आवश्यकता से अधिक वस्तु अशांति व दुख का कारण

संवाद सहयोगी पारसनाथ (गिरिडीह) अगर आप सुखद आनंदमय यशपूर्ण व्यवस्थित व शांतिमय जीवन जी

By JagranEdited By: Publish:Sun, 01 Aug 2021 09:04 PM (IST) Updated:Sun, 01 Aug 2021 09:04 PM (IST)
आवश्यकता से अधिक वस्तु अशांति व दुख का कारण
आवश्यकता से अधिक वस्तु अशांति व दुख का कारण

संवाद सहयोगी, पारसनाथ (गिरिडीह) : अगर आप सुखद, आनंदमय, यशपूर्ण, व्यवस्थित व शांतिमय जीवन जीना चाहते हैं तो अपने पास केवल आवश्यक वस्तुएं ही रखें। आवश्यकता से अधिक होना ही अशांति व दुख का मूल कारण है। जितना भी आप त्याग करेंगे ठीक उसी अनुपात में आपको आनंद मिलना प्रारंभ हो जाएगा। संचय करने की प्रवृत्ति किसी भी नजरिए से उचित नहीं है। उक्त बातें आचार्य विशुद्ध सागर जी महाराज ने कही। वे रविवार को तेरापंथी कोठी के प्रवचन हाल में प्रवचन दे रहे थे। श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि कारण के बिना कोई कार्य नहीं होता है। आप जिस कारण उपस्थित करेंगे ठीक वैसे ही कार्य भी उपस्थित होंगे। जहां एक ओर त्याग से मुक्ति मिलती है वहीं दूसरी ओर हिसा से दुख मिलता है। भक्ति से स्वर्ग का सुख प्राप्त होता है पर तप आदि से शाश्वत सुख प्राप्त होता है।

भगवान को मानने वाले बहुत हैं पर भगवान की बात माननेवाले बहुत कम हैं। दवाई की जानकारी से ही रोगी ठीक नहीं हो जाता है अपितु दवाई का सेवन करना पड़ता है। ठीक उसी तरह केवल शास्त्र ज्ञान से ही परम सुख व श्रेष्ठ शांति नहीं मिलेगी। परम सुख की अनुभूति के लिए आत्मज्ञान बहुत आवश्यक है। आत्मज्ञान के बिना संपूर्ण अनुष्ठान व्यर्थ है। आत्मज्ञान ही सर्व श्रेष्ठ है। मालूम हो कि आचार्य विशुद्ध सागर श्री दिगंबर जैन तषपंथी कोठी में चातुर्मास आराधना कर रहे हैं तथा प्रतिदिन यहां प्रवचन का कार्यक्रम किया जाता है जिसमें आचार्य भक्तों को जीवन जीने की कला बताते हैं।

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