सरिया के गढ़ में आम की महक
दिलीप सिन्हा गिरिडीह देश में गिरिडीह का नाम लोहे की सरिया के लिए जाना जाता है। मगर अब
दिलीप सिन्हा, गिरिडीह : देश में गिरिडीह का नाम लोहे की सरिया के लिए जाना जाता है। मगर अब यहां की फिजाओं में आम भी महकने लगा है। राजधनवार प्रखंड की आदर्श पंचायत गादी के अरगाली गांव में हर ओर आम के दरख्त ही दिखेंगे। आपको लगेगा कि राजधनवार नहीं बल्कि बिहार के भागलपुर या यूपी के मलिहाबाद में हैं। मालदा, हिम सागर, दशहरी, गुलाब खास, मुंबइया प्रजातियों के आम के पेड़ यहां की तस्वीर बदल रहे हैं। आम की मिठास ने लोगों के जीवन को भी मिठास से भर दी है। गांव में हर मकान पक्का हो है। आम के बाग प्रत्येक किसान को हर साल दो से तीन लाख रुपये की आमदनी कर रहे हैं। इस साल अब तक एक करोड़ से अधिक का आम बेचा जा चुका है।
गांव में करीब 50 एकड़ जमीन पर आम के बाग लगे हैं। इसका दायरा साल दर साल बढ़ रहा है। बिहार के भागलपुर से चार सौ से पांच सौ आम के पौधे फिर लाकर किसान लगा रहे हैं। तीन साल में पौधे पेड़ बन जाते हैं। फलने लगते हैं। फिर यहां से आम गिरिडीह एवं कोडरमा के अलावा बिहार के नवादा, जमुई तक जाता है।
पारंपरिक खेती छोड़ी तो आम बना सहारा : पहले इलाके में किसान पारंपरिक खेती करते थे। जो बारिश पर निर्भर थी। साल में सिर्फ एक फसल धान होती थी। बारिश न होने पर जब पारंपरिक खेती से नुकसान होने लगा तो किसान युगल नारायण देव, संजीव नारायण देव, उमाशंकर नारायण देव, अजय नारायण देव एवं महेश्वरी नारायण देव हाजीपुर से आम के पौधे लगाए। ये पौधे जब पेड़ बने तो किसानों को आय होने लगी। तब क्या था, अन्य किसान भी प्रेरित हुए। कोनार एवं भागलपुर से भी आम के पौधे मंगाकर रोपे गए। आज आलम ये है कि हर घर के बाहर भी आम के पेड़ लगे हैं। गांव वाले कहते हैं कि आम के पेड़ हमें आमदनी के साथ आक्सीजन भी देते हैं, हमें खुशी है कि हम पर्यावरण संरक्षण में भी अहम भूमिका अदा कर रहे हैं।
गांव की अर्थव्यवस्था हुई मजबूत : गांव के युवक अमित कुमार देव ने बताया कि आम ने गांव की अर्थव्यवस्था बदल दी। यहां के 50 परिवार आम से जुड़े हैं। हर परिवार को औसतन दो से तीन लाख रुपये आमदनी प्रत्येक वर्ष होती है। आम का मंजर आते ही बिहार से खरीददार आते हैं। उसी समय वे पेड़ का सौदा कर लेते हैं। प्रत्येक पेड़ औसतन दो से पांच हजार रुपये तक देता है। आम तोड़ने की जिम्मेवारी व्यापारी की होती है। उनके लोग गांव में झोपड़ी बनाकर आम के सीजन में रहते हैं।