सम्मेद शिखरजी पर मालिकाना हक की 87 साल की लड़ाई पर लगेगा विराम

दिलीप सिन्हा गिरिडीह जैन धर्म का सबसे बड़ा तीर्थ स्थल पारसनाथ पहाड़। इसे सम्मेद शिखरजी भी कहते हैं।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 22 Jun 2021 12:52 AM (IST) Updated:Tue, 22 Jun 2021 12:52 AM (IST)
सम्मेद शिखरजी पर मालिकाना हक की 87 साल की लड़ाई पर लगेगा विराम
सम्मेद शिखरजी पर मालिकाना हक की 87 साल की लड़ाई पर लगेगा विराम

दिलीप सिन्हा, गिरिडीह :जैन धर्म का सबसे बड़ा तीर्थ स्थल पारसनाथ पहाड़। इसे सम्मेद शिखरजी भी कहते हैं। 24 तीर्थंकरों में से 20 ने यहां निर्वाण प्राप्त किया। जैन धर्म के दोनों समुदाय श्वेताबर एवं दिगंबर सम्मेद शिखरजी पर मालिकाना हक को 87 साल से अदालती लड़ाई लड़ रहे हैं। मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। अब लड़ाई पर विराम लग सकता है। विवाद अदालत के बाहर हल हो सकता है। दोनों पक्ष की मुंबई में तीन बैठकें हो चुकी हैं। शिखरचंद पहाड़िया के तीर्थ क्षेत्र कमेटी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनते ही दोनों समुदाय के संबंधों में अरसे से जमी बर्फ पिघलने लगी है।

दिगंबर समाज का प्रतिनिधित्व तीर्थ क्षेत्र कमेटी एवं श्वेताबर समाज का जैन श्वेताबर सोसाइटी करती है। पहाड़िया 17 मई को तीर्थ क्षेत्र कमेटी के अध्यक्ष बने। पारसनाथ में निर्वाण पाने वाले 16 वें तीर्थंकर भगवान शातिनाथ का निर्वाण दिवस नौ जून को हुआ। पारसनाथ में हुए समारोह को पहली बार दोनों समुदाय ने साथ मनाया। 14 जून को 15 वें तीर्थंकर भगवान श्री धर्मनाथ का भी निर्वाण दिवस दोनों ने साथ मनाया। श्वेताबर सोसाइटी के अध्यक्ष केएस रामपुरिया एवं तीर्थ क्षेत्र कमेटी के अध्यक्ष शिखर चंद्र पहाड़िया के संबंध पुराने हैं। रामपुरिया कोलकाता एवं पहाड़िया मुंबई में रहते हैं। दोनों राजस्थान मूल के हैं। इनके संबंधों का फायदा जैन समाज को मिल रहा है।

यह है मामला: पारसनाथ पहाड़ की मिल्कियत को लेकर 1933 में प्रिवी काउंसिल लंदन में मामला गया। हुकुमचंद बनाम महाराज बहादुर केस में फैसला हुआ कि पारसनाथ की मिल्कियत पालगंज राजा को है। पूरे जैन समुदाय को पारसनाथ पहाड़ में अवस्थित मंदिरों, टोंक एवं चरण में अपनी पद्धति के अनुसार पूजा करने का अधिकार होगा। दिगंबर समुदाय को सिर्फ चार टोंक एवं जल मंदिर में पूजा के लिए श्वेताबर समुदाय से अनुमति लेनी होगी। इस फैसले से मामला शात हो गया। 1967 में श्वेताबर सोसाइटी की ओर से सेठ आनंदजी कल्याणजी ट्रस्ट अहमदाबाद के नौ मैनेजिंग ट्रस्टी ने गिरिडीह अवर न्यायाधीश के न्यायालय में याचिका दी। वाद दिगंबर समुदाय के छह सदस्यों के खिलाफ किया। कहा कि पारसनाथ पहाड़ शिखर पर दिगंबर समुदाय को किसी प्रकार के भवन व मूíत निर्माण का अधिकार नहीं है। दावे का आधार आनंदजी कल्याणजी ट्रस्ट का राज्य सरकार से 25 वर्ग किमी जमीन का एकरामनामा था। दिगंबर समुदाय ने मुकदमा कर श्वेताबर समुदाय के एकरारनामा की वैधता को चुनौती दी। सुनवाई के बाद दिगंबर समुदाय को भी पूजा का अधिकार दिया गया। मगर एकरारनामा को वैध करार दिया। तब दोनों ने उच्च न्यायालय में अपील की। 2004 में दिए फैसले में न्यायालय ने एकरारनामा को मान्य नहीं बताया। श्वेताबर के एकाधिकार के दावे को खारिज किया। कहा कि भूमि सुधार अधिनियम के तहत राज्य सरकार में 46 एकड़ जमीन समाहित है। सरकार मंदिरों, पूजा स्थलों एवं पूजा पद्धतियों की समुचित देखभाल करे। कमेटी बना दिगंबर, श्वेताबर समुदाय, आनंदजी कल्याणजी ट्रस्ट और जैन धर्म की अन्य शाखाओं को प्रतिनिधित्व दे। कलक्टर पदेन अध्यक्ष होंगे। प्रशासक की नियुक्ति हो जो कमेटी के परामर्श से काम करेगा। तब यह वाद सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। कोट भगवान का निर्वाण दिवस दोनों समुदाय मनाते हैं। शिखरचंद पहाड़िया कमेटी के नए अध्यक्ष बने हैं। उनसे पुराने संबंध है। पहाड़िया ने कहा कि निर्वाण दिवस हम साथ मनाएं। उनकी सार्थक पहल से बात बनी है। मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। भगवान की जब मर्जी होगी, इसका समाधान हो जाएगा।

केएस रामपुरिया, राष्ट्रीय अध्यक्ष जैन श्वेताबर सोसाइटी

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विवाद के समाधान का वक्त आ गया है। दोनों समाज के तीन-तीन लोगों की कमेटी बैठकर तीन बार बात कर चुकी है। नतीजा है कि हम साथ में भगवान की पूजा कर रहे हैं। विवाद का निपटारा आपसी समझौते से हो जाएगा। मिलकर निर्वाण दिवस मनाने का फैसला मैंने और रामपुरियाजी ने लिया। शिखरचंद पहाड़िया, राष्ट्रीय अध्यक्ष, तीर्थ क्षेत्र कमेटी

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