Corona Era में गिरिडीह के प्रवासी मजदूरों के जीवन में हो रहा बड़ा बदलाव, खेती में तलाश रहे भविष्य

बगोदर के मनीष साव वैजनाथ साव एवं भीम साव ने बताया कि उन्होंने अपने दम पर खेती शुरू की। यह काफी सफल रहा। सरकारी मदद के लिए जनप्रतिनिधियों से लेकर प्रशासनिक अधिकारियों के पास कई बार गुहार लगाई लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।

By MritunjayEdited By: Publish:Sat, 15 May 2021 04:50 PM (IST) Updated:Sat, 15 May 2021 04:50 PM (IST)
Corona Era में गिरिडीह के प्रवासी मजदूरों के जीवन में हो रहा बड़ा बदलाव, खेती में तलाश रहे भविष्य
खेत लगी फसल दिखाता प्रवासी मजदूर ( फोटो जागरण)।

गिरिडीह [ दिलीप सिन्हा ]। बगोदर की पहचान प्रवासी मजदूरों से है। बगोदर के युवक रोजगार के लिए न सिर्फ पूरे देश में बल्कि विदेशों तक जाते हैं। विदेशों में प्रवासी मजदूरों एवं उनके शव फंसे होने का मामला बराबर चर्चा में रहता है। राज्य से लेकर केंद्र सरकार तक ऐसे मामलों को पहुंचाया जाता है। लॉकडाउन ने बगोदर के प्रवासी मजदूरों के जीवन में बड़ा परिवर्तन ला दिया है। लॉकडाउन में घर लौटे प्रवासी मजदूरों को अब खेती से मोह होने लगा है। दर्जनों ऐसे मजदूर हैं जो घर लौटने के बाद खेती को ही अपने जीवन का सहारा बना चुके हैं। ऐसे मजदूरों ने यह साबित कर दिया है कि मेहनत के बल पर अपने घर पर ही खेती को जीवन यापन का सहारा बनाया जा सकता है। खेती से उन्नति कर रहे डुमरी के अक्षय महतो एवं बगोदर के बेको के मनीष साव से ऐसे कुछ मजदूरों ने खेती का प्रशिक्षण लेकर खुद को फिर से स्थापित किया है। वह भी बिना किसी सरकारी मदद के। इन मजदूरों का कहना है कि अब वे रोजगार के लिए फिर कभी परदेस नहीं जाएंगे। बस जरूरत है, सरकार उनके खेतों तक पानी पहुंचा दे।

केस स्टडी 1

पश्चिमी बेको के रहने वाले मनीष साव गांव में ही छोटा सा किराना का दुकान चलाता था। पिछले साल हुए लॉकडाउन से उसकी दुकान बंद हो गई। रोजी-रोटी का संकट पैदा हो गया। घर के पास की जमीन में उसने टमाटर की खेती शुरू की। अच्छी आमदनी हुई। मनीष ने इसके बाद डुमरी के अक्षय महतो से टिप्स लेकर कारीपहरीटांड़ के पास बंजर भूमि में सब्जी की जैविक खेती शुरू की। मनीष के मेहनत के बल पर वहां मिर्ची, टमाटर, लौकी, करेला, फ्रेंचबीन के अलावा अन्य फसलों से लहलहा रही है। सब्जी की खेती से आज अच्छी आमदनी हो रही है।

केस स्टडी 2

पश्चिमी बेको निवासी वैजनाथ साव एवं भीम साव मुंबई में प्रवासी मजदूर थे। पिछले लॉकडाउन में दोनों की नौकरी छूट गई। दोनों भाई मुश्किल से घर लौटे थे। रोजी-रोटी की समस्या आ गई। दोनों भाइयों ने कारीपहरीटांड़ स्थित खेत पर जाकर कई दिनों तक मनीष साव से प्रशिक्षण लिया। इसके बाद बगल के जमीन में दोनों भाइयों ने मिलकर सब्जी की खेती शुरू की। देखते ही देखते इनकी भी बंजर जमीन पर फसल लहलहा गए। दोनों भाई मिलकर खेती करने के साथ-साथ क्षेत्र में सब्जी बेचने लगे। अच्छी आमदनी हो रही है। दोनों भाइयों का कहना है कि अब वे कभी भी मजदूरी करने परदेस नहीं जाएंगे।

सरकारी करे मदद तो किसी को नहीं जाना होगा परदेस

बगोदर के मनीष साव, वैजनाथ साव एवं भीम साव ने बताया कि उन्होंने अपने दम पर खेती शुरू की। यह काफी सफल रहा। सरकारी मदद के लिए जनप्रतिनिधियों से लेकर प्रशासनिक अधिकारियों के पास कई बार गुहार लगाई लेकिन, कोई फायदा नहीं हुआ। तीनों ने कहा कि सरकार यदि मदद करे तो खेती से यहां के लोगों को पर्याप्त रोजगार मिल सकता है। किसी को भी रोजगार के लिए परदेस जाने की जरूरत नहीं होगी।

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