राजेश की गिरफ्तारी से खुलेगा 1.42 की धोखाधड़ी का राज

ग्रामीण विकास विशेष प्रमंडल से 28 अक्टूबर को कोषागार कार्यालय के माध्यम से फर्जी कंपनी जीके इंटरप्राइजेजे को हुए 1.42 करोड के भुगतान मामले में दो लोग गिरफ्तार हुए हैं।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 29 Nov 2021 08:49 PM (IST) Updated:Mon, 29 Nov 2021 08:49 PM (IST)
राजेश की गिरफ्तारी से खुलेगा 1.42 की धोखाधड़ी का राज
राजेश की गिरफ्तारी से खुलेगा 1.42 की धोखाधड़ी का राज

ग्रामीण विकास विशेष प्रमंडल से 28 अक्टूबर को कोषागार कार्यालय के माध्यम से फर्जी कंपनी जीके इंटरप्राइजेज को हुए 1.42 करोड़ के भुगतान के मामले में दो लोगों की गिरफ्तारी के बाद भी पुलिस किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच सकी है। कंपनी का मालिक राजेश सिंह अभी भी पुलिस की पकड़ से दूर हैं। उसकी तलाश में दिल्ली में पांच दिन बिताने के बाद नगर थाना की एक टीम खाली हाथ लौट आई है। टीम राजेश की जगह बिहार के नवादा में रहने वाले उसके एक और भाई समेत तीन लोगों को जरूर लाई है। राजेश के एक भाई रंजन सिंह को नगर थाना की पुलिस एक सप्ताह से रखकर पूछताछ कर रही है। पुलिस इन सभी पर दबाव बनाकर मास्टर माइंड राजेश तक पहुंचने का प्रयास कर रही है।

पांच दिन पहले नगर थाना की पुलिस की तीन सदस्यीय टीम राजेश की तलाश में दिल्ली गई थी। राजेश का गुड़गांव में तीन कपड़ों का कारखाना है और वह दिल्ली में ही किराए पर रहता है। पुलिस की टीम ने जब उसके घर में दबिश दी तो पता चला कि वह घर छोड़कर 19 नवंबर को ही चला गया था। पुलिस ने दिल्ली में पांच संभावित जगहों पर दबिश डाली, लेकिन उसका पता नहीं चला। यहां से निराश पुलिस नवादा के काजल नगर गई और राजेश के एक भाई और पिता को साथ लाने का प्रयास किया। बीमारी की वजह से पिता को छोड़कर टीम भाई और उसके तीन दोस्तों को साथ लेकर आई। दोस्तों से राजेश ने बात की थी। मोबाइल नंबर के आधार पर उन्हें लाया गया है। हालांकि पुलिस का कहना है कि जब तक राजेश की गिरफ्तारी नहीं होती है, तब यह पता करना आसान नहीं होगा कि सारा खेल कैसे हुआ था और इसमें कौन लोग शामिल हैं।

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दो की गिरफ्तारी के बाद भी हाथ खाली

नगर थाना की पुलिस ने धोखाधड़ी की प्राथमिकी दर्ज कराने वाले ग्रामीण विकास विशेष प्रमंडल के लेखापाल पंकज वर्मा और कंप्यूटर आपरेटर पवन गुप्ता को दस दिन थाना में रखने के बाद साक्ष्य के आधार पर 18 नवंबर को गुपचुप तरीके से जेल भेज दिया था। इतना बड़ा मामला होने के बाद भी पुलिस ने दोनों को मीडिया के सामने लाने की आवश्यकता तक महसूस नहीं की। जबकि, इसी थाना की पुलिस एक चोर को गिरफ्तार करने के बाद बाकायदा मीडिया को बुलाकर तस्वीर खिचवाने में पीछे नहीं रहती है। पुलिस ने धोखाधड़ी में प्रयुक्त डोंगल और एक लैपटाप को साक्ष्य बताकर दोनों को जेल भेजा था।

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वित्त विभाग की रिपोर्ट को किया खारिज

धोखाधड़ी के बाद कोषागार पदाधिकारी विकास कुमार ने पुलिस को कुछ प्रमाण दिए थे, जिसमें बताया था कि सारा खेल एक मोबाइल से हुआ है और उसका ओटीपी आया था। पुलिस ने मोबाइल नंबर का पता लगाने के बाद उसके मालिक रामगढ़ जिले में कार्यरत विभाग के पूर्व लेखापाल इब्राहिम अंसारी को उठाया। उनके मोबाइल को चार बार तकनीशियन के माध्यम से खंगाला, लेकिन ओटीपी के बारे में पता नहीं चला। पुलिस ने उसे छोड़ भी दिया।

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