48 साल में एक बढि़या अस्पताल भी नहीं, निशाने पर राजनीतिक पार्टियां

दिलीप सिन्हा गिरिडीह 1972 में हजारीबाग से कटकर जिला बने गिरिडीह की आबादी करीब 30

By JagranEdited By: Publish:Tue, 18 May 2021 07:04 PM (IST) Updated:Tue, 18 May 2021 07:04 PM (IST)
48 साल में एक बढि़या अस्पताल भी नहीं, निशाने पर राजनीतिक पार्टियां
48 साल में एक बढि़या अस्पताल भी नहीं, निशाने पर राजनीतिक पार्टियां

दिलीप सिन्हा, गिरिडीह : 1972 में हजारीबाग से कटकर जिला बने गिरिडीह की आबादी करीब 30 लाख है। इतने बड़े जिले में एक बेहतर अस्पताल नहीं है। न सरकारी और न ही निजी। पूरी चिकित्सा व्यवस्था उस सदर अस्पताल के भरोसे है, जिसके पास संसाधन ही नहीं हैं। सदर अस्पताल की स्थिति रेफरल अस्पताल की है। न आइसीयू है, न आकस्मिक कक्ष। सरकार ने और कुछ उद्योगपतियों ने वेंटिलेटर उपलब्ध कराया, लेकिन वह भी शो पीस बनकर रह गया है। वेंटिलेटर ऑपरेट करने वाला कोई नहीं है। सदर अस्पताल से लेकर गिरिडीह जिले के तमाम अस्पताल रेफरल अस्पताल की भूमिका में हैं। प्राथमिक उपचार के बाद गंभीर मरीजों को रांची, बोकारो, धनबाद, दुर्गापुर रेफर कर दिया जाता है।

कोरोना संक्रमण से चिकित्सा व्यवस्था की पोल खुल गई है। चिकित्सा व्यवस्था की इस दुर्दशा को लेकर आम लोग सभी राजनीतिज्ञों को निशाने पर ले रहे हैं। सोशल मीडिया में गिरिडीह लोकसभा एवं विधानसभा क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने वालों को निशाने पर लिया जा रहा है। जिले का गठन 1972 में हुआ था। तब से अब तक कौन-कौन प्रतिनिधित्व किया है, इसका ब्यौरा सोशल मीडिया पर देते हुए इस दुर्दशा के लिए सभी राजनीतिक पार्टियों को समान रूप से जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।

गिरिडीह में चिकित्सा व्यवस्था का बड़ा नेटवर्क खड़ा नहीं होने की जिम्मेवारी से कोई भी राजनीतिक दल बच नहीं सकता। गिरिडीह की जनता से भगवा एवं लाल झंडाधारियों के साथ-साथ तीर-धनुष एवं कांग्रेसियों को भी मौका दिया है। इसके बावजूद चिकित्सा सुविधा यहां बेहतर नहीं हो सकी।

इस कोरोना संक्रमण के काल में भी सत्ताधारी पार्टी झामुमो-कांग्रेस एवं विपक्षी पार्टियां भाजपा-आजसू एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप कर रहे हैं, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि किसी ने भी चिकित्सा व्यवस्था को अपना एजेंडा नहीं बनाया।

------------------------

तामझाम से शुरू किया गया था आइसीयू में लटका है ताला :

स्थानीय झामुमो विधायक सुदिव्य कुमार सोनू एवं उपायुक्त राहुल कुमार सिन्हा ने कुछ माह पूर्व पूरे तामझाम के साथ आइसीयू का उद्घाटन किया था। उद्घाटन के बाद से ही आइसीयू में ताला लटका हुआ है। विधायक की बात छोड़िए, स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता भी जब-जब गिरिडीह आते हैं, आइसीयू को चालू कराने का आश्वासन देते हैं लेकिन, ताला ऐसा लगा है कि कभी खुलता ही नहीं है।

------------------------

जिला बने 48 साल हो गए लेकिन, गिरिडीह में एक ढंग का अस्पताल नहीं बन सका। इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या हो सकता है। इसके लिए सभी राजनीतिक पार्टियां समान रूप से जिम्मेवार है। एक-दूसरे पर दोषारोपण करने के बजाय सभी राजनीतिक पार्टियों को मिलकर इसके लिए अभियान चलाना चाहिए।

सोमनाथ केसरी, सामाजिक कार्यकर्ता गिरिडीह

------------------------

48 साल में भी गिरिडीह में एक बढि़या अस्पताल नहीं बन पाया। यहां बीमार मरीजों को सीधे धनबाद, रांची एवं दुर्गापुर रेफर कर दिया जाता है। पिछले कोरोना काल में व्यवसायियों ने अपने प्रयास से आइसीयू बनाया। आज तक उस आइसीयू का संचालन नहीं हो पाया। इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या हो सकता है। सभी राजनीतिक पार्टियों को इसके लिए मिलकर अभियान चलाना चाहिए।

राकेश मोदी, सचिव रेड क्रॉस सोसाइटी

------------------------

गिरिडीह जिले में एक भी ऐसा अस्पताल नहीं है, जहां गंभीर होने पर इलाज किया जा सके। ऐसी स्थिति में मरीजों को रांची, दुर्गापुर ले जाना पड़ता है। कोरोना काल में अस्पताल को लेकर सभी का ध्यान गया है। सभी राजनीतिक पार्टियों एवं सामाजिक संगठनों को इसके लिए साझा प्रयास करना होगा, तभी यह संभव हो सकेगा।

राजेश जालान, समाजसेवी गिरिडीह

------------------------

1972 से अब तक गिरिडीह विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाली राजनीतिक पार्टियां : -भाकपा : 1972, 1977, 1985

-कांग्रेस : 1980, 1990

भाजपा : 1995, 2000, 2009, 2014

झामुमो : 2005, 2019 ( वर्तमान)

------------------------

लोकसभा में प्रतिनिधित्व करने वाली राजनीतिक पार्टियां :

-जनता पार्टी : 1977

- कांग्रेस : 1980, 1984

-झामुमो : 1991, 2004

-भाजपा : 1989, 1996, 1999, 2009, 2014,

-आजसू : 2019 (वर्तमान)

chat bot
आपका साथी