चंपा ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ाया मान

गावां (गिरिडीह) कहते हैं कि जब सकारात्मक सोंच और प्रबल इच्छा शक्ति हो तो कुछ भी पाना

By JagranEdited By: Publish:Thu, 15 Apr 2021 07:34 PM (IST) Updated:Thu, 15 Apr 2021 07:34 PM (IST)
चंपा ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ाया मान
चंपा ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ाया मान

गावां (गिरिडीह): कहते हैं कि जब सकारात्मक सोंच और प्रबल इच्छा शक्ति हो तो कुछ भी पाना असंभव नहीं है। ऐसी ही कहावत को चरितार्थ कर दिखाया है गावां प्रखंड के जमडार की रहनेवाली 16 वर्षीय चंपा कुमारी ने। पिछले पांच सालों में उसने ऐसे ऐसे कारनामे किए हैं कि गांव और जिला तो क्या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसने अपनी पहचान बना ली। आज उसे पहचान के लिए किसी का मोहताज होने की जरूरत नहीं है।

कभी ढिबरा खदान में अपनी माता बसंती देवी व पिता महेंद्र ठाकुर के साथ मजदूरी करनेवाली चंपा को कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन फाउंडेशन के प्रयास से बाल मजदूरी और बाल विवाह के खिलाफ बेहतर कार्य करने के लिए एक नहीं कई पुरस्कार मिले। इनमें से उत्कृष्ट कार्य को लेकर छह अगस्त 2018 में ब्रिटेन के प्रतिष्ठित डायना अवार्ड से झारखंड की राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने सम्मानित किया। इससे इसकी पहचान विश्व के पटल पर भी हो गई। इसके बाद राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास ने भी 28 अगस्त 2019 को चेंज मेकर अवार्ड से उसे सम्मानित किया।

कैसे बदली चंपा की जिदगी : दरअसल वर्ष 2016 की बात है जब चंपा 11 साल की थी। तब वह अपने माता-पिता के ढिबरा खदान में काम करने के दौरान हाथ बंटाती थी। एक दिन अचानक वह खदान में काम कर रही थी कि गांव में रैली निकालकर कुछ बच्चों को नारेबाजी करते हुए सुना। यह सुन उससे रहा नहीं गया और वो खदान से निकलकर रैली के पास आ गई। उसने रैली का नेतृत्व कर रहे संस्था के कार्यकर्ता पुरुषोत्तम पांडेय से इस संबंध में पूछा तो जवाब मिला कि बाल मजदूरी करनेवाले बच्चे बच्चियों को बाल मजदूरी से मुक्त करवाकर उसे विद्यालय से जोड़ा जाता है। इस पर उसने खुद को भी बाल मजदूरी से मुक्त करवाने का आग्रह किया। कार्यकर्ता पुरुषोत्तम पांडेय अपने साथ चंपा को उसके घर ले गए व उनके माता-पिता से बात कर उससे मजदूरी नहीं करवा स्कूल में दाखिला करवाने को कहा। पहले तो माता-पिता आनाकानी करने लगे। बाद में समझाने के बाद वे तैयार हो गए और चंपा का नामांकन वर्ग छह में जमडार विद्यालय में करा दिया गया। इसके बाद चंपा खुद भी संस्था के लोगों के संपर्क में रहकर बाल मजदूरी व बाल विवाह के खिलाफ आवाज बुलंद करने लगी। 05 फरवरी 2018 को वह अपने बाल मित्र ग्राम जमडार के बाल पंचायत की मुखिया चुनी गई। इसके बाद 31 मार्च 2018 को प्रदेश स्तरीय बाल पंचायत की मुखिया चुनी गई। अंत में राष्ट्रीय बाल महापंचायत की उपमुखिया बनी। अब तो चंपा की जिदगी ही बदल गई थी। कहीं भी कोई बाल मजदूरी करता नजर आता तो चंपा तुरंत संस्था के लोगों को बुलवाकर व उसकी मजदूरी बंद करवाने में लग जाती। शुरुआत में तो लोग उसका विरोध करते थे परंतु धीरे-धीरे बदलाव आने लगा।

कइयों के बाल विवाह रुकवाई व बाल मजदूरी बंद करवाई : उसने इस दौरान अपने गांव जमडार में कई बच्चों को बाल मजदूरी से मुक्त करवाया व तीन बाल विवाह को आगे आकर रोकने का महत्वपूर्ण कार्य कर दिखाया। जब चंपा का चयन ब्रिटेन के प्रतिष्ठित डायना अवार्ड के लिए किया गया तो जो लोग उसका विरोध करते थे वो भी उसकी तारीफ करते थकते नहीं थे। जमडार की मुखिया समेत पूरे प्रखंड के लोग अपने को इससे गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं व चंपा को उसके साहसिक कार्य के लिए बधाई दे रहे थे।

चंपा कहती हैं कि डायना अवार्ड मिलने के बाद वे बहुत खुश हैं और लगातार आगे अपना अभियान जारी रखी हुई है। बताती हैं कि जब वे रैली की आवाज सुनकर खदान से भागकर बाहर आई थी तो पापा से उन्हें डांट भी पड़ी थी पर आज उसके माता-पिता को गर्व महसूस हो रहा है। उसका कहना है कि वे अपने गांव से बाल विवाह व बाल मजदूरी दूर करने का लगातार प्रयास करती रहती हैं।

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