बहनों ने भाई के दीर्घायु होने के लिए मनाया करमा
दुमका एवं आसपास के इलाकों में पांच दिवसीय पारंपरिक लोक पर्व करमा शुक्रवार को विधि-विधान से संपन्न हो गया।
दुमका एवं आसपास के इलाकों में पांच दिवसीय पारंपरिक लोक पर्व करमा
शुक्रवार को विधि-विधान से संपन्न हो गया। चिकनियां संवाद सूत्र के मुताबिक भाई बहन के प्रेम का प्रतीक इस पर्व में बहनों ने भाई के दीर्घायु होने की कामना की। इस दौरान बहनों ने पूरे विधि-विधान व पारंपरिक तरीके से व्रत रखकर पूजन अनुष्ठान किया।
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दलाही :
मसलिया के गुमरो पंचायत के लाल बहियार गांव के मैदान में मेलर आदिम जनजाति संघर्ष मोर्चा के बैनर करमा मिलन समारोह का आयोजन किया गया। परंपरा के तहत करम डार के सामने जावा डाली रखकर दीप प्रज्वलित कर अनुष्ठान की शुरुआत की गई। इस मौके पर पारंपरिक गीत गाकर बहनों ने भाई के दीर्घायु होने की कामना की। मौके पर पूर्व मंत्री डा. लुइस मरांडी ग्रामीणों को करमा की शुभकामना देते हुए आयोजन में हिस्सा लिया। इस मौके पर गायक ठाकुर प्रसाद ने अपनी गीतों से समा बांध दिया। उन्होंने करमा पर्व के इतिहास पर भी विस्तार से जानकारी दी। इस मौके पर मोर्चा की ओर से समाज के मैट्रिक, इंटर व स्नातक पास छात्र-छात्राओं को सम्मानित भी किया गया। मौके पर बुधन राय मेलर, बानेश्वर राय, कामदेव सिंह,
संजय राय, देवसुन्दर राय,जयदेव राय, पवन राय, मनोज राय, त्रिभुवन सिंह, डोमन सिंह मौजूद थे।
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बासुकीनाथ : जरमुंडी प्रखंड एवं बासुकीनाथ नगर पंचायत क्षेत्र में शुक्रवार को परंपरागत तरीके से बहनों के द्वारा अपने भाई की सलामती व मंगल कामना को लेकर करमा पर्व धूमधाम से संपन्न हुआ। करमा पर्व भाई-बहन के सद्भाव, स्नेह और प्रेम का प्रतीक है। इस मौके पर बहनों ने अपने भाई के लंबे जीवन की कामना को लेकर शुक्रवार को दिन भर उपवास किया एवं रात्रि में विशेष पूजन कर शनिवार को इस पर्व का निस्तारण किया।
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मसलिया ( दुमका )
मसलिया प्रखंड क्षेत्र में शुक्रवार को करमा पर्व घटवाल समुदाय के लोगो ने विधि विधान मनाया। प्रखंड के मसलिया के नागड़ापथर, महिषापथर, तिलाबद, रोहड़ा, झिलुवा में उत्साह का माहौल रहा। इस मौके पर करमा के गीत, गणित दौड़, पत्ता सिलाई , करमा नृत्य प्रतियोगिता का आयोजन कर विजेताओं को पुरस्कृत किया गया।
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रानीश्वर: रानीश्वर प्रखंड के भूइयां-घटवाल गांवों में उत्साह एवं धूमधाम से करमा पूजा आयोजित की गई। दखिनजोल पंचायत के फाजिलपुर, बनवाड़ी, प्रतापपुर, लखनपुर, बोराडांगाल, खुदलिसपुर गांवों में करमा पूरे उल्लास से मनाया गया। वहीं, दुमका सदर प्रखंड के रानीबहाल पंचायत के कटहलडीहा, मोड़जोड़ा, सरकारीबांध, देवानबाड़ी गांव में करमा पूजा का आयोजन किया गया।
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काठीकुंड : काठीकुंड और गोपीकांदर प्रखंड के विभिन्न क्षेत्रों में सादगीपूर्ण व परंपरागत तरीके से बहनों ने अपने भाई की सलामती को लेकर करमा पर्व मनाया। काठीकुंड प्रखंड में खैरबनी, फिटकोरिया, तेलियाटांड, धावाटांड, बडा सरूवापानी, मंझला सरूवापानी, छोटा सरुवापानी, महुआपाथर, ढिबरी, सिमरा, बागझोपा, समेत कई गांवों में करमा पर्व मनाया गया।
गोपीकांदर प्रखंड के मधुबन, पिपरजोडिया, करूडिह , गोपीकांदर, दुर्गापुर, समेत कई गांवों में करमा पर्व मनाया गया।
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रामगढ़ : रामगढ़ प्रखंड के विभिन्न क्षेत्रों में शुक्रवार की रात धूमधाम से करमा पर्व संपन्न हो गया। भाई की सलामती के लिए पांच दिनों से चले आ रहे इस पर्व का समापन शनिवार की सुबह करम डाल के विसर्जन के साथ कर दिया गया। अधिकांशत खेतौरी और भूईंयां समाज के बच्चियों, युवतियां एवं नव विवाहित के द्वारा मनाया जाने वाला यह पर्व में पांच दिनों तक गांव में करमा के गीत पर प्रतिदिन नृत्य किया जाता है। हालांकि खेतौरी समाज द्वारा बुधवार की रात ही करमा पर्व का समापन कर दिया गया था। वहीं भूईंयां समाज के लोग शुक्रवार की रात करमा पर्व का समापन किए। खेतौरी समाज के नेता नंदलाल प्रसाद राउत ने बताया कि रामगढ़ प्रखंड के पिडारी, मोहनपुर, ईटबंधा, बगबिधा, नयाटीकर मोचीखमार, पहाड़पुर, गम्हरियाहाट, धोबनी, परमा, सिल्ठा ए समेत अन्य जगहों पर धूमधाम से करमा पर्व मनाया गया। उन्होंने बताया कि इस पर्व के पहले दिन लड़कियां नदी या तालाब में स्नान करने के बाद बांस की नई डाली में बालू भरकर उसमें उड़द, मूंग, घंघरा, मकई, धान, मटर, जौ, कुरथी इत्यादि का बीज डालती है। इसे गांव के बीच सार्वजनिक जगह पर रखकर करमा की गीत गाती है। प्रतिदिन सुबह शाम करमा की गीत गाकर इस डाली को जगाया जाता है। यह पर्व पूरी तरह से सार्वजनिक रूप से किया जाता है। करमा पर्व के दिन लड़कियां दिन भर उपवास रखती है। रात में लड़की के भाई के द्वारा करम का डाल लाया जाता है। इसे सार्वजनिक जगह पर रखा जाता है। करम डाल लाने के बदले करमा पर्व करने वाली बहन अपने भाई को भरपूर मिष्ठान भोजन कराती हैं। करमा पर्व की रात्रि में सभी लड़कियां अपने-अपने घर से सूप-डाला में मिष्ठान भोजन को सजाकर कुरूम डाल के चारों ओर रखती है। इसके बाद गांव के प्रमुख व्यक्ति सभी बहनों एवं उपस्थित ग्रामीणों को करमा-धरमा की कहानी सुनाता है। बीच-बीच में लड़कियों के द्वारा पीतल का लोटा बजाया जाता है। कहानी सुनने के बाद नाच-गान का दौर प्रारंभ होता है जो देर रात तक चलता रहता है।