काम नहीं आएगी दूसरों की रोशनी, खुद बनो अपना दीया

गिरिडीह तीर्थकर और अवतार की दो अलग-अलग मान्यताएं हैं। जैन धर्म में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं

By JagranEdited By: Publish:Fri, 07 May 2021 09:01 PM (IST) Updated:Fri, 07 May 2021 09:01 PM (IST)
काम नहीं आएगी दूसरों की रोशनी, खुद बनो अपना दीया
काम नहीं आएगी दूसरों की रोशनी, खुद बनो अपना दीया

गिरिडीह : तीर्थकर और अवतार की दो अलग-अलग मान्यताएं हैं। जैन धर्म में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है, जिसके अनुसार पाप अधिक बढ़ जाने पर ईश्वर को अवतार लेना पड़े। जैन दर्शन की धारणा अवतार की नहीं तीर्थंकर की है। अवतार का अर्थ ऊपर से नीचे की ओर आना और तीर्थंकर का अर्थ नीचे से ऊपर की ओर जाना है। ये बातें आचार्य प्रसन्न सागर जी महाराज ने कही। महाराज शुक्रवार को निमियाघाट में जिनेंद्र महाअर्चना महोत्सव पर श्रद्धालुओं व भक्तों को संबोधित कर रहे थे। कहा कि

राम, कृष्ण अवतारी पुरुष हैं, जबकि ऋषभदेव, महावीर तीर्थंकर पुरुष हैं। हम मान्यताओं पर नहीं जाएं कथा के तथ्य को समझें। श्री कृष्ण कहते हैं अब मैं बहुत थक चुका हूं अब आगे में अवतार नहीं लूंगा। अब मनुष्य उद्धार खुद को ही करना होगा अपना दीया खुद बनना होगा। दूसरों की रोशनी काम नहीं आएगी। खुद में रोशनी पैदा करनी होगी।

आचार्य ने कहा कि रावण आया तो उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाने राम आ गए। कंस आया तो उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाने कृष्ण आ गए। अंगुलीमल और अर्जुन माली आए तो उनका उद्धार करने बुद्ध आ गए,

लेकिन अब जब दुनिया में हजारों-लाखों अत्याचारी हैं और उनके अत्याचारों से पृथ्वी का दिल दहल उठा है तो इससे मुक्ति दिलाने के लिए अब न तो राम, कृष्ण आएंगे और न ही बुद्ध,महावीर आएंगे।

अब तो तुम्हें ही आगे आना होगा और सिर पर मंडराते संकट, विपदा, हिसा, भ्रष्टाचार, आतंक की काली घटाओं को हटाना होगा। आज हमारा देश कोरोना संक्रमण से जूझ रहा है। इससे न प्रधानमंत्री बचाएंगे न प्रांतीय मुख्यमंत्री और न ही डॉक्टर बचाएंगे।

कोई दैवीय शक्ति भी रक्षा नहीं करेगी। अब तो तुम्हें ही आना होगा। स्वयं बचो एवं अपने परिवार को बचाओ। इस कोरोना में स्वाद खुशबू ही नहीं जा रही है, बल्कि आदमी खुद पूरा जा रहा है। अब तुम्हें ही अपना राम कृष्ण बन के आगे आना होगा। ऋषभदेव महावीर बन के दिखाना होगा स्वयं को अपना डॉक्टर बनना होगा।

chat bot
आपका साथी