बेलदाहा दुर्गा मंदिर में संतान प्राप्ति के लिए चढ़ाते हैं फूल

जरमुंडी प्रखंड मुख्यालय से करीब 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बेलदाहा गांव में पिछले 103 वर्ष पुराने माता दुर्गा मंदिर की पूजा अर्चना की जा रही है।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 07 Oct 2021 09:38 PM (IST) Updated:Thu, 07 Oct 2021 09:38 PM (IST)
बेलदाहा दुर्गा मंदिर में संतान प्राप्ति के लिए चढ़ाते हैं फूल
बेलदाहा दुर्गा मंदिर में संतान प्राप्ति के लिए चढ़ाते हैं फूल

जरमुंडी प्रखंड मुख्यालय से करीब 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बेलदाहा गांव में पिछले 103 वर्षों से माता दुर्गा की पूजा अर्चना की जा रही है। प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी बेलदाहा सार्वजनिक दुर्गा पूजा समिति के तत्वावधान में मंदिर में दुर्गा पूजा का आयोजन विधि विधान के साथ किया जा रहा है। माता के पूजन कार्यक्रम में मुख्य रूप से आयोजक समिति के अजय कुमार मंडल, गौतम कुमार मंडल, देवेंद्र मंडल, रूपेश कुमार मंडल, विरेश कुमार मांझी सहित मंडल परिवार के दर्जनों अन्य सदस्य तन मन धन से जुटे हुए हैं।

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103 वर्ष पुराना है मंदिर का इतिहास

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बेलदाहा दुर्गा मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है। इस साल माता के पूजनोत्सव का 103 वां वर्ष पूरा हुआ। आस्थावानों की माने तो यहां आने वाले भक्तों की माता सभी मुराद पूरी करती है। खासकर वंश कामना के निमित्त यहां विशेष पूजन होता है। अष्टमी के दिन फूल चढ़ा कर माता से वंश कामना की मन्नतें मांगी जाती है। यहां दुर्गा पूजा सार्वजनिक दुर्गा पूजा के रूप में आयोजित होती है, लेकिन इस पूजन का सारा व्यय मंडल परिवार के द्वारा उठाया जाता है। समिति के अजय कुमार मंडल बताते हैं कि 103 वर्ष पूर्व उनके पूर्वज स्व. प्रफुल्ल कुमार मंडल ने फूस व मिट्टी के मकान में दुर्गा प्रतिमा का स्थापना की थी। उसी समय से आज तक लगातार दुर्गा प्रतिमा की पूजा होती आ रही है। समयानुसार फूस के मकान से खपरैल का मकान में परिवर्तित हुआ। कालांतर में मंडल परिवार के सदस्य को मन्नत में वंशज की प्राप्ति होने पर माता का पक्का का भव्य मंदिर बनवाया गया। यहां बंगला पद्धति से पूजा विधि विधान के साथ होती है। सप्तमी को मां दुर्गा का आगमन डोली में बिठाकर किया जाता है। अष्टमी को भक्तों के द्वारा उपवास रखकर पूजन की जाती है। रात्रि में सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन होता है। यहां दशमी को भव्य मेला का आयोजन होता है। दशमी की संध्या समय कंधा में मां दुर्गा की प्रतिमा को उठाकर पूरे गांव का भ्रमण करने के उपरांत स्थानीय शिवगंगा में प्रतिमा विसर्जित की जाती है।

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