गुरु-शिष्य के रिश्ते की थाती है संतालों में बेलबोरोन अनुष्ठान

सदर प्रखंड दुमका के भुरकुंडा पंचायत में लेटो गांव है जहां रविवार को यहां दिसोम मारंग बुरु युग जाहेर आखड़ा और ग्रामीणों ने पारंपरिक तरीके से बेलबोरोन पूजा अनुष्ठान कर गुरु शिष्य परंपरा की थाती को आगे बढ़ाने की पहले की है।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 10 Oct 2021 09:02 PM (IST) Updated:Sun, 10 Oct 2021 09:02 PM (IST)
गुरु-शिष्य के रिश्ते की थाती है संतालों में बेलबोरोन अनुष्ठान
गुरु-शिष्य के रिश्ते की थाती है संतालों में बेलबोरोन अनुष्ठान

सदर प्रखंड दुमका के भुरकुंडा पंचायत में लेटो गांव है, जहां रविवार को यहां दिसोम मारंग बुरु युग जाहेर आखड़ा और ग्रामीणों ने पारंपरिक तरीके से बेलबोरोन पूजा-अनुष्ठान कर गुरु-शिष्य परंपरा की थाती को आगे बढ़ाने की पहल की। परंपरा के मुताबिक बेलबोरोन पूजा के एक माह पहले से गुरु-शिष्य गांव में अखाड़ा बांधते हैं। इसी अखाड़ा में गुरु शिष्यों को मंत्र की सिद्धि, परंपरागत चिकित्सा विधि का ज्ञान दिया जाता है। इस दौरान पहाड़ों पर जाकर जड़ी-बूटी की खोज और पहचान किया जाता है। शिष्यों को यह जानकारी दी जाती है कि कौन-सी बीमारी में कौन जड़ी-बूटी काम करता है।

बेलबोरोन पूजा में बलि देने की परंपरा : बेलबोरोन पूजा में मुर्गों की बलि देने की परंपरा है। बेलबोरोन पूजा के बाद ग्रामीण गांव में दसांय नृत्य करते हुए गीत गाते हैं। लगातार चार दिनों तक गुरु-शिष्य गुरु बोंगाओ(गुरु देवता) को लेकर गांव-गांव घुमाते हैं। दसांय नृत्य और गीत के माध्यम ठाकुर(इष्ट देव) और ठकरन(ईष्ट देवी) का गुणगान करते हैं। भक्तों के घर में सुख,शांति, धन की कामना करते हैं। इसके उपलक्ष्य में ग्रामीण व भक्त इन्हें दान स्वरूप मकई, बाजार, रुपये-पैसे देते हैं। महिलाओं का पोशाक पहन कर पुरुष करते हैं दसांय नृत्य : दसांय नृत्य के दौरान महिलाओं का पोशाक कई पुरुष पहनते हैं या महिला जैसा ही व्यवहार करते हैं। इनके पीछे मान्यता है कि ये लोग ठकरन(ईष्ट देवी) का आभूषण और वस्त्र प्रतीकात्मक रूप में धारण कर रहे हैं। बेलबोरोन पूजा के अंतिम दिन अपने गांव में दसांय नृत्य व गीत का आयोजन होता है। दान में मिलने वाले अनाज कि खिचड़ी बना कर खाते हैं। संतालों के मांझी बाबा सुनील टुडू कहते हैं कि बोलबोरेान पाप नहीं करने, धार्मिक बने रहने, समाज को रोगमुक्त बनाए रखने, परंपरागत जड़ी-बूटी चिकित्सा विधि को जीवित रखने, परंपरागत नाच-गाने को बचाए रखने, संस्कृति, धर्म और प्रकृति को बचाए रखने और खुश रहने का संदेश देता है।

मौके में मंझी बाबा सुनील टुडु, गुरु बाबा काका मराण्डी, झोमल मराण्डी, सोहराय टुडु, जोहन टुडु, मिसिल मराण्डी, जून मरांडी, गणेश मरांडी, अजित टुडु, मानवेल मुर्मू, बाबुधन मरांडी, रामजीत टुडु, मिस्त्री मरांडी, एलबेनुस किस्कु, सुनिराम टुडु, नोरेन मरांडी, सरोज टुडु, फिरोज टुडु, दरोगा मरांडी, सुलेमान मुर्मू, रुबिलाल मुर्मू, रोबिलाल टुडु, लुखिराम टुडु आदि उपस्थिति थे। गुरुओं की पूजा करने की है परंपरा : बेलबोरोन अनुष्ठान के दौरान धोरोम गुरु बोंगा, कमरू गुरु बोंगा, भुवग गुरु बोंगा, कांसा गुरु बोंगा, चेमेय गुरु बोंगा, सिद्ध गुरुबोंगा, सिदो गुरु बोंगा, रोहोड़ गुरु बोंगा, गांडु गुरु बोंगा, भाइरोगुरु बोंगा, नरसिंह गुरु बोंगा एवं भेंडरा गुरु बोंगा की पूजा की जाती है। बेलबोरोन पूजा मे गुरु बोंगाओं के नाम पर पूजा किया जाता है

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