गांवों तक नहीं पहुंच रही टीके की धार

हर्ड इम्युनिटी विकसित करने और कोरोना को जड़ से खत्म करने के उद्देश्य से सरकार हर एक व्यक्ति को कोरोना का टीका लगाने की पहल कर रही है लेकिन यह चिंता का विषय है कि आज भी गांवों के लोग टीकाकरण से दूर हैं।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 13 May 2021 06:33 PM (IST) Updated:Thu, 13 May 2021 06:33 PM (IST)
गांवों तक नहीं पहुंच रही टीके की धार
गांवों तक नहीं पहुंच रही टीके की धार

अनूप श्रीवास्तव, दुमका: हर्ड इम्युनिटी विकसित करने और कोरोना को जड़ से खत्म करने के उद्देश्य से सरकार हर एक व्यक्ति को कोरोना का टीका लगाने की पहल कर रही है, लेकिन यह चिंता का विषय है कि आज भी गांवों के लोग टीकाकरण से दूर हैं। पूरे देश में बह रही वैक्सीन की धार लगभग चार महीने बाद भी संताल के गांवों तक नहीं पहुंच सकी।

दुमका सदर प्रखंड से तकरीबन 12 किलोमीटर दूर है आदिवासी बाहुल्य लेटो। भुरकुंडा पंचायत का एक गांव। गांव में तकरीबन 80 फीसद आबादी आदिवासियों की है। करीब 65 घर हैं। ग्रामीणों को सरकार से एक नहीं, कई शिकायतें हैं। खासकर गांव में पेयजल की किल्लत को लेकर ग्रामीण खासे नाराज हैं। सोलर पेयजलापूर्ति योजना गांव में अपूर्ण हालत में ही है। बहरहाल, गुरुवार को ग्रामीणों ने बातचीत में अपनी स्थिति बयां की।

लेटो गांव के मुहाने पर ही कुछ ग्रामीणों से मुलाकात हो जाती है। कोविड-19 के संक्रमण के बारे में ग्राम प्रधान सुनील टुडू कहते हैं कि अधिकतर ग्रामीण इस खतरनाक संक्रामक बीमारी को लेकर जागरूक नहीं हैं। समझाने के बावजूद इनपर कोई असर नहीं है। ग्रामीण कोविड-19 की जांच नहीं कराना चाहते हैं। गांव के सलीम मरांडी ज्यादा कुछ बोलने को तैयार नहीं है। पराणिक दुर्गा मरांडी ने कहा कि अधिकतर ग्रामीण वैक्सीन के बारे में कुछ भी नहीं जानते हैं और ना ही वैक्सीन लेना चाहते हैं। वैक्सीन लेने के लिए कई बार प्रेरित किए जाने के बाद इक्का-दुक्का ग्रामीण ही इसे लेने का मन बना रहे हैं। सरयू टुडू ने कहा कि सरकार के स्तर से भी अब तक इस ग्रामीणों को जागरूक करने के लिए कोई खास पहल नहीं की गई है।

बाबूधन मरांडी ने कहा कि जागरूकता की कमी के कारण गांव में संक्रमण फैलने की खतरे से इन्कार नहीं किया जा सकता है। यह पूछने पर कि गांव में जांच शिविर लगने पर क्या सारे लोग टीका लेने को राजी होंगे, ग्रामीण एकमत नहीं दिखे।

हालांकि ग्राम प्रधान सुनील टुडू, नायकी सोहराय टुडू, पराणिक दुर्गा मरांडी के अलावा जोग मांझी और गुड़ित वैक्सीन टीके की दोनों डोज ले चुके हैं।

दुंदिया की हालत भी ऐसी ही: इसी गांव से सटा है दुंदिया। इस गांव की हालत भी लेटो जैसी ही है। गांव के एक ग्रामीण ने उग्र अंदाज में कहा कि गांव में किसको कोरोना हुआ है कि जांच की बात कर रहे हैं। इस गांव के दूसरे ग्रामीण भी इस बारे में कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हुए। हालांकि दुंदिया गांव के प्रधान सलीम मरांडी ने वैक्सीन ले ली है।

कुकुरतोपा में कई लोग बीमार: दुंदिया गांव की सीमा से सटा एक अन्य गांव है जामा प्रखंड का कुकुरतोपा। यह गांव भी आदिवासी बाहुल्य है। गांव के मंगल मुर्मू ने कहा कि कई ग्रामीण टाइफाइड और जॉन्डिस की चपेट में हैं। कई ग्रामीणों की महक गायब है। कहा कि स्वास्थ्य विभाग को अविलंब गांव में आकर स्थिति का आकलन करने की आवश्यकता है। ग्रामीण कोविड-19 के खतरे से भी भयभीत हैं। मंगल ने कहा कि इस गांव के कुछेक ग्रामीणों ने वैक्सीन की पहली डोज जरूर ली है, लेकिन पता नहीं किन कारणों से दूसरी डोज लेने से घबरा रहे हैं। मंगल ने कहा कि ग्रामीणों में यह भय है कि सूई लेने से नुकसान हो सकता है। मंगल ने कह कि इस मसले पर ग्रामीणों को जागरूक करने की जरूरत है, जिसके लिए स्वास्थ्य महकमा को पहल करने की सख्त दरकार है। इन गांवों में अधिकतर ग्रामीण मास्क, सैनिटाइजर और शारीरिक दूरी के मायने-मतलब को कुछ ज्यादा नहीं समझते हैं।

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देसी इलाज पर ही ग्रामीणों को भरोसा: कुकुरतोपा गांव के ग्रामीणों को देसी इलाज पर भी ज्यादा भरोसा है। यही कारण है कि गांव में टाइफाइड और पीलिया रोग से पीड़ित अधिकतर ग्रामीण जड़ी-बूटी पर ही भरोसा कर रहे हैं। हालांकि इक्का-दुक्का ग्रामीण चिकित्सक को दिखाकर दवा भी खा रहे हैं।

दो लोगों ने ली टीके की पहली डोज: कुकुरतोपा गांव के मंगल मुर्मू बताते हैं कि उनके अलावा रासमति किस्कू ने वैक्सीन की पहली डोज ली है। मंगल बताते हैं कि जब उनके अलावा गांव के ही बाबूधन टुडू, बिटिया हांसदा, सुकुरमुनी मुर्मू का शरीर गर्म हो गया तो जड़ी-बूटी की सहायता से ही पांच से छह दिन में ठीक हुए। मंगल के मुताबिक, एक खास प्रकार के घास को सरसों तेल में मिलाकर एक कटोरे में रखकर रोगी के माथे पर रख दिया जाता है और उसे चलाया जाता है। इसके अलावा उस तेल को पीड़ित को लगाया जाता है और खाने के लिए जड़ी-बूटी दी जाती है। इससे वह स्वस्थ हो जाता है।

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