पारसनाथ की खूबसूरती में चार चांद लगाता बरगद का जंगल

गिरिडीह पारसनाथ पहाड़ में तरह-तरह के पेड़ हैं लेकिन बरगद पेड़ की बात ही कुछ औ

By JagranEdited By: Publish:Wed, 09 Jun 2021 05:27 PM (IST) Updated:Wed, 09 Jun 2021 05:27 PM (IST)
पारसनाथ की खूबसूरती में चार चांद लगाता बरगद का जंगल
पारसनाथ की खूबसूरती में चार चांद लगाता बरगद का जंगल

गिरिडीह : पारसनाथ पहाड़ में तरह-तरह के पेड़ हैं, लेकिन बरगद पेड़ की बात ही कुछ और है, इस पहाड़ की खूबसूरती में बरगद का जंगल चार चांद लगाता है। प्रकृति ने नेमत के तौर पर इन पेड़ों को दिया है। बरगद का यह जंगल न सिर्फ पारसनाथ पहाड़ की खूबसूरती में चार चांद लगाता है बल्कि यहां प्रचुर मात्रा में प्राकृतिक ऑक्सीजन देता है। यही कारण है कि पारसनाथ का यह पूरा इलाका प्राकृतिक ऑक्सीजन से लबालब है। पहाड़ की तराई पर रहने वालों को कृत्रिम ऑक्सीजन की शायद ही कभी जरूरत पड़ती है। तलहटी पर मधुबन से लेकर पहाड़ की चोटी पर स्थित पा‌र्श्वनाथ मंदिर तक का आप सफर करेंगे तो आपको जगह-जगह बरगद का विशाल पेड़ नजर आएगा। बरगद का पेड़ हमें ऑक्सीजन तो देता ही है, साथ ही यहां रहनेवाले सैकड़ों बंदरों को भोजन भी देता है। बरगद का फल इन बंदरों का विशेष आहार है। लॉकडाउन के कारण पिछले एक साल से अधिक समय से यहां तीर्थ यात्रियों का आना-जाना नहीं है। ऐसे में इन बंदरों को भोजन-पानी मिलना मुश्किल हो गया है। ऐसे समय में बरगद का फल ही इनके जीने का सहारा बना हुआ है। बरगद के पेड़ को हिदू धर्मावलंबियों के साथ-साथ आदिवासी भी पूजते हैं। इस कारण पारसनाथ पहाड़ पर बरगद के पुराने एवं बड़े-बड़े पेड़ सुरक्षित हैं। इस जंगल के संरक्षण में आदिवासियों की बड़ी भूमिका है। कारण, आदिवासी भी यहां अपने सबसे बड़े देवता मरांग बुरु की पूजा करते हैं। इसके बावजूद अब इसके संरक्षण की आवश्यकता है। वर्षो पुराने इन वृक्षों के संरक्षण व नए पौधे लगाने के प्रति जागरूक होने की जरूरत है। वन विभाग के साथ-साथ समाज को भी बरगद का पेड़ लगाने के लिए आगे आना चाहिए। यदि हम ऐसा कर सकें तो हमें कृत्रिम ऑक्सीजन प्लांट लगाने की जरूरत शायद नहीं पड़ेगी।

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पीपल एवं बरगद का पेड़ सबसे अधिक ऑक्सीजन उत्सर्जित करता है। यह ऐसा पेड़ है जो रात में भी हमें ऑक्सीजन देता है। अधिक ऑक्सीजन उत्सर्जित करने वाले ऐसे पेड़ों का संरक्षण समय की मांग है।

प्रो. सुबलचंद्र सिंह, व्याख्याता वनस्पति विभाग

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आदिवासी समाज में बरगद पेड़ का खास स्थान है। बरगद पेड़ को पुराने समय में आदिवासी समाज अदालत की तरह इस्तेमाल करता था। बरगद पेड़ की छांव के नीचे गांव के मामलों को पंचायत लगाकर सुलझाया जाता था। बारात भी बरगद पेड़ के छांव के नीचे ठहराई जाती थी।

सिकंदर हेंब्रम, निवर्तमान प्रमुख पीरटांड़ सह सचिव मरांग बुरू सामंता सुसार बेसी

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आदिवासी समाज प्रकृति पूजक होता है। हम मानते हैं कि पारसनाथ पहाड़ पर मरांग बुरू रहते हैं।

बरगद के पेड़ पर देवता वास करते हैं। इस कारण, इसे तोड़ने या काटने से देवता का अपमान होता है। यही कारण है कि आदिवासी समाज बरगद पेड़ का संरक्षण करता है।

अर्जुन हेंब्रम, संयुक्त सचिव मरांग बुरू सामंता सुसार बेसी -----------------

वट सावित्री व्रत एक ऐसा सनातनी त्योहार है जो पति-पत्नी के अन्योन्याश्रय सम्बंध का परिचायक है। इसी व्रत से सावित्री जी ने अपने पति सत्यवान के प्राण की रक्षा की थी। यह व्रत वटवृक्ष के पर्यावरण के प्रति अक्षुण्ण महत्व को भी प्रतिपादित करता है।

पंडित डॉ. विनोद कुमार उपाध्याय, ज्योतिषाचार्य, व्याकरणाचार्य।

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