सांप काटा तो चार लाख, मधुमक्खी डंसा तो फूटी कौड़ी भी नहीं
गिरिडीह मधुमक्खियों का शहद जितना मीठा होता है डंक उतना ही जहरीला। सांप भी जहरीला
गिरिडीह : मधुमक्खियों का शहद जितना मीठा होता है, डंक उतना ही जहरीला। सांप भी जहरीला होता है। सांप काटने से और मधुमक्खियों के डंक मारने से भी इंसानों की जान चली जाती है। सांप काटने से मौत के बाद पीड़ित परिवार को सरकार मुआवजे का मरहम लगाती है, लेकिन मधुमक्खियों के हमले से मौत के बाद सरकार पीड़ित परिवार के जख्मों पर मरहम नहीं लगाती है। इस कारण, मधुमक्खियों के हमले से मौत के बाद उसके जहर को मृतक के स्वजन भी लंबे समय तक महसूस करते हैं। सांप काटने से मौत को सरकार स्थानीय आपदा मानती है। इस कारण, मृतक के स्वजनों को चार लाख रुपये मुआवजा देती है। मधुमक्खियों के डंक से मौत होने पर सरकार मृतक के स्वजनों को मुआवजे के रूप में फूटी कौड़ी भी नहीं देती है। कारण, सरकार ऐसी मौत को स्थानीय आपदा नहीं मानती है। मौत पर मुआवजा देने की इस नीति के कारण गिरिडीह जिले में मधुमक्खियों के हमले से मृत दर्जनभर लोगों का परिवार आज भी संकट झेल रहा है। सरकार को ऐसे परिवारों की भी सुध लेनी चाहिए।
गिरिडीह जिले में हाथियों के कुचलने से, सांप काटने से और मधुमक्खियों के काटने से मौत की घटना बराबर घटती रहती है। देखा गया है कि ऐसे अधिकांश मामलों में मृतक परिवार बेहद गरीब होते हैं। मौत से उनका परिवार टूट जाता है। राज्य सरकार ने आपदा कोष से मौत को लेकर मुआवजे की राशि तय की है। मौत चाहे सांप काटने से हो या फिर मधुमक्खियों के काटने से मौत तो मौत ही होती है। लेकिन सरकार मुआवजा देने में समान नजर से नहीं देखती है। हाथी के कुचलने से एवं सांप के काटने से मौत होने पर सरकार पीड़ित परिवार को चार लाख रुपये मुआवजा देती है लेकिन मधुमक्खियों के काटने से मौत होने पर पीड़ित परिवार को फूटी कौड़ी भी सरकार नहीं देती है।
------------
मुआवजे का क्या है प्रावधान :
सांप काटने से मौत हो या फिर वज्रपात से या फिर हाथी के कुचलने से सभी में सरकार चार-चार लाख रुपये मुआवजा देती है। इसके लिए जरूरी प्रावधानों का पालन करना होता है। सबसे पहले मृतक के शव का पोस्टमार्टम कराना जरूरी होता है। पोस्टमार्टम होने पर ही मृतक के आश्रितों को मुआवजा दिया जाता है। पोस्टमार्टम नहीं होने या विशेष परिस्थिति में यदि ऐसी आपदा में शव नहीं मिलने पर मुआवजा मिलना बहुत मुश्किल होता है। ऐसी परिस्थिति में उपायुक्त को विशेष अधिकार होता है। लाश नहीं मिलने पर मृतक की तस्वीर के साथ अखबारों में विज्ञापन देना पड़ता है। पीड़ित के स्वजन को प्राथमिकी दर्ज करानी पड़ती है। एक महीने के इंतजार के बाद कार्यपालक दंडाधिकारी की जांच रिपोर्ट के आधार पर उपायुक्त निर्णय ले सकते हैं। मुआवजा देते वक्त यह बांड भराया जाता है कि संबंधित व्यक्ति यदि जीवित मिलेगा तो पूरी राशि वापस करनी होगी।
-----------------------
केस स्टडी 1 :
धनवार के सामापारण गांव निवासी महेंद्र प्रसाद अपने वृद्ध पिता को लेकर डॉक्टर के यहां जा रहे थे। रास्ते में मधुमक्खियों ने दोनों पर हमला कर दिया। महेंद्र प्रसाद तालाब में कूदकर अपनी जान बचाने में सफल रहे जबकि उनके पिता बुरी तरह से जख्मी हो गए। बाद में इलाज के दौरान उन्होंने दम तोड़ दिया।
-----------------------
केस स्टडी 2 :
बिरनी की सरस्वतिया देवी नदी में कपड़ा धो रही थी। इसी क्रम में मधुमक्खियों ने उस पर हमला कर दिया। सरस्वतिया देवी को बचाने गए आंगनबाड़ी की सेविका सुनीता दास एवं झलिया देवी मधुमक्खियों के हमले में बुरी तरह से जख्मी हो गई। इधर सरस्वतिया देवी ने इलाज के दौरान सदर अस्पताल गिरिडीह में दम तोड़ दिया।
-------------
वर्जन : हाथी के कुचलने से, सांप के काटने से, वज्रपात से, डोभा व नदी में डूबने से मौत होने पर चार-चार लाख रुपये मुआवजे का प्रावधान है। पोस्टमार्टम कराने पर ही मुआवजे का प्रावधान है।
मधुमक्खियों के काटने से मुआवजे का कोई प्रावधान नहीं है। सांप काटने से मौत को सरकार ने स्थानीय आपदा के रूप में सूचीबद्ध किया है।
राहुल कुमार सिन्हा, उपायुक्त