी मौजा के लोग किस आधार पर परियोजना को खनन कार्य करने के लिए जमीन देंगे। ग्रामीणों ने बताया कि राजमहल परियोजना में कुछ ऐसे पदाधिकारी है जो काफी लंबे समय से जमे हुए हैं। वह स्थानीय लोगों के मिलने वाले हक के साथ छेड़छाड़ करते हैं।आउटसोर्सिंग कंपनी में भू विस्थापितों व परियोजना प्रभावित लोगों को रोजगार नहीं दिया जाता है। बाहरी लोगों को काम पर रखा जाता है जिससे यहां के लोग बेरोजगार होते जा रहे हैं। राजमहल परियोजना द्वारा पुनर्वास स्थल में घर बनाने वाले रैयतों के लिए मिनिमम एग्रीकल्चर वेज देने का प्रावधान है ।लेकिन अब तक किसी को नहीं मिला। बैठक में बताया गया उपरोक्त तमाम असंतोष के कारण ग्रामीण परियोजना को जमीन देना नहीं चाह रहे हैं । उपस्थित ट्रेड यूनियन नेताओं ने कहा कि उपरोक्त समस्याओं के निदान के लिए एक मेमोरेंडम भारत सरकार, कोयला मंत्रालय, झारखंड सरकार व ईसीएल मुख्यालय को दिया जाएगा । राजमहल परियोजना को आगे बढ़ाया जाएगा ताकि क्षेत्र का विकास संभव हो सके। मौके पर बीएमएस के प्रदीप पंडित ,संदीप पंडित,सीएमएसआइ के प्रमोद हेंब्रम ,फाबियानुस मरांडी, अरुण हेंब्रम ,अर्जुन महतो, सरजू पंडित, राजेंद्र लोहार, ताराचंद लोहार, लालचंद पंडित, गुनाधर पंडित आदि थे।