भागवत कथा सुनने से पाप मुक्त हो जाते मानव
संवाद सहयोगी रामगढ़ कलियुग में उद्धार पाने का आधार नाम है। सतयुग त्रेता द्वापर में यह मुि
संवाद सहयोगी, रामगढ़: कलियुग में उद्धार पाने का आधार नाम है। सतयुग, त्रेता, द्वापर में यह मुक्ति हवन, साधना, ध्यान, योग आदि विधियों से उद्धार संभव था। कलियुग में एकमात्र साधना नाम जपना ही उद्धार करा देता है। उक्त बातें गुरुवार को रामगढ़ के छोटी रणबहियार में आयोजित सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा सप्ताह ज्ञानयज्ञ ने तीसरे दिन मथुरा से आए कथा व्यास राष्ट्रीय संत कािर्ष्ण बालयोगी ब्रह्मानंद जी महाराज ने कहीं।
उन्होंने कहा कि भागवत कथा से ही राजा परीक्षित का उद्धार हुआ था। कलियुग के गुण को सुनकर राजा परिक्षित ने उन्हें सोने में स्थान दिया। यूं तो कलियुग का चार स्थान वैश्यालय, मदिरालय, जुआ स्थल एवं हिसक स्थल है। जैसे ही राजा परीक्षित ने कलियुग की सोने में स्थान दिया और सोने का मुकुट पहना कलियुग ने असर दिखाना प्रारंभ कर दिया। इसी कारण राजा परीक्षित ने शिकार करना शुरू कर दिया। जंगल के श्रृंगी ऋषि के आश्रम में अपनी प्यास बुझाने पहुंचे। वहां पर शमिक ऋषि ब्रह्मध्यान में लीन थे। राजा ने पीने के लिए जल मांगा लेकिन ऋषि के ब्रह्मध्यान में लीन होने के कारण ध्यान नहीं दे पाए। इसके बाद कलियुग के प्रभाव से राजा क्रोध में आकर ऋषि को ढोंगी मानकर उनका अपमान कर दिया। राजा ने एक सांप मारकर ऋषि के गले में डाल दिया। यह अपमान शमिक ऋषि के पुत्र श्रृंगी ऋषि ने देखा इसके बाद शमिक ऋषि ने श्राप दिया कि आज से सातवें दिन तक्षक सर्प उन्हें डसेगा। पुन: शमिक ऋषि ने इसकी सूचना राजा परीक्षित को अपने पुत्र के माध्यम से दिया तो राजा परीक्षित अपना सारा राजपाट छोड़कर गंगातट पर भगवान की शरण ली। यहीं पर भगवान प्रसन्न होते हैं और सुकदेव मुनी राजा परीक्षित को सात दिनों तक भागवत कथा का श्रवण कराते हैं। इसके बाद सात दिनों तक भागवत कथा का श्रवण करते से राजा परीक्षित का उद्धार होता है। इसलिए सभी मनुष्य को इस कलियुग में भागवत कथा का श्रवण अवश्य करना चाहिए।