इस गांव में पसरा है सन्नाटा, नियमों का कर रहे पालन
बिरनी वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण से बचाव के कारण पूरे राज्य में 10वें दिन बुधवार क
बिरनी : वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण से बचाव के कारण पूरे राज्य में 10वें दिन बुधवार को आंशिक लॉकडाउन लागू रहा। इस महामारी से बचने को आंशिक लॉकडाउन की जरूरत भी है। सूर्य के उदय होते ही लोग अपने कामों व रोजगार की तलाश में घर से निकल जाते हैं और दो बजे दिन घर के अंदर प्रवेश कर जाते हैं। लॉकडाउन के बाद से लोग काम काज व रोजगार को भूलकर सरकार के आदेश का पालन कर रहे हैं। इसमें लोगों को कोई हड़बड़ी नहीं हो रही है। मजदूर कामकाज कर खाने के वक्त कभी साबुन से हाथ नहीं धोते थे। अभी वे घर में कैद हैं। वे बिना कामकाज किए खाना खाने से पहले व दिन को चार पांच बार साबुन से हाथ धो रहे हैं। सैनिटाइजर का भी इस्तेमाल कर रहे हैं। वे हमेशा घर हो या बाहर चेहरे पर मास्क लगाकर रखते हैं। घर में भी स्वजनों से ही शारीरिक दूरी बनाए रखते हैं। आंशिक लॉकडाउन ने ग्रामीणों की दिनचर्या ही बदल दी है। ग्रामीण अपने जीवन की रक्षा के लिए घरों के अंदर कैद हैं। इस अवधि में सारा कामकाज बंद रहने के कारण कामकर स्वजनों का जीवकोपार्जन करनेवाले मजदूरों की अब परेशानी बढ़ने लगी है। बुधवार को दैनिक जागरण की टीम गोंगरा का जायजा लेने लिए सुबह आठ बजे पहुंची। गांव की गलियां सुनसान दिखाई दी। वहां किसी तरह की चहल पहल नहीं थी। पूरे गांव में सन्नाटा पसरा हुआ था। सभी घरों के दरवाजे बंद थे। इस गांव में लगभग छह सौ की आबादी है जहां अधिकांश दलित समाज के लोग निवास करते हैं। मुख्य मार्ग से गांव की गली में घुसते ही घर के बाहर एक शिक्षक गंगाधर रविदास दिखाई पड़े। उनके घर तक पहुंचने से पहले वे भी अपने घर का दरवाजा बंदकर अंदर चले गए। आवाज देने के बाद वे छत से नीचे देखा। इसके बाद उनका परिचय लिया। तब उन्होंने छत से नीचे उतरकर दरवाजे से ही शारीरिक दूरियां बनाए हुए कहा कि क्या करें। वे प्रशासन के निर्देश का पालन करे रहे हैं। गांव के प्रवासी मजदूर बाहर से अपने घर पहुंच चुके हैं। उनके स्वजनों व आम ग्रामीणों के लिए प्रति यूनिट पांच किलो चावल अप्रैल से लेकर नवंबर तक निश्शुल्क दिया गया था। साथ ही चना भी दिया गया था। आंशिक लॉकडाउन में लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने केंद्र व राज्य सरकार से मजदूरों के हित में फिर से चावल देने की मांग की है। वहां से थोड़ी दूर आगे बढ़े तो सामाजिक कार्यकर्ता सह पूर्व पंसस दिलीप दास मिले। उनसे जब गांव के बारे में जानने के लिए कुछ पूछा गया तो कहा कि इस कोरोना महामारी से निपटने के लिए सरकार तत्पर है। कहा कि सरकार मजदूरों व गरीबों को प्रति यूनिट दस किलो चावल देती तो उन्हें राहत मिलती। थोड़ी दूरी आगे गए तो ग्रामीण महेंद्र दास मिले जिन्होंने बताया कि मजदूरों के लिए रोजगार के लिए यहां कोई व्यवस्था नहीं है। ऐसे में यहां के मजदूरों को अब चिता सताने लगी है। इस महामारी ने घर पर बैठे मजदूरों की भी दिनचर्या बदल दी है। भीमलाल रविदास ने कहा कि कोरोना संक्रमण से मजदूरों पर ही नहीं बल्कि आम आवाम पर काफी प्रभाव पड़ रहा है। घर से दो किलोमीटर दूर मां डबरसैनी पहाड़ है। लॉकडाउन से पहले वह पहाड़ घर दिखता नहीं था, लेकिन आज वही पहाड़ घर से साफ दिखाई देता है।